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गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

पप्पू इन संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

संस्कृत की क्लास मे गुरूजी ने पूछा, "पप्पू, इस श्लोक का अर्थ बताओ। 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"

पप्पू: राधिका शायद रस्ते में फल बेचने का काम कर रही है।

गुरू जी: मूर्ख, ये अर्थ नही होता है। चल इसका अर्थ बता, 'बहुनि मे व्यतीतानि, जन्मानि तव चार्जुन'।

पप्पू: मेरी बहू के कई बच्चे पैदा हो चुके हैं, सभी का जन्म चार जून को हुआ है।

गुरू जी: अरे गधे, संस्कृत पढता है कि घास चरता है। अब इसका अर्थ बता, 'दक्षिणे लक्ष्मणोयस्य वामे तू जनकात्मजा'।

पप्पू: दक्षिण में खडे होकर लक्ष्मण बोला जनक आज कल तो तू बहुत मजे में है।

गुरू जी :अरे पागल, तुझे 1 भी श्लोक का अर्थ नही मालूम है क्या?

पप्पू: मालूम है ना।

गुरु जी: तो आखिरी बार पूछता हूँ इस श्लोक का सही सही अर्थ बताना, 'हे पार्थ त्वया चापि मम चापि!' क्या अर्थ है जल्दी से बता?

पप्पू: महाभारत के युद्ध मे श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कह रहे हैं कि...

गुरू जी उत्साहित होकर बीच में ही कहते हैं, "हाँ, शाबाश, बता क्या कहा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से?

पप्पू: भगवान बोले, 'अर्जुन तू भी चाय पी ले, मैं भी चाय पी लेता हूँ। फिर युद्ध करेंगे'।

गुरू जी बेहोश!

सादर आपका

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आखिर साध्वी से परहेज़ क्यों है ?

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अब आज्ञा दीजिए ...

जय हिन्द !!!

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी धन्यवाद भाई साहब ,
    पथिक के लेख को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिये।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन में मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया शिवम जी 🙏 🙏 नमन

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  3. सुप्रभार
    उम्दा लिनक्स
    मेरी रचना की लिंक शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |

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  4. बहुत सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति पप्पू इन संस्कृत क्लास पढ़ कर बहुत अच्छा लगा सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद शिवम् जी

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  5. त्वया चापि, मम चापी! वाह! सुंदर संकलन।

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