नमस्कार दोस्तो,
क्षणभंगुर जीवन की कलिका, काल प्रात को
जाने खिली न खिली, ये पंक्ति बचपन से सुनते आ रहे हैं.
इसी के साथ बताया जाता रहा कि ये जीवन नश्वर है, एक न एक दिन मिट्टी में मिल जाना
है, समाप्त हो जाना है. बचपन में तो इसके अर्थ, सन्दर्भ, प्रसंग समझ-रट लिया करते
थे मगर इसका यथोचित भावार्थ उम्र बढ़ने के साथ हुआ. जीवन की नश्वरता देखी भी, समझी
भी, एहसास भी की. जीवों के जीवन की नश्वरता की तरह वे सभी तत्त्व नश्वर ही कहे जा
सकते हैं जिनमें किसी न किसी रूप में जीवन है.
यही नश्वरता कुछ समय से अन्य दूसरे तत्त्वों में भी दिखाई
देने लगी है. एक क्षण को यह हास्य का विषय हो सकता है किन्तु गंभीरता से देखा जाये
तो इसके प्रति सजग-सचेत रहने की आवश्यकता है. ठीक उसी तरह जैसे कि हम अपने जीवन के
प्रति रहते हैं, स्वास्थ्य के प्रति रहते हैं, शरीर के प्रति रहते हैं, सुरक्षा के
प्रति रहते हैं. वर्तमान जीवन में अपनी सशक्त उपस्थिति बना चुके ये तत्त्व अनादिकाल
से हमारे साथ नहीं हैं वरन इसी आधुनिक समाज, आधुनिक तकनीक, संचार-क्रांति के
उत्पाद हैं. इनको सोशल मीडिया के रूप में, ईमेल के रूप में, विभिन्न वेबसाइट के
रूप में, इंटरनेट के बहुत से माध्यमों में बने एकाउंट के रूप में, मोबाइल के रूप
में देखा-समझा जा सकता है.
हो सकता है कि आपको आश्चर्य लग रहा हो कि इनके साथ कैसी
नश्वरता? इनको लेकर कैसी सजगता? आश्चर्य के बीच शायद आप सबको खबर हो गई होगी कि गूगल
प्लस अप्रैल माह के पहले हफ्ते से बंद होने जा रहा है. गूगल की तरफ से जारी एक
विज्ञप्ति में विस्तार से इसके बारे में बताया गया है. यदि स्मरण हो तो ऐसा ही कुछ
सालों पहले ऑरकुट के साथ भी हुआ था. कुछ ईमेल सुविधा देने वाले माध्यम भी अब उतने
उपयोग में नहीं हैं जितने कि किसी दौर में हुआ करते थे. बीच-बीच में व्हाट्सएप्प
को लेकर भी ऐसी आशंकाएँ, खबरें सामने आती रहीं किन्तु वह अभी तक हम सबके बीच जीवित
है. इन सबके अलावा ब्लॉग एग्रीगेटर भी समय-समय पर इस तकनीकी संसार से मिटते गए.
बहुत से ब्लॉग , वेबसाइट भी काल-कलवित होते गए.
एक दृष्टि से देखा जाये तो हमारे अधिकार-क्षेत्र में होने के
बाद भी इन सभी माध्यमों पर मालिकाना हक़ किसी और का होता है. उत्पाद के न चलने,
उपभोक्ताओं के मध्य प्रसिद्द न होने की दशा में उसके बंद किये जाने का निर्णय उसी
मालिक का होता है. ऐसे में सजगता इतनी बनाये रखनी है कि जो भी सामग्री आप अपने
किसी भी माध्यम पर शेयर कर रहे हैं वह आपके पास किसी न किसी माध्यम में सुरक्षित
रहनी चाहिए. ताकि आपातकाल की स्थिति में आप उसका उपयोग कर सकें. इसके अलावा किसी
भी माध्यम पर निर्भरता इतनी नहीं होनी चाहिए कि वही आपका जीवन समझ आने लगे. ऐसा
होना वर्तमान में तो स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल ही रहा होगा, उसका पूर्णतः
बंद होना मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. हालाँकि इनके जीवन की साँस
बंद होने के पहले, इनका जीवन समाप्त होने के पहले इनके उपभोगकर्ताओं को पर्याप्त
सूचना-समय प्रदान किया जाता है फिर भी किसी भी जीव-तत्त्व के जीवन की नश्वरता की
तरह इन तकनीक तत्त्वों, माध्यमों को भी नश्वर मानते हुए इनके साथ सुरक्षित समय
व्यतीत करने की कोशिश की जानी चाहिए.
आपके तमाम सारे एकाउंट, ब्लॉग, वेबसाइट, व्हाट्सएप्प, फेसबुक
आदि सालों-साल आपका साथ देते रहें, दीर्घायु हों. इसी कामना के साथ आज की बुलेटिन आपके
समक्ष प्रस्तुत है.
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शुभ संध्या राजा साहब...
जवाब देंहटाएंआलेख आपका बेहतरीन है
निराशा को निकाल बाहर कर
आशावादी बना दिया...
आभार..
सादर.
अभी इसी वक्त से गूगल में कोई भी आर्टिकल शेयर नही कर सकते..
जवाब देंहटाएंसादर
ब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स का अनूठा संगम। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंiwillrocknow.com
बहुत ख़ूबसूरत बुलेटिन...
जवाब देंहटाएंबड़े ही रोचक अंदाज़ में मुद्दे को समझाया आपने, राजा साहब |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद। गूगल प्लस बन्द होगा ब्लॉग तो रहेगा न?
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