नए वर्ष की आगोश में पुराना साल अपनी उम्र के 365वें दिन की ख़ुमारी में गुनगुना रहा है ...
दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए
फेसबुक किसी ब्लॉग से कम नहीं, तो कुछ खास के खास कलम के साथ मनाते हैं उत्सव वार्षिक अवलोकन का।
॥ यशोधरा ॥
किसी मैदान में बह रही नदी सी
शांत है यशोधरा
आज बहुत उद्भ्रांत है यशोधरा!
शांत है यशोधरा
आज बहुत उद्भ्रांत है यशोधरा!
सूर्य फड़फड़ा रहा है सुनहरे पंख
किसी पक्षी की तरह
आज बंद हैं
यशोधरा के भवन की सभी खिड़कियाँ
किसी पक्षी की तरह
आज बंद हैं
यशोधरा के भवन की सभी खिड़कियाँ
गोद में राहुल का शीश धरे
दिन के अंधकार में बैठी है यशोधरा
वह जानती है
बहुत दूर निकल गए हैं सिद्धार्थ
हवा के झोंके की तरह
उसकी आँखों में आँसू नहीं हैं
केवल स्मृतियाँ हैं!
दिन के अंधकार में बैठी है यशोधरा
वह जानती है
बहुत दूर निकल गए हैं सिद्धार्थ
हवा के झोंके की तरह
उसकी आँखों में आँसू नहीं हैं
केवल स्मृतियाँ हैं!
तरुणों की भीड़ में
शांत खड़ा है एक बाँका नौजवान
जो देखते ही उसकी आँखों से
हृदय तक चला जाता है
पिता कहते हैं मत डालो वरमाला
यह शरीर से राजकुमार
और मन से कोई सन्यासी है
कब माना यशोधरा ने?
शांत खड़ा है एक बाँका नौजवान
जो देखते ही उसकी आँखों से
हृदय तक चला जाता है
पिता कहते हैं मत डालो वरमाला
यह शरीर से राजकुमार
और मन से कोई सन्यासी है
कब माना यशोधरा ने?
वह शरीर से पुरुष
और मन से स्त्री है
पल भर में शत्रु बना लेता है
ममेरे भाई देवदत्त को
वह भी एक तीर से बिंधे पक्षी के लिए
इस तर्क पर कि पक्षी पर
मारने वाले का नहीं
बचाने वाले का अधिकार है
उस दिन
कितनी प्रसन्न हुई थी यशोधरा!
और मन से स्त्री है
पल भर में शत्रु बना लेता है
ममेरे भाई देवदत्त को
वह भी एक तीर से बिंधे पक्षी के लिए
इस तर्क पर कि पक्षी पर
मारने वाले का नहीं
बचाने वाले का अधिकार है
उस दिन
कितनी प्रसन्न हुई थी यशोधरा!
तुम कह नहीं पा रहे थे
कि तुम नहीं लड़ना चाहते
कोलियों के विरुद्ध
कि तुमने युद्ध से
बचाने के लिए मानवता
स्वयं को बना लिया भिक्षु
ले लिया देश-निकाला
क्या यशोधरा कभी हुई असहमत
तुम से या तुम्हारी जीवन-दृष्टि से!
कि तुम नहीं लड़ना चाहते
कोलियों के विरुद्ध
कि तुमने युद्ध से
बचाने के लिए मानवता
स्वयं को बना लिया भिक्षु
ले लिया देश-निकाला
क्या यशोधरा कभी हुई असहमत
तुम से या तुम्हारी जीवन-दृष्टि से!
किसी नदी की तरह
दिया तुम्हें मैंने वचन
एक बूंद जल रहने तक भी
सींचती रहूँगी
प्रकृति का हरा भरा आँचल
राहुल सोया है मेरी गोद में
वरना मैं भी छोड़ सकती थी
कपिलवस्तु
किसी सन्यासिनी की तरह!
दिया तुम्हें मैंने वचन
एक बूंद जल रहने तक भी
सींचती रहूँगी
प्रकृति का हरा भरा आँचल
राहुल सोया है मेरी गोद में
वरना मैं भी छोड़ सकती थी
कपिलवस्तु
किसी सन्यासिनी की तरह!
कल जब तुम आए मेरे पास
बताने अपना निर्णय
लेने मेरी अनुमति
क्या मैं रोई
या गिड़गिड़ाई थी तुम्हारे समक्ष?
क्या कहा मैंने
तुम मत बनना सन्यासी?
बताने अपना निर्णय
लेने मेरी अनुमति
क्या मैं रोई
या गिड़गिड़ाई थी तुम्हारे समक्ष?
क्या कहा मैंने
तुम मत बनना सन्यासी?
