व्यंग्य लेखन कहानी/कथा/कविता की तरह ही एक महत्वपूर्ण विधा है. जिस तरह कहानी या कविता को अपनी संपूर्णता में लिखना हर किसी के लिए संभव नहीं , उसी प्रकार व्यंग्य लेखन में भी महारत हर किसी को हासिल नहीं है.
सोशल मीडिया की छोड़ ही दें. यहाँ हर व्यक्ति लेखक है, पाठक गायब हैं. सितम बेचारे लोगों पर यह भी कभी- कभार हम भी लेखक/लेखिका कहला जाते हैं.
खैर, बात व्यंग्य लेखन की हो रही तो लिखने के लिए एक आधार आवश्यक है- वह व्यक्ति हो कि परिस्थिति . इंगिति भी इस तरह हो कि हर व्यक्ति उस आईने में व्यक्ति और परिस्थिति को पढ़ सके और सरलता भी शामिल हो वरना आपने लिख दिया और किसी को समझ न आये और आप सर धुनते रह जाओ कि क्या लिखा था और क्या पढ़ा गया. लेखन की सफलता यही है कि पाठक को समझ भी आये, उस आइने में स्वयं को और आसपास की परिस्थितियों को भी निहार सके. पाठक की प्रतिक्रिया पर ध्यान न दिया जाये . वह अपनी समझ के अनुसार समझेगा, हास्य बोध होगा तो साथ हँस लेगा, न हुआ तो तिलमिलायेगा मगर इस स्थिति में भी लेखन की सफलता ही होगी.
ब्लॉग जगत व्यंग्य के महारथियों से सम्पन्न रहा है. जबरा मारे और रोने न दे वाले व्यंग्यकारों से एक परिचय यहाँ दे रही हूँ.
सिर्फ लिखने से कोई साहित्यकार नहीं बनता.उसके लिए पुरस्कार/सम्मान आदि जुगाड़ने पड़ते हैं. अब वह जमाना नहीं जहाँ लेखन में लोकप्रिय होने पर पुरस्कार मिलते हैं. वरना पुस्कार मिलने पर ही साहित्यकार कहलाते हैं. साहित्यकार बनने की विभिन्न टिप्स जानें यहाँ.
https://udantashtari.blogspot.com/2018/08/blog-post_25.html?m=0
ताजा ताजा चुनाव से निपटे हैं । यदि चुनाव के बाद वोटिंग मशीनें बतियातीं तो क्या कहतीं, जानियेगा यहाँ
http://fursatiya.blogspot.com/2017/12/blog-post_19.html?m=0
यदि मैं नेता होता...
http://santoshtrivedi.blogspot.com/2011/06/blog-post.html?m=0
गठबंधन टूटा रे
http://taau.taau.in/2017/08/blog-post.html?m=1
चचा छक्कन और चोर पार्टी
एक ही पार्टी के मंत्री,अध्यक्ष और अन्य नेताओं के फुटबाल की तरह लुढ़कते रहने की विवशता और दुविधा को खूब उकेरते हैं .
http://lalitdotcom.blogspot.com/2012/11/blog-post_19.html?m=0
मफलर ट्रेंड पूरी तरह से पत्रकारों की देन रहा और जिस तेजी से आमजन को मोहित कर शिखर पर आरूढ़ , व्यामोह की स्थिति भी उसी तीव्रता से ढ़लान की ओर बढ़ी. चंपू जी की पत्रकारिता का एक नमूना यहाँ. रिपोर्टर चंपू जी वाया मफलर ट्रेंड
http://ajaykumarjha1973.blogspot.com/2014/01/blog-post_19.html?m=0
अपने चुटीले अंदाज में सुनाये (लिखे) आनगिनत किस्सों में हास्य और व्यंग्य पिरो लाना इनकी खासियत रही. हैलो हैलो में ऐसा ही एक रोचक वार्तालाप नुमा किस्सा मिलेगा.
http://mosamkaun.blogspot.com/2016/10/blog-post_21.html?m=0
कुत्ता प्रेमियों और उनके शिकार यदि मित्र हुए तो कैसी रोचक स्थिति होगी. सहसा ही कोई विचार न सूझेगा . यहाँ शायद कुछ सहायता मिल जाये
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/08/blog-post_11.html?m=1
हिंदी ब्लॉगिंग के व्यंग्य लेखन में स्त्रियों की संख्या कम ही रही है लेकिन शैफाली पांडे इसमें अपना वर्चस्व बनाये रखने में सफल रहीं. मगर यहाँ उनकी एक हास्य व्यंग्य रचना का जिक्र करूँगी... लोकप्रिय फिल्मी गीतों को परिस्थितिनुसार समायोजित कर उसकी रोचक व्याख्या दिलचस्प है.
