नमस्कार
साथियो,
आज
कुछ हल्का-फुल्का सा. इधर कुछ दिनों से महसूस हो रहा था कि कुछ लोगों में चापलूसी
की जबरदस्त प्रतिभा होती है. बस अवसर मिलते ही उसे बाहर निकालने की देर होती है.
इस एक कहानी से आप सब समझ लेंगे. हाँ, इसका सन्दर्भ किसी राजनीति से न लगाने
लगिएगा. बस पढ़िए और हँसिये.
एक
थे राजा साहब. आये दिन अपनी छर्रे वाली बन्दूक लेकर निकल पड़ते शाम को, अपने अनगिनत चापलूसों के साथ. उड़ती हुई चिड़ियों के झुण्ड पर फायर झोंकते. आसमान
में फैलते छर्रे किसी न किसी चिड़िया को घायल कर जमीन पर गिरा देते.
चापलूस
चिल्लाते-
वाह-वाह!!! क्या निशाना लगाया है मालिक... क्या निशाना है मालिक.
+
एक
दिन गड़बड़ हो गई, पता नहीं चिड़ियों से हुई या फिर छर्रों से हुई
या फिर उस राजा से. उड़ती चिड़ियों के झुण्ड पर फायर झोंका. कोई भी चिड़िया घायल न हुई.
दोबारा
दूसरे झुण्ड पर फायर झोंका, फिर वही परिणाम.
कई-कई
बार, कई-कई झुंडों पर छर्रे झोंके मगर एक भी चिड़िया घायल होकर
जमीन पर न गिरी.
अब...
अब क्या, चापलूस परेशान.. सशंकित कि मालिक की तारीफ कैसे करें?
तभी
उन चापलूसों की भीड़ में से उच्च कोटि का चापलूस बाहर निकला और अपने मालिक के सामने
आकर बड़े गर्व से बोला-
वाह साहब जी!!! क्या बचा-बचा के मारा है, सभी झुंडों में. एक चिड़िया को भी
घायल न होने दिया.
राजा
प्रसन्न हुआ और ख़ुशी-ख़ुशी अन्य मुदित चापलूसों संग घर लौट पड़ा.
++
उस राजा को झूठे ही प्रसन्न
होने दीजिये. आप प्रसन्न होइए आज की वास्तविक बुलेटिन के साथ.
++++++++++
इस समय भी सारे चापलूस प्रतिभाशाली एक ही ट्रेन में सवार है :) बढ़िया।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
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