नमस्कार साथियो,
कल हम सबने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया.
सभी को पुनः शुभकामनायें.
श्रीकृष्ण के साथ राधा और मीरा के नाम सहज
रूप से जुड़ जाते हैं. श्रीकृष्ण, उनके कार्यों, उनकी दार्शनिकता, उनके विचार, उनकी
सांसारिकता आदि पर फिर कभी, किसी और बुलेटिन में. आज आपको स्व-रचित एक कविता
पढ़वाते हैं. उसका आनंद लेते हुए आज की बुलेटिन का मजा लीजिये.
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प्रेम-संगीत मिल के सजाएँ प्रिये,
अधरों की बांसुरी अधरों पर धरो.
मन-मुदित श्याम-रंग में रँग जायेगा,
राधा सी, मीरा सी बस दीवानी बनो.
बनकर आओ गुलाबी भोर महकती,
या ठहर जाओ बनकर शाम बहकती,
मेरे दिन-रात तुमसे ही रोशन रहें,
आँचल तारों का ले चाँदनी सी सजो.
गीत मेरे मगर कोई स्वर ही नहीं,
न ही संगीत है कोई लय भी नहीं,
शांत झील में हलचल मचाने को अब,
मेरे जीवन में तुम इक लहर सी बहो.
दूर सागर से मिलना है तुमको अगर,
तोड़ अवरोध सारे बनाओ डगर,
रात अंधियारी काली भी कट जाएगी,
जुगनुओं की तरह तुम जगमग जलो.
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शुभकामनाएं जन्माष्टमी की। सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स के साथ सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लिंक्स .
जवाब देंहटाएंलुफ्त आ गया पड़ने में
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आपका आभार!
कृष्णमय होती आज की पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंकान्हा रंग में रंगी सुंदर लग रही है ...
आभर मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए आज ...
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर बुलेटिन .........
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार|