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शनिवार, 1 सितंबर 2018

सबकुछ बनावटी लगता है



ज़िन्दगी बदली है,
वक़्त बदला है 
या हम !
जो भी हो, 
सबकुछ बनावटी लगता है,
अपना हँसना,
कुछ कहना भी  ... उड़ते बादलों सा लगता है। 


9 टिप्‍पणियां:

  1. सशक्त लेखन, बदलते हुए वक्त के साथ कदमताल मिलाकर चलते हुए बहुत कुछ पीछे रह जाता है और नयेपन को अनायास स्वीकार तो कर लेते हैं पर अपनाने में वक्त लगता है, और सब कृत्रिम लगता है।

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  2. बनावटी लगता नहीं है बनावटी है। आभार ।

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  3. बेहतरीन बुलेटिन प्रस्तुति

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  4. प्रकृति से दूर जा रहे इंसान को कृत्रिमता का अनुभव स्वाभाविक है..पठनीय पोस्ट्स से सजा बुलेटिन, आभार !

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