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बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

स्नेह के आगे



जो जीता है कतरा कतरा एहसासों को
जो तारों को टूटते देख
लपक लेता है उसे अपनी कलम में
मूंद लेता है आँखों को
किसी अंधविश्वासी की तरह
जो हवाओं से लगा जाए बाज़ी
और पत्तियों को छूकर
किसी शाख पर
चिड़िया बनकर बैठ जाए
वह पिंजड़े में कैद होकर कभी मरना नहीं चाहता
स्नेह के आगे
वह कटोरे कटोरे भले ही बोल ले
पिंजड़े की तीलियों को काट देने की ताकत रखता है
.....  रश्मि प्रभा


6 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय दीदी
    सादर नमन
    आभार
    सादर

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  2. जो जीता है कतरा कतरा एहसासों को
    जो तारों को टूटते देख
    लपक लेता है उसे अपनी कलम

    वाह बहुत सुन्दर
    आसान नहीं होता है जीना टूटते तारों के साथ लपकते हुऐ उन्हें

    आभार रश्मि प्रभा जी 'उलूक' के सूत्र को भी बुलेटिन में जगह देने के लिये।

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  3. पिंजरों को तोड़ने की कुव्वत जिसमें हो वही सितारों को आंचल में भर सकता है..
    सुंदर रचनाओं के सूत्र देता बुलेटिन..आभार आपका

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  4. साहित्य दश॔न पंक्ति में, सबसे पीछे खड़ा हूँ ।
    मूढ हूँ इसलिए शायद, अलग थलग पड़ा हूँ ।।

    जवाब देंहटाएं

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