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बुधवार, 31 जनवरी 2018

सुरैया और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स सादर नमस्कार।
सुरैया (जन्म: 15 जून, 1929 - मृत्यु: 31 जनवरी, 2004) पूरा नाम सुरैया जमाल शेख़, हिन्दी फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका थीं। 40वें और 50वें दशक में इन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपना योगदान दिया। अदाओं में नज़ाकत, गायकी में नफ़ासत की मलिका सुरैया जमाल शेख़ ने अपने हुस्न और हुनर से हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक नई इबारत लिखी। वो पास रहें या दूर रहें, नुक़्ताचीं है ग़मे दिल, और दिल ए नादां तुझे हुआ क्या है जैसे गीत सुनकर आज भी जहन में सुरैया की तस्वीर उभर आती है।

15 जून, 1929 को गुजरांवाला, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मी सुरैया अपने माता पिता की इकलौती संतान थीं। नाज़ों से पली सुरैया ने हालांकि संगीत की शिक्षा नहीं ली थी लेकिन आगे चलकर उनकी पहचान एक बेहतरीन अदाकारा के साथ एक अच्छी गायिका के रूप में भी बनी। सुरैया ने अपने अभिनय और गायकी से हर कदम पर खुद को साबित किया है।

सुरैया के फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत बड़े रोचक तरीक़े से हुई। गुजरे ज़माने के मशहूर खलनायक जहूर सुरैया के चाचा थे और उनकी वजह से 1937 में उन्हें फ़िल्म 'उसने क्या सोचा' में पहली बार बाल कलाकार के रूप में भूमिका मिली।1941 में स्कूल की छुट्टियों के दौरान वह मोहन स्टूडियो में फ़िल्म 'ताजमहल' की शूटिंग देखने गईं तो निर्देशक नानूभाई वकील की नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने सुरैया को एक ही नज़र में मुमताज़ महल के बचपन के रोल के लिए चुन लिया। इसी तरह संगीतकार नौशाद ने भी जब पहली बार ऑल इंडिया रेडियो पर सुरैया की आवाज़ सुनी और उन्हें फ़िल्म 'शारदा' में गवाया। 1947 में भारत की आज़ादी के बादनूरजहाँ और खुर्शीद बानो ने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली, लेकिन सुरैया यहीं रहीं।

देवानंद और सुरैया
एक वक़्त था, जब रोमांटिक हीरो देव आनंद सुरैया के दीवाने हुआ करते थे। लेकिन अंतत: यह जोड़ी वास्तविक जीवन में जोड़ी नहीं पाई। वजह थी सुरैया की दादी, जिन्हें देव साहब पसंद नहीं थे। मगर सुरैया ने भी अपने जीवन में देव साहब की जगह किसी और को नहीं आने दिया। ताउम्र उन्होंने शादी नहीं की और मुंबई के मरीनलाइन में स्थित अपने फ्लैट में अकेले ही ज़िंदगी जीती रहीं। देव आनंद के साथ उनकी फ़िल्में 'जीत' (1949) और 'दो सितारे' (1951) ख़ास रहीं। ये फ़िल्में इसलिए भी यादगार रहीं क्योंकि फ़िल्म 'जीत' के सेट पर ही देव आनंद ने सुरैया से अपने प्रेम का इजहार किया था, और 'दो सितारे' इस जोड़ी की आख़िरी फ़िल्म थी। खुद देव आनंद ने अपनी आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' में सुरैया के साथ अपने रिश्ते की बात कबूली है। वह लिखते हैं कि सुरैया की आंखें बहुत ख़ूबसूरत थीं। वह बड़ी गायिका भी थीं। हां, मैंने उनसे प्यार किया था। इसे मैं अपने जीवन का पहला मासूम प्यार कहना चाहूंगा।

अभिनय के अलावा सुरैया ने कई यादगार गीत गाए, जो अब भी काफ़ी लोकप्रिय है। इन गीतों में, सोचा था क्या मैं दिल में दर्द बसा लाई, तेरे नैनों ने चोरी किया, ओ दूर जाने वाले, वो पास रहे या दूर रहे, तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी, मुरली वाले मुरली बजा आदि शामिल हैं।

