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शनिवार, 20 जुलाई 2019

ब्लॉग बुलिटेन-ब्लॉग रत्न सम्मान प्रतियोगिता 2019 (सत्ताईसवां दिन) कविता


एम वर्मा ने कहा,  जब कभी मैं दिल के गहराई में कुछ महसूस करता हूँ तो उसे कविता के रूप में पिरो देता हूँ। उन गहराइयों से आज हम एक बार फिर रूबरू होते हैं -


बलखाती थी
वह हर सुबह
धूप से बतियाती थी
फिर कुमुदिनी-सी
खिल जाती थी
गुनगुनाती थी
वह षोडसी
अपनी उम्र से बेखबर थी
वह तो अनुनादित स्वर थी
सहेलियों संग प्रगाढ़ मेल था
लुका-छिपी उसका प्रिय खेल था
खेल-खेल में एक दिन
छुपी थी इसी खंडहर में
वह घंटों तक
वापस नहीं आई थी
हर ओर उदासी छाई थी
मसली हुई
अधखिली वह कली
घंटों बाद
शान से खड़े
एक बुर्ज के पास मिली
अपनी उघड़ी हुई देह से भी
वह तो बेखबर थी
अब कहाँ वह भला
अनुनादित स्वर थी
रंग बिखेरने को आतुर
अब वह मेहन्दी नहीं थी
अब वह कल-कल करती
पहाड़ी नदी नहीं थी
टूटी हुई चूड़ियाँ
सारी दास्तान कह रही थीं
ढहते हुए उस खंडहर-सा
वह खुद ढह रही थी
चश्मदीदों ने बताया
जहाँ वह खड़ी थी
कुछ ही दूरी पर
एक चिड़िया मरी पड़ी थी

12 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21 -07-2019) को "अहसासों की पगडंडी " (चर्चा अंक- 3403) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. सादर नमन वर्मा जी को....
    मर्म को छू गई आपकी ये रचना
    सादर...

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  3. उफ़ बेहद मार्मिक लेकिन यथार्थपरक रचना

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  4. वर्तमान दौर की कटु सच्चाई ..

    जवाब देंहटाएं
  5. चिड़िया के रूपक से यथार्थ का मार्मिक चित्रण करती कविता।

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  6. वर्मा साहब की रचनाओं से पहले भी परिचय हुआ है। एक सधे हुए रचनाकार हैं। यह कविता एक समसामयिक तथा ज्वलंत समस्या की तस्वीर खींचती है और यह तस्वीर इतनी घिनौनी है कि आईना देखते हुए भी घिन आती है।
    बहुत ही सजीव कविता!

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  7. आपसे इस अन्दाज़ मे मिलकर बहुत अच्छा लगा।

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