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नादिरा अथवा फ़रहत एज़ेकेल नादिरा (अंग्रेज़ी: Nadira अथवा Farhat Ezekiel Nadira) (जन्म: 5 दिसंबर, 1932, इज़राइल; मृत्यु: 9 फ़रवरी, 2006) हिन्दी फ़िल्मों की ख्यातिप्राप्त और सुन्दर अभिनेत्रियों में से एक थीं। फ़िल्मी परदे पर नादिरा आत्मविश्वास से भरपूर नजर आती थीं। वे अपने किरदार में पूरी तरह से समा जाती थीं। साठ से भी अधिक फ़िल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय की छाप छोडऩे वालीं नादिरा दिलीप कुमार, राजकपूर, मीना कुमारी, राजकुमार और अमिताभ बच्चन आदि अनेक कलाकारों की फ़िल्मों में सिर्फ सहायक ही नहीं, बल्कि विशिष्ट भी बन जाती थीं। अभिनेत्री नादिरा अपने समय से कहीं आगे थीं। लाजवाब ख़ूबसूरती और शाहाना अंदाज की शख़्सियत रखने के बावजूद उन्होंने उस दौर में खलनायिका बनना पसंद किया था, जबकि अन्य नायिकाएँ इस तरह की भूमिकाएँ करने से घबराती थीं।
जन्म तथा परवरिश
नादिरा का जन्म 5 दिसम्बर, 1932 को इज़राइल में एक बगदादी यहूदी परिवार में हुआ था। उनकी परवरिश एक लड़के के समान हुई थी। वह अपनी गली में वहाँ के लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थीं। गिल्ली डंडा खेलना भी उन्हें बहुत पसन्द था। उनके स्वभाव में लड़कों सी शरारत और हुड़दंगपन पूरी उम्र बना रहा। वह महिला मित्रों से ज़्यादा खुशी, पुरुष जमावड़े में गपशप करके हासिल करती थी।
फिल्मी शुरुआत
हिन्दी दर्शकों में प्रसिद्धि पा चुकीं नादिरा ने अपने पाँच दशक लंबे फ़िल्मी सफर में अनेकों फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने नायिका, खलनायिका की भूमिका करने के साथ चरित्र भूमिकाएँ भी निभाईं। उनके अभिनय कैरियर की शुरुआत महबूब ख़ान की सन 1952 में निर्मित फ़िल्म 'आन' से हुई, जिसमें उन्होंने एक बिगडैल राजकुमारी की भूमिका निभाई थी। उन्होंने उस समय की सहमी हुई नायिकाओं के विपरीत एक बोल्ड दृश्य भी दिया। इस फ़िल्म में दिलीप कुमार उनके नायक थे।
इस फ़िल्म में नादिरा द्वारा निभाए गए राजकुमारी राजश्री के रोल के लिए उनसे पहले नर्गिस को चुना गया था, लेकिन किस्मत कुछ और ही लिख रही थी। महबूब ख़ान इस फ़िल्म को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते थे। उन्होंने नर्गिस को तारीख़ देने के लिए कहा, किंतु नर्गिस ने अपनी दुविधा जता दी कि उन्होंने राजकपूर की फ़िल्म 'आवारा' साइन कर ली है। महबूब ख़ान जानते थे कि नर्गिस कभी भी राजकपूर की बात नहीं टाल सकतीं। महबूब ख़ान नर्गिस को अपनी फ़िल्म में न लेने की तकलीफ छिपा गए, लेकिन उनकी पत्नी सरदार अख्तर ने तय किया कि वह नर्गिस का कोई विकल्प खड़ा करेंगी। बहुत सोचने के बाद उनकी नजर 'फरहत' (नादिरा) पर टिक गई। उनके नाम पर महबूब भी सहमत हो गए। अपनी फ़िल्म 'आन' में रोल देकर उनकी अलग तरह की सुंदरता को दुनिया के सामने लाने का मन बनाया। उनसे बात की और तय हुआ कि वही 'आन' में दिलीप कुमार के अपोजिट हिरोइन होंगी। फरहत को तब इस फ़िल्म में मशहूर हीरो दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिल रहा था, वे सुहाने ख्वाब देखने लगीं। फरहत को नया नाम दिया गया 'नादिरा', जो 'आन' के रिलीज होते ही रातोंरात स्टार श्रेणी में आ गया।
प्रसिद्ध कलाकारों के साथ कार्य
यह अभिनेत्री नादिरा की कामयाबी ही मानी जाएगी कि उन्हें हर बड़े हीरो के साथ काम करने का अवसर मिला। उस समय की तिकड़ी भी उनकी उपेक्षा नहीं कर सकी। नादिरा दिलीप कुमार के साथ 'आन में' आई और देव आनंद के साथ 'पॉकेटमार' में। राजकपूर ने उन्हें फ़िल्म 'श्री 420' में 'माया' का अलग अंदाज वाली भूमिका दी। अशोक कुमार के साथ 'नगमा', शम्मी कपूर के साथ 'सिपहसालर', प्रदीप कुमार के साथ 'पुलिस' और भारत भूषण के साथ 'ग्यारह हजार लड़कियाँ' आई।