31 जनवरी, 2004 को सुरैया दुनिया को अलविदा कह गईं। संगीत का महत्व तो हमारे जीवन में हर पल रहेगा लेकिन सार्थक और मधुर गीतों की अगर बात आएगी तो सुरैया का नाम जरूर आएगा।

[ जानकारी स्त्रोत - भारतकोश ~ सुरैया ]


आज महान कलाकार सुरैया जी की 14वीं  पुण्यतिथि पर हिंदी ब्लॉगजगत और ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें स्मरण करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

मंगलवार, 30 जनवरी 2018

दूल्हे का फूफा खिसयाना लगता है ...

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज-कल जिनके घर शादी होती है वो भी अलग WhatsApp ग्रुप बनाने लगे हैं और इन ग्रुप में होती हैं कुछ मज़ेदार बातें ... आइये जानें क्या - क्या होता है ...

चाय बन गयी है, सब आ जाओ।

फेरे चालू हो गए, जल्दी पहुँचों।

मौसा जी आप कहाँ हो मंडप में पहुंचो।

मामा जी, दूल्हे का कोट कहाँ है?

और इसी बीच फूफा जी ने ग्रुप छोड़ दिया।

क्योंकि उनको किसी ने अभी तक पूछा ही नहीं है।

सादर आपका

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सोमवार, 29 जनवरी 2018

गणतंत्र दिवस समारोह का समापन - 'बीटिंग द रिट्रीट'

प्रिय ब्लॉगर,

प्रणाम |




आज दिल्ली के विजय चौक पर हुये 'बीटिंग द रिट्रीट' के साथ ही इस साल के गणतंत्र दिवस समारोह का समापन हो गया !



बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति का सूचक है। इस कार्यक्रम में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं। यह सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। गणतंत्र दिवस के पश्चात हर वर्ष 29 जनवरी को बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। समारोह का स्थल रायसीना हिल्स और बगल का चौकोर स्थल (विजय चौक) होता है जो की राजपथ के अंत में राष्ट्रपति भवन के उत्तर और दक्षिण ब्लॉक द्वारा घिरे हुए हैं। बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन घोषित करता है। सभी महत्‍वपूर्ण सरकारी भवनों को 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच रोशनी से सुंदरता पूर्वक सजाया जाता है।



हर वर्ष 29 जनवरी की शाम को अर्थात गणतंत्र दिवस के बाद अर्थात गणतंत्र की तीसरे दिन बीटिंग द रिट्रीट आयोजन किया जाता है। यह आयोजन तीन सेनाओं के एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड वादन से आरंभ होता है जो लोकप्रिय मार्चिंग धुनें बजाते हैं। ड्रमर भी एकल प्रदर्शन (जिसे ड्रमर्स कॉल कहते हैं) करते हैं। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब बैंड मास्‍टर राष्ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। तब सूचित किया जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है। बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन सारे जहाँ से अच्‍छा बजाते हैं। ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्ट्रीय ध्‍वज को उतार लिया जाता हैं तथा राष्ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं। इस साल से इस कार्यक्रम मे देसी वाद्य यंत्रों का भी समावेश किया गया है |

वर्ष 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को अब तक दो बार रद्द करना पड़ा है, 27 जनवरी 2009 को वेंकटरमन का लंबी बीमारी के बाद आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में निधन हो जाने के कारण बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। वह देश के आठवें राष्ट्रपति थे और उनका कार्यकाल 1987 से 1992 तक रहा। इससे पहले 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप के कारण बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया था।

आज शाम को हुये इस कार्यक्रम को नीचे दिये वीडियो पर देख सकते है ... यह वीडियो दूरदर्शन के यू ट्यूब चैनल से लिया गया है ... हर साल की तरह इस साल भी दूरदर्शन ने यू ट्यूब पर बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम का सीधा प्रसारण भी किया था !


सादर आपका

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

जय हिन्द की सेना !!!

