अब त हमरे पास आपलोग से माफी माँगने का भी मुँह नहीं रह गया है. बाकी देस का कानून के हिसाब से बिना सफाई सुने हुए सजा सुनाना भी गैरकानूनी बात है. एही से कम से कम हमरे दिल का व्यथा त सुनिये लीजिये. नया साल का सुरुआत के साथ नवरात्रि का भी पूर्नाहुति का समय आ गया है. लेकिन हमरे लिये त अभी साल का आखिरी हफ्ता सुरु होने वाला है... नहीं बुझाया. अरे भाई बित्त बरिस यानि फाइनेंसियल ईयर का समाप्ति. साल भर का लेखा-जोखा, नफा-नोकसान, बिजनेस अऊर टारगेट. ई पूरा महीना एतना भाग-दौड़ का होता है कि का बताएँ. न घर से निकलने का टाइम, न लौटने का टाइम, न सोने का समय, न आराम का नाम.
दू दिन पहिले दोस्त लोग के साथ बैठे थे, त गुप्ता जी पूछ लिये – वर्मा जी आँख सूजी हुई है, सोये नहीं क्या ठीक से? अब हम का बताते, बोले – नींद नहीं आती है इन दिनों. अब तो बस मरने के बाद ही चैन मिलेगा. घर के लोगों को तो मैंने कह दिया है कि मरने के बाद दस-पंदरह दिनों तक यूँ ही सोने देना, फिर ले जाकर दफ़न कर देना मिट्टी में.
गुप्ता जी बोले – दफ़न क्यों करना?
“मुझे आग से डर लगता है.”
पास में हमरे चैतन्य आलोक जी भी थे. ऊ कहाँ चुप रहने वाले थे – सुनिये बॉस, जब तक पूरा शरीर नहीं समाप्त होगा, आत्मा भटकती रहेगी. फिर दूसरा शरीर कैसे मिलेगा आपको. दफ़न कर दिया तो बहुत समय लग जाएगा.
हम भी सायरी में जवाब दिये – हम इंतज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक.
बात हँसी-हँसी में खतम हो गया. लेकिन रात भार नींद नहीं आना, काम का दबाव, असम्भव टारगेट के पीछे भागना, एतना थका देने वाला हो गया है कि कल बाथरूम में ब्रस करते समय गलती से आँख खुला रह गया त अपना चेहरा देखकर लगा कि हे भगवान हमरे साथ बाथरूम में कऊन आदमी घुसा हुआ है. पढाई लिखाई सब बंद. अजीब तरह का घुटन भरा समय. एही नहीं, ई त भगवान का लाख लाख धन्यबाद है कि हम अपना बैंक के क्वाटर में रहते हैं. नहीं त जो रेपुटेसन बना है सोसाइटी में, लोग बाग समाज में रहना मोस्किल कर देता. सरकार भले आराम से तरक्की का क्रेडिट ले ले, लोन लेकर भागने वाले का दोस बैंक वाला के माथा पर कारिख जैसा पोता गया है.
खैर, ऊ सब बात त चलता रहेगा. बदनामी-नेकनामी भी कपार पर लिखा होता है, जब जेतना मिलना है ऊ त मिलबे करना है. मगर ई तनाव का माहौल में हमको एक ठो बहुत बढिया तनाव भंजक रास्ता मिल गया. लिखना पढना बंद होने के बावजूद भी, हमरे मन में संगीत को लेकर हमेसा एगो रिग्रेट रहता था कि हमको गाना नहीं आता है. फिर याद आया संजीव कुमार जी का जो बता गये थे कि गाना आए या न आए, गाना चाहिये. त इधर आकर हम गाना सुरू किये.
