देश की स्थिति इस समय अजीब सी है, अब अभिव्यक्ति की आज़ादी और राष्ट्रवाद के बीच बहस होती है। राष्ट्रवाद की भी अपनी परिभाषाएं गढ़ ली जातीं हैं, जिस वामपंथ ने अपने आरम्भ से लेकर आज तक कभी कोई सृजनात्मक कार्य किया ही नहीं हो और सदैव अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन ही किया हो वह भी आज कल टेलीविजन चैनलों पर डब्बों में बैठकर विश्लेषक बन अभिव्यक्ति की आज़ादी का रोना रोते हैं और रोज रोज नया नया बखेड़ा खड़ा कर देते हैं। दुश्मनों की भाषा बोलते हुए देश के विपक्ष टीवी पर चीखते चिल्लाते हुए दीखते हैं, आखिर ऐसा क्यों होता है?
जब हम स्कूल कालेज में थे तब हमारे यहाँ पढाई लिखाई और भविष्य को लेकर अनिश्चितता और मेहनत से ही आगे के मार्ग खुलेंगे वाली स्थिति थी। आजकल के स्कूल कालेज राजनैतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न क्यों बन जाते हैं? एक और बात है जो बहुत गंभीर है कि आखिर देश के विपक्षी दलों की स्थिति इतनी कमज़ोर क्यों है कि वह अपने पूर्वाग्रह में इस कदर दुखी हो जाते हैं जब देश की आर्थिक प्रगति की दर चीन से आगे निकल जाती है? आखिर वह दुखी क्यों हो जाता है जब मुद्रा-स्फीति की दर अपने निम्नतम स्तर पर आ जाती है? आखिर उसके पास सरकार को घेरने के लिए कोई और सार्थक और सकारात्मक मुद्दे क्यों नहीं? ऐसे में जब राजनीतिक विरोध अरब और पाकिस्तान के रास्ते से चलकर आतंकवादियों से साठ-गाँठ करने और सरकार को अस्थिर करने के लिए देशद्रोह की स्थिति तक पर चले जाने जैसी स्थिति में क्यों आ जाता है? आखिर कांग्रेस के नेता आईएसआई के नंबर-दो से मिलने क्यों जाते हैं? आखिर क्यों दिल्ली के चुनाव जीतने के लिए रावलपिंडी से केजरीवाल को सीधे निर्देश मिलते हैं? क्यों? देश की राजनीति के इस दौर को यदि बदलते दौर का सोशल मीडिया बेनकाब करने की कोशिश करता है तो उसे कट्टर राष्ट्रवाद कहकर टेलीविजन पर बहस क्यों होती है? आखिर बहस उस केजरीवाल पर क्यों नहीं होती जिसके बयान पडोसी दुश्मन देश के समाचार चैनलों की सुर्खियां बनते हैं?
थोड़ा सोच कर देखिये ऐसा क्यों होता है, क्या अभिव्यक्ति और लोकतंत्र की स्वतंत्रता ने हमें अनुशासनहीन बना दिया है, क्या जातिवादी राजनीति के दलदल में हम इस कदर घुस गए हैं कि अब उससे बाहर आने का आत्मबल खो बैठे हैं?
सोच कर देखिए!
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बढ़िया बुलेटिन देव बाबू ... आभार आपका |
जवाब देंहटाएंॐ नमः शिवाय
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ब्लॉग बुलेटिन.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मान रखना हम भूल जाते हैं.
सीमा पर युद्ध जारी है.
अब हमारी बारी है.
अपनी ज़िम्मेदारी समझें.
आपस में ही व्यर्थ ना उलझें.
गप मारना अभिव्यक्ति है या नहीं? सुन्दर बुलेटिन।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, ब्लॉग बुलेटिन।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
उम्दा बुलेटीन