रविवार, 28 जनवरी 2018

फ़ील्ड मार्शल करिअप्पा को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम


प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |


कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा (अंग्रेज़ी: Kodandera Madappa Cariappa, जन्म: 28 जनवरी, 1899 - मृत्यु: 15 मई, 1993) भारत के पहले नागरिक थे, जिन्हें 'प्रथम कमाण्डर इन चीफ़' बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। करिअप्पा ने जनरल के रूप में 15 जनवरी, 1949 ई. को पद ग्रहण किया था। इसके बाद से ही 15 जनवरी को 'सेना दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा। करिअप्पा भारत की राजपूत रेजीमेन्ट से सम्बद्ध थे। 1953 ई. में करिअप्पा सेवानिवृत्त हो गये थे, लेकिन फिर भी किसी न किसी रूप में उनका सहयोग भारतीय सेना को सदा प्राप्त होता रहा।


जन्म तथा शिक्षा

स्वतंत्र भारत की सेना के 'प्रथम कमाण्डर इन चीफ़', फ़ील्ड मार्शल करिअप्पा का जन्म 1899 ई. में दक्षिण में कुर्ग के पास हुआ था। करिअप्पा को उनके क़रीबी लोग 'चिम्मा' नाम से भी पुकारते थे। इन्होंने अपनी औपचारिक शिक्षा 'सेंट्रल हाई स्कूल, मडिकेरी' से प्राप्त की थी। आगे की शिक्षा मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से पूरी की। अपने छात्र जीवन में करिअप्पा एक अच्छे खिलाड़ी के रूप में भी जाने जाते थे। वे हॉकी और टेनिस के माने हुए खिलाड़ी थे। संगीत सुनना भी इन्हें पसन्द था। शिक्षा पूरी करने के बाद ही प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918 ई.) में उनका चयन सेना में हो गया।
उपलब्धियाँ

अपनी अभूतपूर्व योग्यता और नेतृत्व के गुणों के कारण करिअप्पा बराबर प्रगति करते गए और अनेक उपलब्धियों को प्राप्त किया। सेना में कमीशन पाने वाले प्रथम भारतीयों में वे भी शामिल थे। अनेक मोर्चों पर उन्होंने भारतीय सेना का पूरी तरह से सफल नेतृत्व किया था। स्वतंत्रता से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सेना में 'डिप्टी चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टाफ़' के पद पर नियुक्त कर दिया था। किसी भी भारतीय व्यक्ति के लिए यह एक बहुत बड़ा सम्मान था। भारत के स्वतंत्र होने पर 1949 में करिअप्पा को 'कमाण्डर इन चीफ़' बनाया गया था। इस पद पर वे 1953 तक रहे।
सार्वजनिक जीवन

सेना से सेवानिवृत्त होने पर उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड में भारत के 'हाई-कमिश्नर' के पद पर भी काम किया। इस पद से सेवानिवृत्त होने पर भी करिअप्पा सार्वजनिक जीवन में सदा सक्रिय रहते थे। करिअप्पा की शिक्षा, खेलकूद व अन्य कार्यों में बहुत रुचि थी। सेवानिवृत्त सैनिकों की समस्याओं का पता लगाकर उनके निवारण के लिए वे सदा प्रयत्नशील रहते थे।
निधन

करिअप्पा के सेवा के क्षेत्र में स्मरणीय योगदान के लिए 1979 में भारत सरकार ने उन्हें 'फ़ील्ड मार्शल' की मानद उपाधि देकर सम्मानित किया था। 15 मई, 1993 ई. में करिअप्पा का निधन 94 वर्ष की आयु में बैंगलौर (कर्नाटक) में हो गया।

आज फ़ील्ड मार्शल करिअप्पा की ११९ वीं जयंती के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब उनको शत शत नमन करते हैं |  

सादर आपका
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जय हिन्द !!!