हमरे स्वर्गीय पिता जी को गाना का बहुत सौक था. ऊ गाते भी अच्छा थे. फिल्मी गाना का बारीकी हम उन्हीं से सीखे थे. अऊर ई महीना में उनका जनमदिन भी है, सो सोचे कि उनके पसंद का गाना अपने आवाज में रिकॉर्ड करना सुरू किया जाए. बेसुरा गला के बावजूद भी जो हमको अपना गाना का खासियत देखाई दिया ऊ बस एही था कि हम सब गाना एक बार में रिकॉर्ड किये, सब गाना का बोल हमको पूरा याद था अऊर धुन कण्ठस्थ था. रहा बात आवाज का, त ऊ त भगवान का दिया हुआ है. जब भगवान बिगाड़ के भेज दिये हैं त हम केतना बना लेंगे.
बेसुरा गला से गाते-गाते लगभग सत्तर गाना हम गा दिये. ऑफिस का सारा थकान अऊर परेसानी दू गो गाना गाकर हम भगा देते थे. तब जाकर अनुभव हुआ कि संगीत से बड़ा कोनो मेडिटेसन नहीं है. एगो छोटा सा मोबाइल का ऐप्प सारा दिन का तकलीफ भुला देता है अऊर हमको हमरे पिता जी का याद से जोड़े रखता है, एही का कम है. आज 24 मार्च है अऊर आज ही के दिन महान कर्नाटक संगीतकार श्री मुत्तुस्वामी दिक्षितार का जन्म हुआ था. इसका मतलब का ई महीना के साथ हमारा कोनो न कोनो म्युज़िकल कनेक्सन जरूर है.
आज सबलोग छुट्टी मना रहा है, मगर हमरे खातिर आज अऊर कल एतवार को भी काम है. प्रधानमंत्री जी का घोसना पूरा करने का दायित्व भी त हम ही लोग के ऊपर है. लेकिन हमलोग त मजूर आदमी हैं, वैसे भी इतिहास त ईमारत बनवाने वाले को इयाद करता है, बनाने वाले का त कोनो गिनतिये नहीं है. ऊ लोग के किसमत में त हाथ कटवाना लिखा होता है.
जाने दीजिये, हम भी कहाँ का बात कहाँ ले बैठे. आज जब चारो तरफ बैंक वाले के नाम पर का मालूम केतना हज़ार करोड़ का घपला का बात चल रहा है, ओहाँ ई बिहारी बैंकर आपके लिये लाया है मात्र 2000वाँ ब्लॉग बुलेटिन. आज का बुलेटिन में हमरा बेसुरा गाना सुनकर साबासी भी दिये त समझेंगे कि हमारा तकलीफ का रेगिस्तान में कोनो झरना फूट गया है.
धन्यवाद!!
- - सलिल वर्मा
सलिल सर,खूबसूरत गीत और खूबसूरत अंदाज आपका उसे गाने का....गीत शुरू होते ही एक मुस्कुराहट ला देता है, जो अंत तक बनी रहती है । आपका ब्लॉग 'चला बिहारी ब्लॉगर बनने'पढ़ रही हूँ,मुझे बहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन के 2000 अंक पूर्ण करने पर हार्दिक बधाई । बहुत अच्छी रचनाएँ आज के अंक में । सादर।
2000वें अंक के लिये बधाई और शुभकामनाएं। सुन्दर गीत और सुन्दर प्रस्तुति भी।
जवाब देंहटाएंजी मजा आ गया साहेब जी, 2000 वे अंक का ओर उसपर शानदार गीत,क्या कहने ....
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक कलेक्शन है , आभार रचना को जगह देने के लिए ! मंगलकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !आखिर सुनते सुनते गाने ही लगे ,मेरी ख्वाहिश पूरी हुई ��
जवाब देंहटाएंऔर शिवम की एकाग्रता को प्रणाम ������ बुलेटिन यूँ ही चलता रहे सदा
सभी पाठकों और पूरी बुलेटिन टीम को २००० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाइयाँ |
जवाब देंहटाएंऐसे ही स्नेह बनाए रखिए |
सलिल दादा को सादर प्रणाम |