कहा तो यह था किसी माँ की तरह
कि जाओ और करो
किसी ऐसे पंथ का मार्ग प्रशस्त
जो हो मानवता के लिए कल्याणकारी!
कि जाओ और करो
किसी ऐसे पंथ का मार्ग प्रशस्त
जो हो मानवता के लिए कल्याणकारी!
फिर भी तुम चले गए
किसी अपराधी की तरह
हमें सोता हुआ छोड़ कर
सिद्धार्थ अफसोस,
अंततः तुम भी पुरुष ही निकले!
किसी अपराधी की तरह
हमें सोता हुआ छोड़ कर
सिद्धार्थ अफसोस,
अंततः तुम भी पुरुष ही निकले!
किसी मैदान में बह रही नदी सी
शांत है यशोधरा
आज बहुत उद्भ्रांत है यशोधरा!
शांत है यशोधरा
आज बहुत उद्भ्रांत है यशोधरा!
लड़का जो था ,लड़की के लिए भारी पज़ेसिव था। लड़की के सारे लड़के दोस्तों से चिढ़ने वाला । बात-बात पर लड़की से तुनककर रूठ जाने वाला। लड़की आज़ादख़याल थी। लड़कियों से ज्यादा याराना उसका लड़कों से रहा ।
पर नामुराद लड़की प्रेम में धुत्त थी।लड़के की बातों में,उसकी खुशबू में,उसकी आँखों मे,उसके गुस्से में,उसकी तकरार में ,बस उसके प्रेम में मगन। उसने सब लड़कों से बात करना छोड़ दिया ।लड़कियों की दुनिया मे रमने लग गयी।
लड़की खुश थी। लड़के पर गुस्सा करके भी खुश थी। लड़के की चार बातें सुनकर भी खुश थी।लड़के से झगड़कर भी खुश थी। लड़की खुश थी कि लड़का उससे प्रेम करता है।
प्रेमी कमबख्त हर जगह सिर्फ प्रेम ढूंढते रहते हैं । प्रेमी के हर शब्द में,हर तोहफे में, चेहरे की हर हरकत में, फोन रखते हुए ली गयी ठंडी सांस में, विदा होते वक्त लिए गए चुम्बन में। कहीं भी प्रेम अनुपस्थित मिला और दिल कांप उठता है पत्ते की तरह।लड़की को पजेसिवनेस भी प्यारी है क्योंकि प्रेम से उपजी है।
' वो मुझसे प्रेम करता है। पजेसिवनेस अच्छी बात तो नहीं ,पर क्या सिर्फ एक खराब बात के लिए उसे छोड़ दूं । होता है अक्सर। प्रेम में ज्यादातर लोग पजेसिव होते ही हैं। ' अक्सर सहेलियों के उलाहने पर जवाब देती और फिर पहुंच जाती लड़के के पास।
लड़की के एक बचपन के दोस्त से लड़का सबसे ज्यादा जलता। सीने में अंगारे भर उठते जब लड़की के पास उसके दोस्त का फोन आता ।
लड़की ने उससे भी बात करना बंद कर दिया। उसे सिर्फ उसका तुनकमिजाज लड़का चाहिए था। और लड़का भी वो जिसने उससे प्रेम की शरुआत में ही कह दिया था कि शादी न कर पायेगा। कोई कमिटमेंट नहीं कर पायेगा।
' ठीक है,मत करना ' लड़की ठसक से जवाब देती।
लड़की सिर्फ प्रेम में जीना जानती थी। भविष्य की परवाह में प्रेम में मिले इन पलों को नहीं गंवा सकती थी। वह जानती थी कि हो सकता है अगले साल इसी दिन,इसी वक्त,इसी लम्हे में लड़के की कार की फ्रंट सीट पर कोई और बैठी होगी । यह सोचकर तो लड़के को अपने सीने में और ज़ोर से भींच लेती।
'अभी ये मेरा है। अभी मैं इसके प्रेम में इसके साथ हूँ। इससे ज्यादा कुछ नहीं सोचूंगी। '
लेकिन ईश्वर जिन इंसानों को इश्क़ की मिट्टी में आंसू मिलाकर गूंथता है ,वो दुनिया के सबसे बड़े आत्महन्ता होते हैं। खुद को मिटा देने पर तुले हुए। संसार उन्हें बेशक बेवकूफ कहता है,पर ख़ुदा जानता है कि वे थोड़े से लोग ही दुनिया में भोलेपन और सरलता की सुंदरता बचाये हुए होते हैं ।
दिन मानसून के बादलों की तरह बरसते रहे,उड़ते रहे। एक दिन लड़के की सगाई के साथ ही मानसून की विदा की औपचारिक घोषणा हो गई। सगाई के एक दिन पहले लड़के ने लड़की को फोन किया।लड़की बस में अपने शहर जा रही थी।बैठने को जगह नहीं मिली थी तो रॉड पकड़कर खड़ी थी और लड़के से बात कर रही थी
सुन.. अच्छे से रहना।
हम्म...
