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शनिवार, 11 नवंबर 2017

मैंने तुमसे तो कभी पंख नहीं माँगे




चलो मान लिया 
मेरे पास  परियों जैसे पंख नहीं
पर अगर मुझे लगता है 
कि मैं उड़ान भर सकती हूँ 
तो तुम 
मुझे पंखहीन होने का एहसास क्यूँ देते हो ?!
मैंने तुमसे तो कभी पंख नहीं माँगे 
जो बेशक 
तुम्हारे पास भी नहीं थे !
और मैंने तुम्हें एहसास भी नहीं कराया 
पंखहीन होने का 
नहीं गिराया तुमको किसी की नज़र में 
या तुम्हारी खुद की नज़र में !
तुम्हें शायद ये  ज्ञात न हो 
कि उड़ान मन की होती है 
मन की ताकत ही 
उड़ने का हौसला देती है 
पंख होने से क्या 
यदि मन ही न उड़ना चाहे !
हौसला अपना होता है मित्र,
कोई विशेष बनकर जन्म नहीं लेता 
उसकी कर्मठता उसे विशेष बनाती है 
तुम ही कहो  -
पालने में बुद्ध की जीवनगाथा लिखी थी क्या ?


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उम्र चौदह की होने को है... - प्रतिभा की दुनिया - blogger

मृत्यु के से बर्फ़ीले फैलाव पर
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हृदय
चीखना चाहता है
फूट-फूट कर
रोना चाहता है
ऐसी सहूलियतें कहाँ
जीवन की कँटीली राह में
कि रुक कर
रो लिया जा सके
सब कुछ स्थगित कर
अपना हो लिया जा सके
जीवन की निरीहता
सालती है
कैसे-कैसे तो साँचों में पीड़ा खुद को
ढ़ालती है
एक साँस के बाद दूसरी आ सके
इसे संभव करने को
टूटे मन से ही
टूटे मन को
कलम लिखने लगती है
कविता सुनाई पड़ती है
वो धुंधली आँखों को
दिखने लगती है
स्थगित हो जाता है गति का सत्य
विराम की पीड़ा बेध जाती है
उस विकटता में
कविता स्नेहिल रूदन बन आँखों से बरस जाती है
कि
अवश्यम्भावी होकर भी
चीख नहीं निकलती
वो वहीँ दबी है
हृदय की मिट्टी में
दरअसल
टूटे-फूटे शब्द ये
उसी चीख का परिवर्तित रूप हैं
कविता
मृत्यु के से बर्फ़ीले फैलाव पर
झुरमुटों से होकर पड़ती
अजानी धूप है.

1 टिप्पणी:

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