सन 1954 में गायक-अभिनेता तलत महमूद के साथ दो फ़िल्मों 'डाक बाबू' और 'वारिस' में भी काम किया। ये फ़िल्में कामयाब रहीं। विशेष बात यह थी कि इन फ़िल्मों में नादिरा ने तलत महमूद के साथ कई गीत भी गाए और अपनी आवाज़ से लोगों को दीवाना बनाया। इस तरह नादिरा ने तीस सालों तक फ़िल्मों में लगातार काम किया। पूरे कैरियर में नादिरा ने कुछ और अभिनेताओं के साथ भी काम किया, उनमें मोतीलाल, आगा, अनवर हुसैन, जयराज, बलराज साहनी, उत्पल दत्त, दलजीत, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती और ऋषि कपूर आदि उल्लेखनीय हैं।
इसके बाद उन्होंने 'श्री 420' (1956), 'दिल अपना और प्रीत पराई' (1960), 'पाकीज़ा' (1971), 'अमर अकबर एंथनी' (1977) आदि फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने अधिकतर ऐसी महिला की भूमिका निभाई, जो नायक को अपनी अदाओं से जाल में फंसाने की कोशिश करती है।
यद्यपि अभिनेत्री नादिरा ने ज़्यादातर फ़िल्मों में खलनायिका की ही भूमिकाएँ निभाई थीं, लेकिन समय के साथ उन्होंने खुद को चरित्र अभिनेत्री के रूप में भी ढाल लिया था। बावजूद इसके उनका कद फ़िल्म की किसी मुख्य हिरोइन से कम नहीं होता था। उन्होंने इस्माइल मर्चेट की एक अंग्रेज़ी फ़िल्म 'काटन मैरी' (1999) में भी काम किया था।
नादिरा ने दो विवाह किये थे, लेकिन दोनों ही बार वह वैवाहिक सुख से वंचित रहीं। उनका प्रथम विवाह उर्दू शायर, गीतकार और फ़िल्म निर्माता नक्शब से हुआ था। इस दाम्पत्य की बड़ी ही दु:खद परिणति हुई। तब नादिरा ने दूसरा विवाह एक विवाहित व्यक्ति से किया। किंतु ये रिश्ता भी मात्र एक सप्ताह ही चल पाया।
शाहरुख ख़ान और ऐश्वर्या राय अभिनीत फ़िल्म 'जोश' नादिरा की अंतिम फ़िल्म थी। फ़िल्म 'जूली' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार' भी मिला था। इस फ़िल्म में उन्होंने नायिका 'जूली' की माँ मार्गरेट का किरदार निभाया था।
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
जन्म तथा परवरिश
नादिरा का जन्म 5 दिसम्बर, 1932 को इज़राइल में एक बगदादी यहूदी परिवार में हुआ था। उनकी परवरिश एक लड़के के समान हुई थी। वह अपनी गली में वहाँ के लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थीं। गिल्ली डंडा खेलना भी उन्हें बहुत पसन्द था। उनके स्वभाव में लड़कों सी शरारत और हुड़दंगपन पूरी उम्र बना रहा। वह महिला मित्रों से ज़्यादा खुशी, पुरुष जमावड़े में गपशप करके हासिल करती थी।
फिल्मी शुरुआत
हिन्दी दर्शकों में प्रसिद्धि पा चुकीं नादिरा ने अपने पाँच दशक लंबे फ़िल्मी सफर में अनेकों फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने नायिका, खलनायिका की भूमिका करने के साथ चरित्र भूमिकाएँ भी निभाईं। उनके अभिनय कैरियर की शुरुआत महबूब ख़ान की सन 1952 में निर्मित फ़िल्म 'आन' से हुई, जिसमें उन्होंने एक बिगडैल राजकुमारी की भूमिका निभाई थी। उन्होंने उस समय की सहमी हुई नायिकाओं के विपरीत एक बोल्ड दृश्य भी दिया। इस फ़िल्म में दिलीप कुमार उनके नायक थे।
इस फ़िल्म में नादिरा द्वारा निभाए गए राजकुमारी राजश्री के रोल के लिए उनसे पहले नर्गिस को चुना गया था, लेकिन किस्मत कुछ और ही लिख रही थी। महबूब ख़ान इस फ़िल्म को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते थे। उन्होंने नर्गिस को तारीख़ देने के लिए कहा, किंतु नर्गिस ने अपनी दुविधा जता दी कि उन्होंने राजकपूर की फ़िल्म 'आवारा' साइन कर ली है। महबूब ख़ान जानते थे कि नर्गिस कभी भी राजकपूर की बात नहीं टाल सकतीं। महबूब ख़ान नर्गिस को अपनी फ़िल्म में न लेने की तकलीफ छिपा गए, लेकिन उनकी पत्नी सरदार अख्तर ने तय किया कि वह नर्गिस का कोई विकल्प खड़ा करेंगी। बहुत सोचने के बाद उनकी नजर 'फरहत' (नादिरा) पर टिक गई। उनके नाम पर महबूब भी सहमत हो गए। अपनी फ़िल्म 'आन' में रोल देकर उनकी अलग तरह की सुंदरता को दुनिया के सामने लाने का मन बनाया। उनसे बात की और तय हुआ कि वही 'आन' में दिलीप कुमार के अपोजिट हिरोइन होंगी। फरहत को तब इस फ़िल्म में मशहूर हीरो दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिल रहा था, वे सुहाने ख्वाब देखने लगीं। फरहत को नया नाम दिया गया 'नादिरा', जो 'आन' के रिलीज होते ही रातोंरात स्टार श्रेणी में आ गया।
