प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
प्रणाम |
सेंट्रल असेम्बली बमकांड की
घटना 8 अप्रैल, 1929 को घटी थी। इस घटना को क्रांतिकारी सरदार भगत
सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अंजाम दिया। इस बमकांड का उद्देश्य किसी को हानि
पहुँचाना नहीं था। इसीलिए बम भी असेम्बली में ख़ाली स्थान पर ही फेंका गया
था। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त बम फेंकने के बाद वहाँ से भागे नहीं,
अपितु स्वेच्छा से अपनी गिरफ्तारी दे दी। इस समय इन्होंने वहाँ पर्चे भी
बाटें, जिसका प्रथम वाक्य था कि-
"बहरों को सुनाने के लिये विस्फोट के बहुत ऊँचे शब्द की आवश्यकता होती है।"
कुछ सुराग मिलने के बाद 'लाहौर
षड़यन्त्र' केस के नाम से मुकदमा चला। 7 अक्टूबर, 1930 को फैसला सुनाया
गया, जिसके अनुसार राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को फाँसी की सज़ा दी गई।
अंग्रेज़ सरकार का बिल
अंग्रेज़ सरकार दिल्ली की असेंबली में
'पब्लिक सेफ्टी बिल' और 'ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल' लाने की तैयारी में थी।
ये बहुत ही दमनकारी क़ानून थे और सरकार इन्हें पास करने का फैसला कर चुकी
थी। शासकों का इस बिल को क़ानून बनाने के पीछे उद्देश्य था कि जनता में
क्रांति का जो बीज पनप रहा है, उसे अंकुरित होने से पहले ही समाप्त कर दिया
जाए। गंभीर विचार-विमर्श के पश्चात् 8 अप्रैल, 1929 का दिन असेंबली में बम
फेंकने के लिए तय हुआ और इस कार्य के लिए भगत सिंह एवं बटुकेश्र्वर दत्त
निश्चित हुए।
बमकांड
यद्यपि असेंबली के बहुत से सदस्य इस
दमनकारी क़ानून के विरुद्ध थे, तथापि वायसराय इसे अपने विशेषाधिकार से पास
करना चाहता था। इसलिए यही तय हुआ कि जब वायसराय 'पब्लिक सेफ्टी बिल' को
क़ानून बनाने के लिए प्रस्तुत करे, ठीक उसी समय धमाका किया जाए और ऐसा ही
किया गया। जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगत सिंह ने बम फेंका। इसके
पश्चात् क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने का दौर चला। भगत सिंह
और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास मिला। भगत सिंह और उनके साथियों पर
'लाहौर षडयंत्र' का मुक़दमा भी जेल में रहते ही चला। भागे हुए
क्रांतिकारियों में प्रमुख राजगुरु पूना से गिरफ़्तार करके लाए गए। अंत में
अदालत ने वही फैसला दिया, जिसकी पहले से ही उम्मीद थी। भगत
सिंह, सुखदेव और राजगुरु को मृत्युदंड की सज़ा मिली।
क्रांतिकारियों को फाँसी
23 मार्च, 1931 की रात को भगत सिंह,
सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया गया। यह भी माना जाता है कि
मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी, लेकिन जनरोष से डरी सरकार ने
23-24 मार्च की मध्य रात्रि में ही इन वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी और
रात के अंधेरे में ही सतलुज नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इन अमर क्रांतिकारियों को हमारा शत शत नमन |
इंकलाब ज़िंदाबाद !!
इंकलाब ज़िंदाबाद !!
सादर आपका
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नहीं आते...
बात में कुछ तो लहर पैदा कर
महिला विश्वकप
रात अभी बाकी हैं,कोई सितारा टिमटिमाया हैं..
किसी के दर्द में तो यूँ ही छलक लेता हूँ ...
वजह थी तेरी बेरुखी
मच्छर मारेगा हाथी को - अ रीमा भारती फैन फिक्शन #4
लेन देन
कहीं हम न हैं
मतदान करने से पहले कीजिये- थोडा होमवर्क
क्रांति को समर्पित ८ अप्रैल का दिन
~~~~~~~~~~~~~~~अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
प्रेरक प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअमर क्रांतिकारियों को श्रद्धा नमन..विविधता पूर्ण विषयों पर सुंदर रचनाओं की खबर देता बुलेटिन.आभार !
जवाब देंहटाएंनमन है क्रांति को ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को आज जगह देने की ...
बहुत ही कमाल का पूछते हैं आप हमारे वेबसाइट में भी आकर ऐसे पोस्ट पढ़ सकते हैं
जवाब देंहटाएंhttps://www.todaythinking.com/
आप सब का बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति शानदार रचनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार शिवम् जी
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