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शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

सोशल मीडिया पर हम सब हैं अनजाने जासूस : ब्लॉग बुलेटिन

सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होने के कारण आज बहुतायत लोगों द्वारा इसे पसंद किया जा रहा है. कोई भी व्यक्ति सहजता से अपनी बात को वैश्विक स्तर तक पहुँचा रहा है. उसके लिए अब न किसी संस्थान की जरूरत है, न किसी सम्पादक की मनमर्जी का सवाल है. अब व्यक्ति पूरी स्वतन्त्रता के साथ अपने विचारों का प्रकटीकरण कर रहा है. वैचारिक स्वतन्त्रता के इस दौर में जहाँ किसी व्यक्ति को असीमित आसमान मिला है, वहीं निर्द्वन्द्व रूप से एक तरह का घातक हथियार भी उसके हाथ में लग गया है.


लोगों ने अपनी रुचियों को स्थापित करने का रास्ता भी तलाशा है. अव्यवस्थाओं के विरुद्ध एकजुट होना शुरू किया है. सरकार के कार्यों की प्रशंसा हुई तो उसकी बुराई भी की गई है. इसके बाद भी सोशल मीडिया पर मिली यह स्वतन्त्रता अपने साथ एक तरह की बुराई लेकर भी आई है. स्वतन्त्रता के अतिउत्साह में लोग इस तरह की सामग्री को सामने ला रहे हैं जो किसी भी रूप में समाज-हित में नहीं कही जा सकती हैं. सरकार, शासन, प्रशासन से सम्बन्धित लोगों ने इधर-उधर से, गोपनीय ढंग से जानकारी लेकर उसको सोशल मीडिया पर प्रकट करने का कार्य किया है. सरकारी आँकड़ों, खबरों को तोड़मरोड़ कर विकृत, भ्रामक रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा है. धर्म, जाति को आधार बनाकर अन्य दूसरे धर्मों, जातियों पर टिप्पणी करने का काम अब इस मंच पर बहुतायत में होता दिखता है. और तो और व्यक्तियों द्वारा अपने जीवन की अंतरंगता को सामने रखा गया. पति-पत्नी के बीच की गोपनीयता को सार्वजनिक किया गया. इन कदमों को भले ही व्यक्तियों की जागरूकता का पैमाना समझा जाने लगा हो किन्तु जानकारी के स्तर पर, सूचनाओं के स्तर पर यह किसी खतरे से कम नहीं है.

हो सकता है कि बहुत से लोगों को ये कपोलकल्पना जैसा लगे किन्तु हम अनजाने अपने देश की, अपने समाज की, अपने परिवार की सूचनाओं को विदेशी हाथों में सहजता से पहुँचा रहे हैं. हम सब मुफ्त मिली स्वतन्त्रता और मुफ्त मिले मंच के द्वारा अनायास ही चित्रों, विचारों, तथ्यों द्वारा जानकारी, सूचना आदि खतरनाक हाथों में देते जा रहे हैं. हम सोशल मीडिया के माध्यम से सहजता से विदेशी मंचों तक सूचना प्रेषित करने में लगे हैं कि हमारे देश में कोई एक वर्ग किसी दूसरे वर्ग के प्रति क्या सोच रखता है. एक जाति के लोग दूसरी जाति के लिए किस तरह की सोच रखते हैं. सोचने वाली बात है कि कहीं हम सब विचाराभिव्यक्ति के अतिउत्साह में स्वयं ही तो सभी सूचनाएँ, जानकारियाँ विदेश तो नहीं भेजे दे रहे? हम सभी को ये विचार करना होगा कि सबकुछ पोस्ट कर देने, प्रचारित कर देने की लालसा में हम विदेशों के लिए जासूसी तो नहीं किए जा रहे? सजग होना, सजग रहना आज के  दौर में अत्यावश्यक है.

शेष तो समझदार सभी हैं. आप सब आनंदित होइए आज की बुलेटिन के साथ.

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6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात राजा साहब
    तहेदिल से आभार
    सादर

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  2. बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति

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  3. बहुत सराहनीय प्रयास है। यह नहीं कि आपने मेरे लेख को स्थान दिया है, बल्कि इसलिए कि इस बहाने और दोस्तों को भी पढ़ने का मौका मिला।

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति. अग्रलेख वास्तव में ध्यान देने योग्य है. हम क्यों इतनी सूचनायें प्रेशित कर रहे हैं?
    रचना अच्छी औरतें ने बहुत प्रभावित किया.
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये सादर आभार

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  5. जी माफ कीजिएगा.. बहुत देर मैं आप सबों तक पहुंच पाई.. नववर्ष की आपाधापी में बाहर थी सो आज मुखातिब हो रही हुं ऐं...आपबों ने मेरी रचना को सराहा एक मौका दिया इसके लिए हार्दिक धन्यवाद।

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