mangopeople
अंशुमाला जी का वह ब्लॉग है, जिसे हम बेबाक सत्य यज्ञ कुंड कह सकते हैं, इसमें डाली जानेवाली हर समिधा निर्भय है और कोई भी प्रयास जब निर्भीक होता है, तो उसका प्रभाव गहरा होता है। करने को कोई बहस कर सकता है, लेकिन कुतर्कों की आयु अल्प होती है, और सत्य अपनी जगह डटा हुआ रहता है। खैर, मुझे भी डटा हुआ जानिये। और निश्चिन्त रहिये। असली मोती की खोज होती रहेगी...
आज की सीप से निकला मोती अंशु जी हैं
भाग -१
धार्मिक न होने के कारण धार्मिक किताबो को देखने का नजरिया मेरा बाकियों से अलग है मेरे लिए वो नैतिक शिक्षा देने वाले साहित्य है | किसी और के लिए जो महाभारत कृष्ण की लीला है वह मेरे लिए कृष्ण नामक लेखक द्वारा लिखी गई रचना है | जो समाज में नैतिक मूल्यों को बढ़ाने , लोगो को सही से आचरण अर्थात धर्म अनुसार आचरण करने की प्रेरणा देने के लिए लिखा गया है | महाभारत की रचना सिर्फ धर्म और धर्म के अनुसार कर्म की महत्ता स्थापित करने के लिए की गई है | एक एक पात्र और एक एक घटना सिर्फ धर्म की समाज को महत्व बताने अर्थात धर्म की स्थापना के लिए है | यहाँ धर्म का अर्थ हिन्दू मुस्लिम वाले से नहीं है बल्कि सही अच्छे कर्मो से है | कौरवों का १०० भाई होना , क्या संभव है ऐसा होना , नहीं , किन्तु चमत्कारिक रूप से १०० पुत्रो का जन्म होता है | संदेश साफ़ है १०० पुत्रो वाले वंश का भी नाश हो जायेगा यदि वो धर्म पर नहीं चल रहे है | पांच पुत्र ही हो लेकिन वो धर्म पर चले तो वंश का नाम रौशन करते है और १०० पुत्रो वाले अधर्मी वंश का नाश |
अधर्म के साथ जो भी खड़ा होगा वो नष्ट होगा चाहे वो कितना बड़ा धर्मनिष्ठ , वचनपालन करने वाला , शूरवीर या अच्छा व्यक्तित्व हो | भीष्म वचन से बंधे अपने कर्तव्यों के नाम पर अधर्म के साथ खड़े हुए , द्रोणाचार्य पुत्र मोह में , कर्ण अपने लिए सम्मान पाने के लिए , मित्रता का फर्ज और एहसान का कर्ज चुकाने के लिए अधर्म के साथ खड़े रहे और महारथी होने के बाद सब हारे | यहाँ तक स्वयं भगवान की सेना अधर्मियों के साथ होने के कारण हार गई | कर्ण , भीष्म , द्रोणाचार्य आदि पत्रों की रचना ही इस उद्देश्य से किया गया कि संदेश दूर तक जाए और गहरा जाए | ध्यान दीजिये कि ये पात्र और कई अन्य अच्छे पात्र जो कौरवो के साथ खड़े है वो सभी समाज के अलग अलग तबके से आये हुए , अलग अलग पदों और भिन्न परिस्थियों से आये हुए दिखाये गए है लेकिन सभी का अंत समान है , क्योंकि वो गलत के साथ खड़े हुए | कलयुग में भी हम बैठ कर इन पत्रों के साथ सहानभूति जताते कहे कि वाह ये पात्र और व्यक्तित्व कितना अच्छा था लेकिन ओह ! फिर भी मारे गए | ये ओह ये टिस मनुष्य को याद दिलाती रहे की अधर्मी होना और अधर्म के साथ खड़े होने से आप के सभी गुण बेकार हो जाते है वो अधर्म को जीत नहीं दिला सकते | उनका बुरा अंत हमें याद दिलाये की हमें खड़ा किसके साथ होना है | गलत के साथ खड़े होने के लिए आप कोई बहाना/ कारण नहीं दे सकते है |
इन पत्रों की रचना ही इस उद्देश्य के लिए किये गए कि मनुष्य समझे की केवल अच्छे होने और शूरवीर होने से कृति यश नहीं मिलता उसका प्रयोग हमेशा सही कार्यो में सहयोग के लिए ही होना चाहिए | मनुष्य के सौ अच्छे कर्म और बुद्धिमत्ता एक गलत काम की छूट नहीं देता है | आप को निरंतर केवल धर्म की राह चलना है चाहे परिस्थिति कुछ भी हो और समाज का व्यवहार आप के प्रति कुछ भी हो या समाज में आप का स्थान कुछ भी हो | ये मान कर चलिए महाभारत के सभी पात्र सिर्फ वही कर सकते थे जो उन्होंने किया इससे इतर वो यदि कुछ कर सकते कहानी की दिशा मोड़ने की जरा भी क्षमता उनमे होती तो वो पात्र कृष्ण की इस रचना/लीला में कहीं नहीं होते |
बहुत सुन्दर चयन। नायाब ब्लॉग।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकाफी समय से कुछ ग़म्भीर लेखन का सोच रही थी आप की चर्चा प्रेरणा का काम कर रही है | बहुत बहुत धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंछटवाँ वेद पढ़ लिया अंशूव्यास जी। ��
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