मनमोहन भाटिया जी को मैं हमेशा पढ़ती हूँ, नियम से वे मुझे अपनी रचनाएँ मेल करते हैं ...
निष्ठा से प्रायः हर दिन लिखते हुए मैंने देखा है - मनमोहन भाटिया, सुशील कुमार जोशी और देवेंद्र कुमार पांडेय को ...इन्हें पढ़ते हुए बहुत ही अच्छा लगता है !
सुबह के सात बजे सुरिंदर कमरे में समाचारपत्र पढ़ रहे थे उनके पुत्र ने एक वर्षीय पौत्र को सुरिंदर की गोद मे दिया।
"चलो दादू को गुड मॉर्निंग बोलो।"
पौत्र शौर्य दा-दा कहते हुए समाचारपत्र को अपने नन्हे हाथों में लेकर मसल देता है जिस कारण समाचारपत्र फट जाता है। फटे समाचारपत्र को देख शौर्य खुशी से हंसने लगता है। शौर्य के साथ सुरिंदर खेलने लगते हैं और दोनों जोर से हंसते हैं। शौर्य की दादी सुषमा पूजा समाप्त करके शौर्य को गोद में लेती है।
"आप समाचारपत्र आराम से पढ़ो। मैं इसको संभालती हूं।"
अभी सुरिंदर अलग-अलग फटे हुए पन्नों को जोड़ रहे थे तभी उनकी पांच वर्षीय पौत्री सुहानी आकर सुरिंदर से चिपक जाती है।
"गुड मॉर्निंग दादू।"
"गुड मॉर्निंग सुहानी।"
गुड मॉर्निंग कह कर सुहानी दादा सुरिंदर के कंधे पर चढ़ जाती है।
"दादू आपके सिर के बाल कहां गए?" सुहानी ने सुरिंदर के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा।
"आपने खींचे थे इसलिए सब उड़ गए।"
"दादू झूठ बोल रहे हो, मैंने कब खींचे हैं। मैं तो कल आई हूं। बाल तो कल भी नही थे।" कह कर सुहानी सुरिंदर के कंधे पर चढ़ कर बैठ जाती है और सिर पर हाथ फेरते हुए बाल खींच लेती है।"
"सुहानी बेटे, बाल मत खींचो, दर्द होता है। आप मेरे सिर की चम्पी करो।" सुहानी मस्ती में दादा सुरिंदर के सिर की चम्पी करते हुए बाल भी खींच लेती है। सुरिंदर को दर्द होता है फिर भी वे सुहानी के साथ मस्ती करते हैं।
सुरिंदर अपने पौत्र और पौत्री के संग मस्ती करते हैं। सुरिंदर की पुत्रवधू सुहानी को डांट कर डाइनिंग टेबल पर दूध पीने के लिए बिठाती है। सुरिंदर स्नान करने जाते है। सुहानी मस्ती में दूध पीते हुए कप गिरा देती है। कप टूट जाता है। सुहानी मां से डांट खाती है और रोते हुए दादी की गोद मे छुप जाती है।
सुरिंदर और सुषमा सेवा निवृति के पश्चात अकेले जीवन व्यतीत कर रहे है। शादीशुदा पुत्र और पुत्री अपने परिवार संग दूसरे शहर में रहते हैं। वर्ष दो के बाद कभी-कभी मिलने आते है तब घर मे रौनक लग जाती है वर्ना दोनो बूढे पति-पत्नी सारा दिन दीवारें ताकते हुए टीवी देखते हैं।
आज पोते-पोती संग सुरिंदर चहक रहे हैं। स्नान के बाद सुरिंदर पूजा में बैठते हैं तब शौर्य गोद मे मस्ती में कभी ताली बजाता है कभी गोदी से निकलने की कोशिश करता है। सुहानी बगल में बैठ कर मंदिर की घंटी बजाने में मस्त है।
नाश्ता करने के पश्चात सुरिंदर सुषमा सुहानी और शौर्य को लेकर बाजार जाते हैं और उनके लिए कपड़े और खिलौने खरीदते हैं। दोहपर के समय घर आकर खाने के पश्चात आराम करते हैं।
"सुहानी कल रविवार है तुम्हें चिड़ियाघर दिखलाते हैं।"
"वहां क्या होता है दादू?" सुहानी उत्सुकता में सुरिंदर से चिपक जाती है।
"वहां आपको शेर, हाथी, ज़ेबरा, दरियाई घोड़ा, बंदर और बहुत सारे पशु-पक्षी नजर आएंगे। आपको बहुत मजा आएगा।"
"सब सच्ची के होंगे दादू?"
