मेरी कलम से,
वक़्त की रफ़्तार की अय्याशी देखो
मोबाइल में चल रहा है
शीशे लगी गाड़ियों में
ठंडी हवा खा रहा है
बन्द कमरे में पड़ा है अजनबी होकर
लिफ्ट में भी बेवजह नहीं मुस्कुराता
....
कह दो कभी कि बात करो
तो झल्लाकर निकलता है मोबाइल से
क्या ?
क्या बात करूँ !!!
और गड़ाए रहता है आँख टीवी पर
ढेरों चैनल जो आ गए हैं
... !
पहले वीसीआर था
अब तो फ्री मूवीज़
प्रीमियम मूवीज़
पुराने सीरियल्स ...
...
यूँ यह वक़्त देखता कुछ नहीं
पर अटका रहता है
आँखों देखा हाल सुनाने में
और चूक रहा है अपने ही हाल से !
सोचता है,
आगे भाग रहा है
जीत रहा है
लेकिन वह बुनता जा रहा है एक जाल
उलझता जा रहा है उसमें
गांव से शहर
शहर से महानगर
...
कुछ नहीं रह गया है ऐसा
जो देखा न गया हो
हासिल न हो
और गर हासिल नहीं
तो हासिल करने के सौ नुस्खे हैं।
इस वक़्त के पास
सबकुछ है
पर,
ख़ुशी नहीं है !
हर बात
हर चीज
एक दिन में पुरानी हो जाती है
वक़्त इतना बदल गया है
कि कुछ भी नया नहीं रह गया है !
और तलाश है हर दिन कुछ नया
चेहरे नए
बातें नई
अंदाज नया
यहाँ तक कि
आध्यात्म भी नया
...
लेकिन सचमुच क्या यह वक़्त की अय्याशी है ?
नीलम प्रभा की कलम कहती है -
विज्ञापनों की सोनपटरी पे दिनरात भागती ज़िन्दगी
सुविधाओं का गजर गीत सुनके जागती ज़िन्दगी
लोग इसे वक़्त की अय्याशी कहते हैं ... कमाल है !
अय्याशी हमारी
और अय्याश वो
सारा किया कराया इंसानों का
और बदमाश वो !
दोष ये वक़्त का नहीं है
उसको तो चलते जाना है !
ये जो उल्टी चाल हमारी है
उसकी नहीं रंगदारी है
वह ना नए चोले बुनता है
ना ही अजीबोगरीब ढंग चुनता है
हमसब अपनी कारिस्तानी उसके माथे मढ़ रहे हैं
निष्काम भाव से चल रहे वक़्त को
बदनाम कर रहे हैं !
जुर्म आदमी का और मुजरिम ... वक़्त !
नयी उड़ान +: फिर भी इंतज़ार है ..
३०५. हथियार - कविताएँ - Blogspot
सब धंधा है! | प्रतीक माहेश्वरी
जज़्बात, ज़िन्दगी और मैं: क्रोध - एक विश्लेषण
कलम: एक संस्मरण
मूर्ख दिवस पर - समझदारी की बातें
-------------------//------------------------
चिल्लाकर मुहं खोल बे
खुल्म खुल्ला बोल बे
-------------------//------------------------
चिल्लाकर मुहं खोल बे
खुल्म खुल्ला बोल बे
नेताओं की तोंद देखकर
पचका पेट टटोल बे
पचका पेट टटोल बे
सुरा सुंदरी और सत्ता का
स्वाद चखो बकलोल बे
स्वाद चखो बकलोल बे
सत्ता नाच रही सड़कों पर
चमचे बजा रहे ढोल बे
चमचे बजा रहे ढोल बे
बहुमत का फिर हंगामा
बता दे अपना मोल बे
बता दे अपना मोल बे
भिखमंगे जब बहुमत मांगें
खोल दे इनकी पोल बे
खोल दे इनकी पोल बे
तेरे बूते राजा और रानी
दिखा दे अपना रोल बे
दिखा दे अपना रोल बे
बेशकीमती लोकतंत्र को
फोकट में मत तॊल बे
फोकट में मत तॊल बे
वाह बहुत सुन्दर सूत्र चयन और सुन्दर प्रस्तुति भी।
जवाब देंहटाएंसुंदर सरस प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पंक्तियां प्रस्तुत की.
जवाब देंहटाएंVisit My Blog - https://ajabgajabjankari.com
सुंदर लिंक्स। आभार.
जवाब देंहटाएं