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शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

समान अधिकार, अनशन, जतिन दास और १३ जुलाई

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज १३ जुलाई है...आज ही के दिन सन १९२९ को लाहौर जेल में, क्रान्तिकारियों के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण, क्रान्तिकारियों ने अनशन आरम्भ कर दिया था| जोकि ६३ दिनों तक जारी रहा और इस दौरान जतिन दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया था | स्वतंत्रता से पहले अनशन या भूख हड़ताल से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं... जतिन दास के देश प्रेम और अनशन की पीड़ा का कोई सानी नहीं है | जेल में क्रान्तिकारियों के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण क्रान्तिकारियों ने 13 जुलाई, 1929 से अनशन आरम्भ कर दिया। जतीन्द्र भी इसमें सम्मिलित हुए। उनका कहना था कि एक बार अनशन आरम्भ होने पर हम अपनी मांगों की पूर्ति के बिना उसे नहीं तोड़ेंगे। कुछ समय के बाद जेल अधिकारियों ने नाक में नली डालकर बलपूर्वक अनशन पर बैठे क्रांतिकारियों के के पेट में दूध डालना शुरू कर दिया। जतीन्द्र को 21 दिन के पहले अपने अनशन का अनुभव था। उनके साथ यह युक्ति काम नहीं आई। नाक से डाली नली को सांस से खींचकर वे दांतों से दबा लेते थे। अन्त में पागल खाने के एक डॉक्टर ने एक नाक की नली दांतों से दब जाने पर दूसरी नाक से नली डाल दी, जो जतीन्द्र के फेफड़ों में चली गई। उनकी घुटती सांस की परवाह किए बिना उस डॉक्टर ने एक सेर दूध उनके फेफड़ों में भर दिया। इससे उन्हें निमोनिया हो गया। कर्मचारियों ने उन्हें धोखे से बाहर ले जाना चाहा, लेकिन जतीन्द्र अपने साथियों से अलग होने के लिए तैयार नहीं हुए। 

अमर शहीद जतिंद्र नाथ दास जी के बारे में यहाँ पढ़ें ... 

 ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से जतिन दास और उन के साथियों को शत शत नमन |

सादर आपका
 शिवम् मिश्रा

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केशों का तिलिस्म (बाल कहानी)

एक गजल - कुर्सी (अरुण कुमार निगम)

मोहलतें

बचपने वाला बचपन ......

यह बारिश नहीं प्रेम है...

मेरी जमा पूंजी

निमंत्रण

स्वयंवर

जेल के अन्दर एक जेल होती है जिसे तन्हाई कहते हैं

यह लड़ाई है अच्छाई और बुराई की

इस तिरंगे की छाँव में

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

7 टिप्‍पणियां:

  1. अमर शहीद को नमन! संतुलित बुलेटिन हेतु आपका आभार.

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  2. सुंदर बुलेटिन.. मेरी रचना 'स्वयंवर' को स्थान देने हेतु धन्यवाद

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