"हां सच्ची के होंगे।"
"मुझे डर लगेगा दादू।"
"डर नही लगेगा क्योंकि एक तो हम आपके साथ होंगे और उनको पिंजड़े या बाडे में रखा जाता है। हम सबको दूर से देखेंगे।"
अगले दिन सुरिंदर सुहानी को चिड़ियाघर लेकर जाते हैं। अभी तक सुहानी ने जानवर टीवी पर देखे थे, आज उनको सामने देख अति प्रसन्न हुई। पांच वर्षीय सुहानी जल्दी थक गई तब सुरिंदर उसके साथ घर चले गए। घर आकर सुहानी खुशी में झूमते हुए सबको बताती है कि उसने शेर देखा।
हर रोज सुबह सुहानी और शौर्य के साथ समीप के पार्क जाते। सुहानी को झूला झुलाते।
एक सप्ताह बीतते पता ही नही चला और बच्चों के वापस जाने का समय हो गया। झलकती आंखों के साथ सुरिंदर ने बच्चों को विदा किया।
बच्चों के जाने के पश्चात सुरिंदर और सुषमा अकेले पढ़ गए।
"बच्चे अपने साथ रौनक ले गए।" सुषमा ने सुरिंदर के कंधे पर हाथ रख कर कहा।
बालकनी में समाचारपत्र पढ़ते हुए सुरिंदर ने चश्मा और समाचारपत्र टेबल पर रखते हुए कहा "घर सूना हो गया।"
"रौनक बच्चों से होती है। समय पंख लगा कर उड़ गया। एक सप्ताह फुरसत ही नही मिली और अब करने को कोई काम नही।"
"सुषमा सेवा निवृति के पश्चात समय व्यतीत करने की समस्या का कोई समाधान नही है। बच्चों के साथ संयुक्त परिवार में मन लगा रहता है। अकेलेपन की कोई दवा नही सुषमा। पूरे दिन में दो से तीन घंटे का काम है और बाकी समय किताबे पढ़ने और टीवी देखने मे बिताना पड़ता है।"
"अब उम्र के इस पड़ाव में हकीकत से मुंह नही मोड़ सकते। सच्चाई स्वीकार करके प्रभु वंदन करते जीवन बिताना है।"
बच्चों से कभी कभार फोन पर बात हो जाती है तो चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
एक दिन शाम को बाजार से फल-सब्जी और रसोई का सामान खरीद कर सुरिंदर और सुषमा घर लौट रहे थे। सोसाइटी के गेट पर भीड़ थी। रिक्शे से वहीं उतर गए। पुलिस भी खड़ी थी और लोग खुसर-फुसर कर रहे थे। पूछने पर पता चला कि एक मकान में चोरी हो गई। मकान में रहने वाला परिवार शादी में दूसरे शहर गए थे। दो दिन मकान में ताला लगा था। जब वापिस आये तब चोरी का पता चला। सोसाइटी के चौकीदारों पर शक की सुई घूम गई, जिन्हें हर मकान और उनके परिवार के आने-जाने की पूरी जानकारी होती है। पुलिस चौकीदारों से पूछताछ कर रही थी। सुरिंदर और सुषमा घर आ गए।
"सुषमा अब हम दोनों को चौकन्ना रहना चाहिए। दिन-दहाड़े चोरियां और बुजर्गो पर हमले हो रहे हैं। चोरी के समय बुजुर्गों पर कातिलाना हमला अब आम बात हो गई है।" सुरिंदर ने चिंता जाहिर की।
"सुरिंदर हमारे यहां तो कोई नौकर भी नही है। बुढ़ापे में समय काटने के लिए घर के सभी काम अपने हाथों से करते हैं। सिर्फ झाड़ू-पोंछे के लिए एक समय माई आती है।" सुषमा ने कह कर सुरिंदर को तसल्ली दी।
"अनजान व्यक्तियों को घर मे नही घुसने देना। मुख्य दरवाजे पर अतिरिक्त सुरक्षा का प्रबंध करते हैं।"
"जो होना है सुरिंदर हो ही जायेगा, कितनी ही मोटे ताले जड़ दो। कंस के लाख पहरों के बावजूद कृष्ण सुरक्षित यशोदा के घर पहुंच गए।" सुषमा कह कर रसोई में चाय बनाने लगी।
कुछ दिन बाद सुरिंदर और सुषमा बालकनी में शाम की चाय पी रहे थे। घर की घंटी बजी, दरवाजा खोला तो पुलिस खड़ी थी। सुरिंदर आशंकित और अचंभित हो गया। वह पुलिस की शक्ल देखने लगा। पुलिस की वर्दी पर लिखा था। "अजय दहिया"
