धैर्य मेरी मुंडेर पर भी रहता है
पर सही ढंग से बेतकल्लुफ होना मुझे नहीं आया -
जब तुम्हें चंद स्पष्ट शब्दों के साथ टहलते हुए
बढ़ते देखती हूँ
तो .... अच्छा लगता है
सोचती हूँ
कुछ बेतकल्लुफी उधार ले लूँ तुमसे
दोगे ?
मुस्कुराओ मत
मुझे पता है
तुम्हारी साँसों में दर्द का आना-जाना है
आश्चर्य मत करो - मैंने कैसे जाना !
जाहिर सी बात है
गम पे धूल वही डालते हैं
जो गम की बारीकी से गुजरते हैं
पर सही ढंग से बेतकल्लुफ होना मुझे नहीं आया -
जब तुम्हें चंद स्पष्ट शब्दों के साथ टहलते हुए
बढ़ते देखती हूँ
तो .... अच्छा लगता है
सोचती हूँ
कुछ बेतकल्लुफी उधार ले लूँ तुमसे
दोगे ?
मुस्कुराओ मत
मुझे पता है
तुम्हारी साँसों में दर्द का आना-जाना है
आश्चर्य मत करो - मैंने कैसे जाना !
जाहिर सी बात है
गम पे धूल वही डालते हैं
जो गम की बारीकी से गुजरते हैं
गम की बारीकी _()_
जवाब देंहटाएंवाह। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह , आभार सहित कि आपको रचना पसंद आयी !
जवाब देंहटाएंग़ज़ब सोचती हैं आप। धैर्य तो मुंडेर के पास होता ही है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक सूत्रों का संकलन आज का बुलेटिन !! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार रश्मि प्रभा जी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कड़ियाँ
जवाब देंहटाएंक्या खूब उकेरा है दर्द की लकीरों को वो भी इतने सहज शब्दों मे
जवाब देंहटाएंक्या खूब उकेरा है दर्द की लकीरों को वो भी इतने सहज शब्दों मे
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