http://shefalipande.blogspot.com/2017/07/blog-post_15.html?m=1
बुलेटिन के लिए ताजा लिखे गये ब्लॉग तलाश कर वहाँ पहुँची तो पाया कि वे ब्लॉग बुलेटिन में पहले ही संसूचित हो चुके हैं. पिछले कुछ समय से व्यंग्य लेखन पर चर्चा भी हो रही तो हिंदी ब्लॉगिंग के धुरंधरों का लिखा तलाशन सार्थक लगा. यदि नये और पुराने पाठक इन ब्लॉग तक फिर से पहुँच कर पन्ने पलटें तो लिखना सार्थक होगा.
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खैर, बात व्यंग्य लेखन की हो रही तो लिखने के लिए एक आधार आवश्यक है- वह व्यक्ति हो कि परिस्थिति . इंगिति भी इस तरह हो कि हर व्यक्ति उस आईने में व्यक्ति और परिस्थिति को पढ़ सके और सरलता भी शामिल हो वरना आपने लिख दिया और किसी को समझ न आये और आप सर धुनते रह जाओ कि क्या लिखा था और क्या पढ़ा गया. लेखन की सफलता यही है कि पाठक को समझ भी आये, उस आइने में स्वयं को और आसपास की परिस्थितियों को भी निहार सके. पाठक की प्रतिक्रिया पर ध्यान न दिया जाये . वह अपनी समझ के अनुसार समझेगा, हास्य बोध होगा तो साथ हँस लेगा, न हुआ तो तिलमिलायेगा मगर इस स्थिति में भी लेखन की सफलता ही होगी.
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चचा छक्कन और चोर पार्टी
एक ही पार्टी के मंत्री,अध्यक्ष और अन्य नेताओं के फुटबाल की तरह लुढ़कते रहने की विवशता और दुविधा को खूब उकेरते हैं .
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मफलर ट्रेंड पूरी तरह से पत्रकारों की देन रहा और जिस तेजी से आमजन को मोहित कर शिखर पर आरूढ़ , व्यामोह की स्थिति भी उसी तीव्रता से ढ़लान की ओर बढ़ी. चंपू जी की पत्रकारिता का एक नमूना यहाँ. रिपोर्टर चंपू जी वाया मफलर ट्रेंड
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अपने चुटीले अंदाज में सुनाये (लिखे) आनगिनत किस्सों में हास्य और व्यंग्य पिरो लाना इनकी खासियत रही. हैलो हैलो में ऐसा ही एक रोचक वार्तालाप नुमा किस्सा मिलेगा.
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हिंदी ब्लॉगिंग के व्यंग्य लेखन में स्त्रियों की संख्या कम ही रही है लेकिन शैफाली पांडे इसमें अपना वर्चस्व बनाये रखने में सफल रहीं. मगर यहाँ उनकी एक हास्य व्यंग्य रचना का जिक्र करूँगी... लोकप्रिय फिल्मी गीतों को परिस्थितिनुसार समायोजित कर उसकी रोचक व्याख्या दिलचस्प है.
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बुलेटिन के लिए ताजा लिखे गये ब्लॉग तलाश कर वहाँ पहुँची तो पाया कि वे ब्लॉग बुलेटिन में पहले ही संसूचित हो चुके हैं. पिछले कुछ समय से व्यंग्य लेखन पर चर्चा भी हो रही तो हिंदी ब्लॉगिंग के धुरंधरों का लिखा तलाशन सार्थक लगा. यदि नये और पुराने पाठक इन ब्लॉग तक फिर से पहुँच कर पन्ने पलटें तो लिखना सार्थक होगा.
वाह! बढ़िया परचार।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ढंग से पुराने दिनों को स्थापित करते हुए, आजकल के तथाकथित साहित्य पर कटाक्ष किया है, लिंक्स बहुत सही
जवाब देंहटाएंपुराने दिनों की याद ताज़ा करवा दीं आपने |
जवाब देंहटाएंआभार वाणी दीदी |
वाकई पुरानी मधुर यादें ...आभार वाणी !!
जवाब देंहटाएंआजकल व्यंग्य लेखन का चलन खूब चला है, बहुत अच्छे लिंक्स दिए हैं
जवाब देंहटाएंसार्थक बुलेटिन प्रस्तुति
बहुत ही अच्छी जानकारी साझा की है आपने, सही कहा आपने "सिर्फ लिखने से कोई साहित्यकार नहीं बनता.उसके लिए पुरस्कार/सम्मान आदि जुगाड़ने पड़ते हैं"
जवाब देंहटाएंPolytechnic - BE/B.Tech kaise kare यह मेरे लिखे लेख है.