मस्त,बेबाक,ख़ुद में लीन, शून्य और कोलाहल के मध्य जीवन से साक्षात्कार करता हुआ व्यक्तित्व - नित्यानंद गायेन।
इससे अधिक मैं कहूँ भी क्या, मेरी दृष्टि से जो लगा, वह मैंने कहा।
मेरी संवेदना
इनका ब्लॉग है, और वर्ष की चुनिंदा रचना है
भीतर की बेचैनी
थके हुए तन को सोने नहीं देती
कमरे में
ठंड ने कुछ इस तरह से
किया है कब्ज़ा
जैसे कि
उसने भी बहुमत पा लिया है
कम्बल किसी कमज़ोर विपक्ष की तरह
मुझे ताक रहा है !
मैं सोना चाहता हूँ
किन्तु मेरे दिमाग में
बार -बार उभर कर आ रहा है
किसान मजदूर का चेहरा
जिसे अल-सुबह नंगे पैर खेत पर जाना है
उस आदमी का चेहरा याद आ रहा है
जिसे सुबह पानी में उतरना है
अपने परिवार के लिए
इस कंपकंपी सर्दी में खुली सड़क किनारे
घुटनों को पेट पर बाँध कर सोने वाले
लाखों लोगों की अनकही पीड़ा को
किसी ने मुझे ओढ़ने के लिए दिया है
और मैं अपने कमरे में सिगरेट जला रहा हूँ !
अपने कमरे में बैठ कर
ये सब लिख कर
खुद को कवि मान रहा हूँ शायद
पर सच यही है कि
कविता उन याद आये लोगों के पास है
जिन्हें मैं शब्दों में पिरो रहा हूँ
वाह एक और नगीना अवलोकन की माला का |
जवाब देंहटाएंबेहद अच्छा लगा नित्यानंद जी की रचनाओं को पढ़ना। शुक्रिया।
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