सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
26 जुलाई 1926 में यूपी के चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में पैदा हुए डॉ. नामवर सिंह हिंदी साहित्य के बड़े रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। उनकी गिनती हिंदी साहित्य जगत के बड़े समालोचकों में थी।
हिंदी के मशहूर साहित्यकार और समालोचक डॉक्टर नामवर सिंह का निधन हो गया है। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मंगलवार रात तकरीबन 11.50 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। खराब सेहत की वजह से पिछले कुछ समय से वह एम्स में भर्ती थे।
इसी साल जनवरी में वह अपने घर में अचानक गिर गए थे। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। परिजनों के मुताबिक लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर बुधवार दोपहर बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। 26 जुलाई 1926 में यूपी के चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में पैदा हुए डॉ. नामवर सिंह हिंदी साहित्य के बड़े रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। उनकी गिनती हिंदी साहित्य जगत के बड़े समालोचकों में थी। उन्हें साहित्य अकादमी अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।
डॉ. नामवर सिंह ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के अलावा दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में लंबे अरसे तक अध्यापन कार्य किया था। बीएचयू से हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल करने वाले नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य जगत में आलोचना को नया मुकाम दिया। जेएनयू से पहले उन्होंने सागर और जोधपुर यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाया। जनयुग और आलोचना नाम की दो हिंदी पत्रिकाओं के वह संपादक भी रहे। 1959 में उन्होंने चकिया-चंदौली सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ा लेकिन हार के बाद बीएचयू में पढ़ाना छोड़ दिया।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने उनके निधन पर ट्वीट में लिखा, 'हिंदी में फिर सन्नाटे की खबर। नायाब आलोचक, साहित्य में दूसरी परम्परा के अन्वेषी, डॉ नामवर सिंह नहीं रहे। मंगलवार को आधी रात होते-न-होते उन्होंने आखिरी सांस ली। कुछ समय से एम्स में भर्ती थे। 26 जुलाई को वह 93 के हो जाते। उन्होंने अच्छा जीवन जिया, बड़ा जीवन पाया। नतशीश नमन।'
रचनाएं
बकलम खुद - व्यक्तिव्यंजक निबन्धों का संग्रह, कविताओं तथा विविध विधाओं की गद्य रचनाओं के साथ संकलित
शोध
हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग - 1952
पृथ्वीराज रासो की भाषा - 1956 (अब संशोधित संस्करण 'पृथ्वीराज रासो: भाषा और साहित्य' नाम से उपलब्ध)
आलोचना
आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां - 1954
छायावाद - 1955
इतिहास और आलोचना - 1957
कहानी : नयी कहानी - 1964
कविता के नये प्रतिमान - 1968
दूसरी परंपरा की खोज - 1982
वाद विवाद और संवाद - 1989
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
26 जुलाई 1926 में यूपी के चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में पैदा हुए डॉ. नामवर सिंह हिंदी साहित्य के बड़े रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। उनकी गिनती हिंदी साहित्य जगत के बड़े समालोचकों में थी।
हिंदी के मशहूर साहित्यकार और समालोचक डॉक्टर नामवर सिंह का निधन हो गया है। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मंगलवार रात तकरीबन 11.50 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। खराब सेहत की वजह से पिछले कुछ समय से वह एम्स में भर्ती थे।
इसी साल जनवरी में वह अपने घर में अचानक गिर गए थे। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। परिजनों के मुताबिक लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर बुधवार दोपहर बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। 26 जुलाई 1926 में यूपी के चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में पैदा हुए डॉ. नामवर सिंह हिंदी साहित्य के बड़े रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। उनकी गिनती हिंदी साहित्य जगत के बड़े समालोचकों में थी। उन्हें साहित्य अकादमी अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।
डॉ. नामवर सिंह ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के अलावा दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में लंबे अरसे तक अध्यापन कार्य किया था। बीएचयू से हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल करने वाले नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य जगत में आलोचना को नया मुकाम दिया। जेएनयू से पहले उन्होंने सागर और जोधपुर यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाया। जनयुग और आलोचना नाम की दो हिंदी पत्रिकाओं के वह संपादक भी रहे। 1959 में उन्होंने चकिया-चंदौली सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ा लेकिन हार के बाद बीएचयू में पढ़ाना छोड़ दिया।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने उनके निधन पर ट्वीट में लिखा, 'हिंदी में फिर सन्नाटे की खबर। नायाब आलोचक, साहित्य में दूसरी परम्परा के अन्वेषी, डॉ नामवर सिंह नहीं रहे। मंगलवार को आधी रात होते-न-होते उन्होंने आखिरी सांस ली। कुछ समय से एम्स में भर्ती थे। 26 जुलाई को वह 93 के हो जाते। उन्होंने अच्छा जीवन जिया, बड़ा जीवन पाया। नतशीश नमन।'
रचनाएं
बकलम खुद - व्यक्तिव्यंजक निबन्धों का संग्रह, कविताओं तथा विविध विधाओं की गद्य रचनाओं के साथ संकलित
शोध
हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग - 1952
पृथ्वीराज रासो की भाषा - 1956 (अब संशोधित संस्करण 'पृथ्वीराज रासो: भाषा और साहित्य' नाम से उपलब्ध)
आलोचना
आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां - 1954
छायावाद - 1955
इतिहास और आलोचना - 1957
कहानी : नयी कहानी - 1964
कविता के नये प्रतिमान - 1968
दूसरी परंपरा की खोज - 1982
वाद विवाद और संवाद - 1989
आज हम सब हिंदी साहित्य में नामवर सिंह जी के स्थान और योगदान का स्मरण करते हुए उन्हें शत शत नमन करते हैं।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
नामवार एक शशक्त हस्ताक्षर थे आज के ... उनकी कमी हमेशा रहेगी ...
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन है आज का ... आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
शुक्रिया इस ब्लॉग बुलेटिन के ज़रिये नामवर सिंह जी के बारे में जानकारी देने के लिए और मेरा ब्लॉग भी इस बुलेटिंग में शामिल करने के लिए...
जवाब देंहटाएंनमन हिन्दी के स्तम्भ को।
जवाब देंहटाएंसादर नमन हिंदी साहित्य के आधार स्तम्भ को।
जवाब देंहटाएंडॉक्टर नामवर सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंआज का बुलेटिन बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद.
विभिन्न विषयों पर विविध सामग्री. रोचक.
डॉ नामवर सिंह जी को विनम्र श्रद्धांजलि। उनका जाना हिंदी साहित्य जगत की अपूर्णीय क्षति है।
जवाब देंहटाएंडॉक्टर नामवर सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंसादर नमन हिंदी साहित्य के आधार स्तम्भ को।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
सादर
Sir आपने बहुत अच्छे से chanakya Niti Quotes Hindi Explain कि हैं। Very Nice post
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