नमस्कार दोस्तो,
आज आपके साथ एक पत्र शेयर कर रहे हैं, जो सन 1974 में
उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य रहे श्री ध्रुव नारायण सिंह वर्मा ने हमारे
पिताजी श्री महेन्द्र सिंह सेंगर को लिखा था. पत्र सदन की तरफ से जनप्रतिनिधियों
को उपलब्ध कराई जाने वाली डाक-सामग्री में लिखा गया था क्योंकि विधान परिषद् सदस्य
होने सम्बन्धी उत्तर प्रदेश सरकार का सरकारी चिन्ह उस पर अंकित है. यहाँ उस पत्र को प्रकाशित करने का उद्देश्य यह नहीं
कि उसे किसी विधान परिषद् सदस्य द्वारा हमारे पिताजी को लिखा गया था. यह किसी और के
लिए भले ही विशेष हो किन्तु हमारे लिए इसलिए विशेष नहीं है क्योंकि पिताजी के राजनैतिक
रूप से सक्रिय रहने के कारण ऐसे अनेकानेक पत्रों से हमारा परिचय होता रहता था. इस पत्र
को यहाँ देने के पीछे का उद्देश्य इस पत्र में विधान परिषद् सदस्य की मानसिकता का परिचय
देना है, उनकी विशेषता का परिचय देना है.
उन्होंने पत्र में तत्कालीन समाचार-पत्र
स्वतंत्र भारत का जिक्र किया है. पिताजी कभी खबरों के रूप में, कभी सम्पादक को पत्र
के रूप में समाज की समस्याओं को उठाते रहते थे. जिस पत्र का जिक्र विधान परिषद् सदस्य
ध्रुव नारायण जी ने किया उसमें भी पिताजी द्वारा एक समस्या को उठाया गया था. पिताजी
ने स्वतंत्र भारत समाचार-पत्र के सम्पादक के नाम पत्र में बेतवा नहर प्रखंड
की कुठौंद शाखा की कैलोर माइनर की टेल-गूल सम्बन्धी समस्या को उठाया था, जिसे ध्रुव नारायण जी ने पढ़ा. यही इस पत्र की विशेष बात है कि वे उस समस्या
को पढ़कर शांत नहीं रहे. उन्होंने उस समस्या, समाचार-पत्र को इंगित
करते हुए पिताजी को लिखा कि वे उन्हें इस विषय में लिखें. इसके पीछे ध्रुव नारायण जी
का उद्देश्य सम्बंधित समस्या को विधान परिषद् में उठाने की इच्छा रखना था.
आज कुछ कागजात खोजते समय जब इस पत्र को
अचानक देखा तो लगा कि आज के और उस दौर के जनप्रतिनिधियों में कितना अंतर आ गया है.
एक तबके ऐसे जनप्रतिनिधि थे जो समाचार-पत्र में सम्पादक के नाम पत्र कॉलम में प्रकाशित
किसी समस्या का संज्ञान स्वतः लेकर उसे सदन में उठाने की इच्छा व्यक्त करते थे. एक
आज के दौर के जनप्रतिनिधि हैं जो बार-बार ज्ञापन देने, प्रार्थना-पत्र देने,
याद दिलाने के बाद भी समस्या के निस्तारण की पहल नहीं करते. आज के ऐसे
जनप्रतिनिधियों से ये अपेक्षा करना व्यर्थ मालूम होता है कि वे स्वयं किसी समस्या का
संज्ञान लेकर उसे सदन में उठाएंगे. फ़िलहाल, ऐसे पत्र हमारी पीढ़ी
की थाती तो हैं ही आज के जनप्रतिनिधियों के लिए कुछ सीख लेने का पाठ भी हैं. काश कि
वे कुछ सीख पाते अपने वरिष्ठ जनप्रतिनिधियों से. फ़िलहाल तो वर्तमान राजनीति अपने
अतीत से जो सीख रही है, वह परिलक्षित हो रहा है. फ़िलहाल आज की बुलेटिन आपके समक्ष
प्रस्तुत है, आनंद लीजिये.
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उस दौर की बातें सोचिये और खुश रहिये। अब तो दौरों का दौर है किसे पड़ते हैं कौन पैदा करता है? बहुत सुन्दर बुलेटिन।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित बुलेटिन है... बहुत अच्छी है सारी रचनाएँ, मेरी रचना को स्थान देने के लिए अति आभार आपका आदरणीय।
जवाब देंहटाएंवो दौर कहाँ बाक़ी। यादों में खुश होना होगा। बढ़िया बुलेटिन। मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंदौर-दौर की बात है....
जवाब देंहटाएंयाद कीजिए और आज को कोसिए
आभार राजा साहब
सादर
साझा किया गया पत्र एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज जरूर है, यह सोचने को मजबूर करता हुआ कि -
जवाब देंहटाएंकहाँ गए वो लोग और कहाँ खो गया वह जमाना !!!
मेरी रचना को बुलेटिन में शामिल करने हेतु सादर आभार।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंउस दौर के जनप्रतिनिधि सबसे पहले जनता के लिए सोचते थे लेकिन आज के पांच साल तक अपने लिए ही सोचते हैं कि किस तरह ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाया जाए।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
एक वह दौर था, एक यह दौर है ...पिताजी का पत्र साझा करने के लिए धन्यवाद |
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