प्रसिद्ध कलाकारों के साथ कार्य
यह अभिनेत्री नादिरा की कामयाबी ही मानी जाएगी कि उन्हें हर बड़े हीरो के साथ काम करने का अवसर मिला। उस समय की तिकड़ी भी उनकी उपेक्षा नहीं कर सकी। नादिरा दिलीप कुमार के साथ 'आन में' आई और देव आनंद के साथ 'पॉकेटमार' में। राजकपूर ने उन्हें फ़िल्म 'श्री 420' में 'माया' का अलग अंदाज वाली भूमिका दी। अशोक कुमार के साथ 'नगमा', शम्मी कपूर के साथ 'सिपहसालर', प्रदीप कुमार के साथ 'पुलिस' और भारत भूषण के साथ 'ग्यारह हजार लड़कियाँ' आई।
गायकी
सन 1954 में गायक-अभिनेता तलत महमूद के साथ दो फ़िल्मों 'डाक बाबू' और 'वारिस' में भी काम किया। ये फ़िल्में कामयाब रहीं। विशेष बात यह थी कि इन फ़िल्मों में नादिरा ने तलत महमूद के साथ कई गीत भी गाए और अपनी आवाज़ से लोगों को दीवाना बनाया। इस तरह नादिरा ने तीस सालों तक फ़िल्मों में लगातार काम किया। पूरे कैरियर में नादिरा ने कुछ और अभिनेताओं के साथ भी काम किया, उनमें मोतीलाल, आगा, अनवर हुसैन, जयराज, बलराज साहनी, उत्पल दत्त, दलजीत, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती और ऋषि कपूर आदि उल्लेखनीय हैं।
इसके बाद उन्होंने 'श्री 420' (1956), 'दिल अपना और प्रीत पराई' (1960), 'पाकीज़ा' (1971), 'अमर अकबर एंथनी' (1977) आदि फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने अधिकतर ऐसी महिला की भूमिका निभाई, जो नायक को अपनी अदाओं से जाल में फंसाने की कोशिश करती है।
चरित्र अभिनय
यद्यपि अभिनेत्री नादिरा ने ज़्यादातर फ़िल्मों में खलनायिका की ही भूमिकाएँ निभाई थीं, लेकिन समय के साथ उन्होंने खुद को चरित्र अभिनेत्री के रूप में भी ढाल लिया था। बावजूद इसके उनका कद फ़िल्म की किसी मुख्य हिरोइन से कम नहीं होता था। उन्होंने इस्माइल मर्चेट की एक अंग्रेज़ी फ़िल्म 'काटन मैरी' (1999) में भी काम किया था।
विवाह
नादिरा ने दो विवाह किये थे, लेकिन दोनों ही बार वह वैवाहिक सुख से वंचित रहीं। उनका प्रथम विवाह उर्दू शायर, गीतकार और फ़िल्म निर्माता नक्शब से हुआ था। इस दाम्पत्य की बड़ी ही दु:खद परिणति हुई। तब नादिरा ने दूसरा विवाह एक विवाहित व्यक्ति से किया। किंतु ये रिश्ता भी मात्र एक सप्ताह ही चल पाया।
अंतिम फिल्म
शाहरुख ख़ान और ऐश्वर्या राय अभिनीत फ़िल्म 'जोश' नादिरा की अंतिम फ़िल्म थी। फ़िल्म 'जूली' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार' भी मिला था। इस फ़िल्म में उन्होंने नायिका 'जूली' की माँ मार्गरेट का किरदार निभाया था।
निधन
नादिरा के अधिकांश रिश्तेदारों के इज़रायल चले के जाने के कारण वे जीवन के अंतिम दिनों में अकेली रह गई थीं। अंतिम तीन वर्षो में तो उन्होंने खुद को घर में कैद-सा कर लिया। वे बहुत ज़्यादा शराब पीने लगी थी। शरीर की कमज़ोरी के कारण उन्हें कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया। उन्हें मुम्बई के ताड़देव में अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ 9 फ़रवरी, 2006 74 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।
(साभार : http://bharatdiscovery.org/india/नादिरा)
आज प्रसिद्ध अभिनेत्री नादिरा जी की 13वीं पुण्यतिथि पर हम सब उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
बहुत सुन्दर शनिवारीय बुलेटिन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका रचना पसंद करने के लिए !
जवाब देंहटाएंसरस्वती पूजा और बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें, विविधरंगी सुंदर बुलेटिन, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनादिरा जी की 13वीं पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन |
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें..नादिरा जी की 13वीं पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन |
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