शनिवार, 27 जनवरी 2018

भारत भूषण और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स सादर नमस्कार।
भारत भूषण
भारत भूषण ( जन्म: 14 जून, सन् 1920 ई. - मृत्यु: 27 जनवरी सन् 1992 ई. ) हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। इन्होंने कई ऐतिहासिक चरित्रों को अपने अभिनय से एक नया जीवन प्रदान किया था। बैजू बावरा, चैतन्य महाप्रभु, कालिदास, तानसेन, संत कबीर तथा मिर्जा ग़ालिब के किरदार इन्होंने अपने फिल्मी जीवन में निभाए थे। भारत भूषण जी ने अपने पूरे फिल्मी कैरियर में कुल 143 फिल्मों में अभिनय किया था। 50 तथा 60 के दशक में भारत भूषण जी काफी लोकप्रिय हो गए थे। वर्ष 1967 ई. में प्रदर्शित फिल्म 'तकदीर' नायक के रूप में इनकी अंतिम फिल्म थी। इसके बाद भूषण जी ने आगे चलकर अधिकांश चरित्र अभिनय के रूप में ही काम किया। आगे चलकर भारत भूषण जी को फिल्मों में काम मिलना भी बंद हो गया। इसके बाद इन्होंने कुछ धारावाहिकों में ही अभिनय किया। फिल्म जगत की अनदेखी और वक्त से बुरी तरह बिछड़ चुके हिन्दी फिल्मों के स्वर्णिम युग के इस बेहतरीन अभिनेता ने आखिरकार 27 जनवरी, सन् 1992 ई. को मुम्बई में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

आज हम सब हिंदी फिल्म के महान अभिनेता भारत भूषण जी की 26वीं पुण्यतिथि पर उनको याद करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।  


सादर।।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

६९ वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम |


ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सभी को की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ |
 
जय हिन्द ... जय हिन्द की सेना ||
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गणतंत्र दिवस पर देश की सेना के साथ क्रूर मज़ाक

आओ मिलकर गणतंत्र सशक्त बनायें

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ !!
गणों को तंत्र के शुभकामनाएं आज के लिये कल से फिर लग लेना है सजाने अपनी अपनी दुकान को
कुछ तो नया कीजिये अबके नए साल में
द 'अनकॉमन' कॉमन मैन - आर॰के॰ लक्ष्मण
वापस आओ ओ कोहरे, तुम्हारा इंतजार है
नेता और अफसर
अपने ही घरों से ------
बलिहारी है भंसाली जी
भविष्‍य के हाथों में खंजर देकर देख लिया, अब गिरेबां में झांकने का वक्‍त

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!  

गुरुवार, 25 जनवरी 2018

राष्ट्रीय मतदाता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
आज, 25 जनवरी 2018 को आठवाँ राष्ट्रीय मतदाता दिवस देशभर में मनाया जा रहा है. इसका आयोजन सभी नागरिकों को राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निर्वहन को प्रेरित करने के लिए किया जाता है. इस दिन बताया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए मतदान करना ज़रूरी है. राष्ट्रीय मतदाता दिवस का आरम्भ चुनाव आयोग के 61वें स्थापना वर्ष पर 25 जनवरी 2011 (चुनाव आयोग का गठन 25 जनवरी 1950 को किया गया था) को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने किया था. तबसे भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी को मनाया जाता है. इस दिवस के मनाए जाने के पीछे निर्वाचन आयोग का उद्देश्य है कि देश भर में प्रत्येक वर्ष उन सभी पात्र मतदाताओं की पहचान की जाए जिनकी उम्र एक जनवरी को 18 वर्ष पूर्ण हो चुकी है. इस क्रम में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के नए मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में दर्ज किए जाएं और उनके निर्वाचन फोटो पहचान पत्र बनाये जाएं.

इस अवसर पर मतदाताओं के पंजीकरण के साथ-साथ निम्न शपथ भी दिलाई जाती है.
हम भारत के नागरिक, लोकतंत्र में आस्‍था रखने वाले शपथ लेते हैं कि हम देश की स्‍वतंत्रत, निष्‍पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव कराने की लोकतांत्रिक परम्‍परा को बरकरार रखेंगे. प्रत्‍येक चुनाव में धर्म, नस्‍ल, जाति, समुदाय, भाषा आधार पर प्रभावित हुए बिना निर्भीक होकर मतदान करेंगे.