जल्दी शादी कर लेना तू भी।
हम्म...
अब मैं तुझसे ज्यादा बात नहीं कर पाऊंगा ।
हम्म...
औऱ सुन....तेरे बचपन के दोस्त से बातचीत दोबारा शुरू कर देना ।
इतना सुनते ही लड़की के मन में कुछ चटाक से दरक कर टूट गया। ऐसा कुछ जो सगाई की खबर से भी नहीं टूटा था,उसकी शादी की कल्पना से भी नहीं टूटा था,उसके हमेशा के लिए दूर जाने से भी नहीं टूटा था।
लड़की की बस ने एक झटका खाया। शायद ड्राइवर ने ब्रेक लगाया था। पास वाली सीट पर से कोई उतरा था जिसने बस शुरू होने से पहले ही रूमाल डालकर सीट रोक ली थी। उतरते उतरते लड़की से कह रहा था
' अब आप चाहो तो बैठ जाओ ,सीट खाली कर दी मैंने'
'अब तू अपने दोस्त से बात करना शुरू कर देना'
लड़का अब भी फोन पर था।
' हां, अब तक सीट तुम्हारी थी।तुम किसी को टिकने भी नहीं दे रहे थे। अब तुम उतर गए तो कोई भी बैठे,तुम्हें समस्या नहीं है ।अब सीट तुम्हारी नहीं है ।' लड़की अस्फुट स्वर में बेध्यानी में कह रही थी।
"जी, मुझसे कुछ कहा आपने?' सहयात्री उतरते उतरते चौंका ।
' नहीं...'
' क्या बोल रही है ?' फोन के उस पार से आवाज़ आ रही थी
लड़की ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया था। लड़की उस ख़ाली सीट पर नहीं बैठी थी। खड़े-खड़े ही अपने शहर पहुंची थी। लड़की की आत्मा की शाख पर एक पत्ता बुरी तरह कांप रहा था।
लड़का कभी जान ही नहीं सका कि उसने तो दरियादिली दिखाई थी ,लड़की चटक कर टूट कैसे गयी।
लड़का आज भी नहीं जानता कि प्रेमी बड़े से बड़े तूफानों में सर उठाये खड़ा रह जाते है क्योंकि हर शय में सिर्फ प्रेम टटोलते प्रेमी उस तूफान में भी एक तिनके बराबर प्रेम खोज लेते हैं लेकिन एक सबसे कोमल फूल से भी प्रेमी मन घायल हो उठता है कि उस फूल में खुशबू है,सबसे मखमली स्पर्श है, दिल लुभाने वाले रंग हैं पर प्रेम नहीं है।
और लड़का ये भी नहीं जानता कि प्रेम इतना अधिक मजबूत है कि सदियों का बिछोह भी झेल जाए और इतना कोमल है कि बातचीत में ज़रा से तकल्लुफ से आहत हो जाये।
लड़की आज भी प्रेम खोजती फिरती है।
प्रेमी के शब्दों में ,स्पर्शों में, नज़रों में,तोहफों में, गालियों में,छोटी तकरारों में ,दो पल की मुलाकातों में,बरसों के विरह में।
प्रेम दिख जाए तो जी उठती है। प्रेम न दिखे तो मर जाती है।
#लवनोट्स
लड़कियाँ लौट रहीं हैं
ये क से काजल लिखना चाहती थी
ये कदम कदम चल रही थीं आँगन में
ये अलमस्त नैहर की मुंडेर पर पैर हिलाती अमरुद खाती सूरज को अस्त होता देख रही थी
ये छप से भरी पानी की बाल्टी से अंजुरी भरती अपने चेहरे पर छीटें मार रहीं थी
इनकी भौ में झिलमिल मोती गूँथ जाते ये झटकती सी खिलखिलाती थीं
ये कदम कदम चल रही थीं आँगन में
ये अलमस्त नैहर की मुंडेर पर पैर हिलाती अमरुद खाती सूरज को अस्त होता देख रही थी
ये छप से भरी पानी की बाल्टी से अंजुरी भरती अपने चेहरे पर छीटें मार रहीं थी
इनकी भौ में झिलमिल मोती गूँथ जाते ये झटकती सी खिलखिलाती थीं
ये पड़ोस की जचगी में सोहर गा आती
ये खाली समय में टांक देती कथरी में धागा
ये पगलाई सी घूमती फिरती बाग़ बगीचों में
बेलों से बात करती आम के पत्ते को सूंघती
खट्टी चटखारे लेती गुनगुनाती फ़िल्मी गीत
ये खाली समय में टांक देती कथरी में धागा
ये पगलाई सी घूमती फिरती बाग़ बगीचों में