"जी कहिए क्या आपको मेरे से कोई काम है?" सुरिंदर ने गला साफ करते हुए पूछा।
"बस आपके पांच मिनट लूंगा। अंदर बैठ कर बात करते हैं।"
सुरिंदर और अजय दाहिया सोफे पर बैठते है। सुषमा चाय पूछती है।
"नही आंटी चाय नही बस पानी, वो भी सादा। ठंडा फ्रिज का नही चलेगा।"
पानी पीने के बाद अजय दाहिया ने सुरिंदर को संबोधित किया।
"अंकल आजकल शहर में चोरी और बुजुर्गों पर हमलों की वारदात बढ़ गई है। पुलिस ने एक नई योजना बनाई है जिसमें हम थाना क्षेत्र में रहने वाले अकेले रह रहे बुजुर्गों की एक लिस्ट बना रहे हैं। हमें आपका नाम, पता और संपर्क नंबर चाहिए। आप हमें जरूरत के समय इन फोन नंबरों पर फोन कर सकते हैं। आपकी तबीयत ठीक न हो, हम आपको डॉक्टर या अस्पताल लेकर जाएंगे। केमिस्ट से दवा ला कर देंगे। समय-समय पर थाने से कोई सिपाही आपका हालचाल पूछने आएगा। अब आप समस्या बताएं जिनका हम समाधान ढूंढ सके और आपकी मदद कर सकें।"
"पुलिस की पहल और योजना का मैं स्वागत करता हूं।" सुरिंदर ने पुलिस का फार्म भर दिया।
"इस योजना को अधिक सफल बनाने के लिए आप सुझाव दीजिए।"
"बेटा इस उम्र में आकर अकेले रह रहे हम बुजुर्गों की बस एक समस्या अकेलेपन की है। मकान अपना है, दाल-रोटी मिल जाती है। बच्चे दूर हैं, मन उचाट रहता है। टीवी भी कितना देखें, बार-बार सारा दिन वोही कार्यक्रम दोराहे जाते हैं। बच्चों का कोई दोष नही है, नौकरी और व्यापार के लिए दूसरे शहर और देश जाना पड़ता है। बच्चों के बिन घर सूना लगता है और काटने को दौड़ता है। अकेलापन समस्या है। इस उम्र में अधिक काम कर नही सकते।" कह कर सुरिंदर और सुषमा की आंखें नम हो गई।
"आज सब के साथ यही समस्या है।" कह कर अजय दाहिया ने प्रस्थान किया।
सुरिंदर अपने मोबाइल पर सुहानी और शौर्य की तस्वीरों को देखते विचारों में डूब जाते हैं।
सुशील कुमार जोशी
किसी दिन तो
सब सच्चा
सोचना छोड़
दिया कर
कभी किसी
एक दिन
कुछ अच्छा
भी सोच
लिया कर
रोज की बात
कुछ अलग
बात होती है
मान लेते हैं
छुट्टी के
दिन ही सही
एक दिन
का तो
पुण्य कर
लिया कर
बिना पढ़े
बस देखे देखे
रोज लिख देना
ठीक नहीं
कभी किसी दिन
थोड़ा सा
लिखने के लिये
कुछ पढ़ भी
लिया कर
सभी
लिख रहे हैं
सफेद पर
काले से काला
किसी दिन
कुछ अलग
करने के लिये
अलग सा
कुछ कर
लिया कर
लिखा पढ़ने में
आ जाये बहुत है
समझ में नहीं
आने का जुगाड़
भी साथ में
कर लिया कर
काले को
काले के लिये
छोड़ दिया कर
किसी दिन
सफेद को
सफेद पर ही
लिख लिया कर
‘उलूक’
बकवास
करने
के नियम
जब तक
बना कर
नहीं थोप
देता है
सरदार
सब कुछ
थोपने वाला
तब तक
ही सही
बिना सर पैर
की ही सही
कभी अच्छी भी
कुछ बकवास
कर लिया कर ।
लिखना इतना भी आसान नहीं हैं। बह्त सारे बड़े लोगों के बीच बच्चों का कुछ भी कह देना। बड़े सारे बच्चों के कहे पर ध्यान दें जरूरी नहीं होता है। कुछ बड़े बच्चों जैसे होते हैं कुछ बच्चे बड़े होते हैं। जो भी है । कुछ लोगों के बीच कुछ नहीं होता है मगर अच्छा लगता है। अच्छा बना रहे । आभार सारा गणेश जी के लिये ।
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
जवाब देंहटाएंहमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर
धन्यवाद. सुशील जी का लिखा तो प्रायः दिख जाता है भाटिया जी को अधिक नहीं पढ़ा.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही !
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