आइये हम सब भी अधिक से अधिक मतदान करने के लिए खुद सजग हों, औरों को भी जागरूक करें. 



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बुधवार, 24 जनवरी 2018

राष्ट्रीय बालिका दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को सादर नमस्कार। 
राष्ट्रीय बालिका दिवस (अंग्रेज़ी:National Girl Child Day) 24 जनवरी को मनाया जाता है। 24 जनवरी के दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है। इस दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थी इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। यह निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिया गया है। आज की बालिका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है चाहे वो क्षेत्र खेल हो या राजनीति, घर हो या उद्योग। राष्ट्रमण्डल खेलों के गोल्ड मैडल हो या मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर आसीन होकर देश सेवा करने का काम हो सभी क्षेत्रों में लड़कियाँ समान रूप से भागीदारी ले रही है।

"हर क्षेत्र में लड़की आगे, फिर क्यों हम लड़की से भागें।"




~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

नमन उस नामधारी गुमनाम को : ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की १२०वीं जयंती है. उनको बुलेटिन परिवार की तरफ से श्रद्धा-सुमन अर्पित हैं.

इस देश में ही क्या, समूचे विश्व में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के अतिरिक्त शायद ही कोई और होगा जिसकी मृत्यु पर आज तक संदेह बना हुआ है. इसको एक तरह की सरकारी मान्यता देने के बाद कि नेता जी की मृत्यु १८ अगस्त १९४५ को एक विमान दुर्घटना में हो गई थी, अधिसंख्यक लोगों द्वारा इसे स्वीकार कर पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा था और ये स्थिति आज भी बनी हुई है. नेताजी की मृत्यु की खबर और बाद में उनके जीवित होने की खबर के सन्दर्भ में सामने आते कुछ तथ्यों ने भी समूचे घटनाक्रम को उलझाकर रख दिया है. जहाँ एक तरफ नेताजी की मृत्यु एक बमबर्षक विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने पर बताई जा रही है वहीं ताईवानी अख़बार सेंट्रल डेली न्यूज़ से पता चलता है कि १८ अगस्त १९४५ के दिन ताइवान (तत्कालीन फारमोसा) की राजधानी ताइपेह के ताइहोकू हवाई अड्डे पर कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ था. इसी तथ्य पर हिन्दुस्तान टाइम्स के भारतीय पत्रकार (मिशन नेताजी से जुड़े) अनुज धर के ई-मेल के जवाब में ताईवान सरकार के यातायात एवं संचार मंत्री लिन लिंग-सान तथा ताईपेह के मेयर ने जवाब दिया था कि १४ अगस्त से २५ अक्तूबर १९४५ के बीच ताईहोकू हवाई अड्डे पर किसी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है. (तब ताईहोकू के इस हवाई अड्डे का नाम मात्सुयामा एयरपोर्ट था और अब इसका नाम ताईपेह डोमेस्टिक एयरपोर्ट है.) नेताजी की मृत्यु को अफवाह मानने वालों का मानना है कि जिस शव का अंतिम संस्कार किया गया वो शव नेताजी का नहीं वरन एक ताईवानी सैनिक इचिरो ओकुरा का था जो बौद्ध धर्म को मानने वाला था. इसी कारण बौद्ध परम्परा का पालन करते हुए ही उसका अंतिम संस्कार मृत्यु के तीन दिन बाद नेताजी के रूप में किया गया. इस विश्वास को इस बात से और बल मिलता है कि सम्बंधित शव का अंतिम संस्कार चिकित्सालय के कम्बल में लपेटे-लपेटे ही कर दिया गया था, जिससे किसी को भी ये ज्ञात नहीं हो सका कि वो शव किसी भारतीय का था या किसी ताईवानी का.