बेलों से बात करती आम के पत्ते को सूंघती
खट्टी चटखारे लेती गुनगुनाती फ़िल्मी गीत
ये रंगीन बवंडर लड़कियाँ
ये मस्त खिलंदड़ लड़कियाँ
न जाने कौन से शहर को भेज दी गई
न जाने कौन से जोगी के साथ रम गई अपनी जिंदगी में
टप टप गिरते महुए आवाज लगाते इन्हें
नन्हे बच्चों को छाती में दबाये पूरा गाँव घूम आने वाली लड़कियों
गाँव चलो
बारी बगैचा कट रहे
तालाब पट रहे
पगडंडियां काली अजगर सी सड़क हो रही
ये मस्त खिलंदड़ लड़कियाँ
न जाने कौन से शहर को भेज दी गई
न जाने कौन से जोगी के साथ रम गई अपनी जिंदगी में
टप टप गिरते महुए आवाज लगाते इन्हें
नन्हे बच्चों को छाती में दबाये पूरा गाँव घूम आने वाली लड़कियों
गाँव चलो
बारी बगैचा कट रहे
तालाब पट रहे
पगडंडियां काली अजगर सी सड़क हो रही
आम की पत्ती से गायब न हो जाए खट्टा
अपने दांत तले रखो उन्हें
जोर से आँखे मिचो
काले कौए को उड़ाती बुढ़िया चाची के इन्तजार को रोको जरा
बिटिया घर में न रहे न तो घर खाने दौड़ता है
अपने दांत तले रखो उन्हें
जोर से आँखे मिचो
काले कौए को उड़ाती बुढ़िया चाची के इन्तजार को रोको जरा
बिटिया घर में न रहे न तो घर खाने दौड़ता है
मुंडेर पर अस्त होते सूरज ने पैर हिलाती लड़कियों को याद किया
फागुन के पहिले उदास है मन
रामायण गीता से उकता चुके पिता
बक्से में रखी तुम्हारी नन्ही चूड़ियों को झूले सा झुलाते हुए आराम कुर्सी में बेचैन पड़े है
फागुन के पहिले उदास है मन
रामायण गीता से उकता चुके पिता
बक्से में रखी तुम्हारी नन्ही चूड़ियों को झूले सा झुलाते हुए आराम कुर्सी में बेचैन पड़े है
तांगा टेक्टर बैलगाड़ी से लौट रहीं बेटियां
आसमान बसंत हो रहा
पनघट पर लहरा रहे दुपट्टे की लहरिया
इतरा रही
की बेटियों के लौटने से लौटता है बसंत
आम के खट्टे पत्ते की कसम ....
आसमान बसंत हो रहा
पनघट पर लहरा रहे दुपट्टे की लहरिया
इतरा रही
की बेटियों के लौटने से लौटता है बसंत
आम के खट्टे पत्ते की कसम ....
रास्ता
चलता रहा
चलता रहा
चलते-चलते
रास्ते का एक सिरा समंदर से जा मिला.
रास्ते का एक सिरा समंदर से जा मिला.
यूँ ही तो
अपना सफ़र तय कर
नदियाँ भी समंदर से मिल जाती होंगी !
अपना सफ़र तय कर
नदियाँ भी समंदर से मिल जाती होंगी !
जहाँ से समंदर शुरू होता है
ठीक उसकी दहलीज़ तक पहुँच कर
रास्ता रुक जाता है
ठीक उसकी दहलीज़ तक पहुँच कर
रास्ता रुक जाता है
मगर
नदी के सन्दर्भ में
कुछ और ही बात है
नदी के सन्दर्भ में
कुछ और ही बात है
वह जहां समाप्त होती है
वहीं से उसका वास्तविक जीवन शुरू होता है
वहीं से उसका वास्तविक जीवन शुरू होता है
सागर से एकाकार हो
वह सागर सी हो जाती है
फिर उसकी यात्रा कभी नहीं थमती
वह सागर सी हो जाती है
फिर उसकी यात्रा कभी नहीं थमती
वह
कई नदियों को फिर थामती है
लहरों की हो जाती है
कई नदियों को फिर थामती है
लहरों की हो जाती है
नदी खोती नहीं
न ही मिटता है उसका वज़ूद
न ही मिटता है उसका वज़ूद
बस इतनी ही यात्रा है--
नदी, नदी नहीं रहती
सागर हो जाती है !!
सागर हो जाती है !!
*** ***
कितना कुछ है बिखरा हुआ कोई समेटे भी तो कितना और कहाँ कहाँ से ? लाजवाब समापन अवलोकन का 2019 के अंत में फिर मिलेंगे।
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