नेताजी की कार्यशैली, उनकी प्रतिभा, कार्यक्षमता को जानने के बाद उनके प्रशंसकों ने नेताजी की उपस्थिति को विभिन्न व्यक्तियों के रूप में स्वयं से स्वीकार किया है. इसका सशक्त उदाहरण गुमनामी बाबा के रूप में देखा जा सकता है. समय-समय पर गुमनामी बाबा के सामानों की जाँच के लिए भी आवाज़ उठी. अब फ़ैजाबाद के डबल लॉक में रखे गुमनामी बाबा के सामानों के खुलासे ने उम्मीद जगाई है कि शायद नेताजी का सच अब सामने आ सके. सूचीबद्ध किये गए सामानों में परिवार के फोटो, अनेक पत्र, न्यायालय से मिले समन की वास्तविक प्रति से उनके नेताजी के होने का संदेह पुष्ट होता है. इसी तरह गोल फ्रेम के चश्मे, मँहगे-विदेशी सिगार, नेताजी की पसंदीदा ओमेगा-रोलेक्स की घड़ियाँ, जर्मनी की बनी दूरबीन-जैसी कि आज़ाद हिन्द फ़ौज अथवा नेताजी द्वारा प्रयुक्त की जाती थी, ब्रिटेन का बना ग्रामोफोन, रिकॉर्ड प्लेयर देखकर सहज रूप से सवाल उभरता है कि एक संत के पास इतनी कीमती वस्तुएँ कहाँ से आईं? इन सामानों के अलावा आज़ाद हिन्द फ़ौज की एक यूनिफॉर्म, एक नक्शा, प्रचुर साहित्यिक सामग्री, अमरीकी दूतावास का पत्र, नेताजी की मृत्यु की जाँच पर बने शाहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्टें आदि लोगों के विश्वास को और पुख्ता करती हैं.


फ़ैजाबाद के रामभवन में प्रवास के दौरान किसी के भी सामने प्रत्यक्ष रूप में न आने वाले भगवन अथवा गुमनामी बाबा के देहांत की खबर वर्ष १९८५ में आग की तरह समूचे फ़ैजाबाद में फ़ैल गई और लोग उनके अंतिम दर्शनों के लिए अत्यंत उत्सुक थे. ऐसे में भी उस रहस्यमयी व्यक्तित्व का रहस्य बनाये रखा गया और उनका अंतिम संस्कार सरयू नदी किनारे कर दिया गया. देश का सच्चा सपूत आज़ादी के बाद भी भले ही गुमनाम बना रहा किन्तु उनकी भतीजी ललिता बोस और देशवासी रामभवन में मिले सामानों के आधार पर गुमनामी बाबा को ही नेताजी स्वीकारते रहे. ये महज संयोग नहीं कि इनके लम्बे संघर्ष पश्चात् सरकार द्वारा गुमनामी बाबा के २७६१ सामानों की एक सूची बनाई गई जो फैजाबाद के सरकारी कोषागार में रखे हुए हैं. रामभवन के उत्तराधिकारी एवं नेताजी सुभाषचंद्र बोस राष्ट्रीय विचार केंद्र के संयोजक शक्ति सिंह द्वारा १३ जनवरी २०१३ को याचिका दाखिल कर अनुरोध किया कि भले ही ये सिद्ध न हो पाए कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे किन्तु गुमनामी बाबा के सामानों के आधार पर कम से कम ये निर्धारित किया जाये कि वो रहस्यमयी संत आखिर कौन था? न्यायालय के आदेश पश्चात गुमनामी बाबा के २४ बड़े लोहे के डिब्बों और ८ छोटे डिब्बों अर्थात कुल ३२ डिब्बों में संगृहीत सामानों को जब सामने लाया गया तो देश के एक-एक नागरिक को लगने लगा कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे. न्यायालयीन आदेश पर इस सामान को संग्रहालय के रूप में सार्वजनिक किया जाना है और ये भी लोगों के विश्वास की जीत ही है किन्तु अंतिम विजय का पर्दा उठाना अभी शेष है.


इस आशा और विश्वास के साथ कि इस रहस्य से पर्दा उठे, आज की बुलेटिन आप सबके समक्ष प्रस्तुत है.... जयहिन्द...

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