सभी ब्लॉगर्स को सादर नमस्कार।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
शंकरदास केसरीलाल 'शैलेन्द्र' (जन्म: 30 अगस्त, 1923 रावलपिंडी, (पाकिस्तान); मृत्यु: 14 दिसंबर, 1966 मुंबई) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार थे। ‘होठों पर सच्चाई रहती है, दिल में सफाई रहती है', 'मेरा जूता है जापानी,' ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ जैसे दर्जनों यादगार फ़िल्मी गीतों के जनक शैलेंद्र ने महान् अभिनेता और फ़िल्म निर्माता राज कपूर के साथ बहुत काम किया
अगस्त सन् 1947 में श्री राज कपूर एक कवि सम्मेलन में शैलेन्द्र जी को पढ़ते देखकर प्रभावित हुए। और फ़िल्म 'आग' में लिखने के लिए कहा किन्तु शैलेन्द्र जी को फ़िल्मी लोगों से घृणा थी। सन् 1948 में शादी के बाद कम आमदनी से घर चलाना मुश्किल हो गया।[1] इसलिए श्री राज कपूर के पास गये। उन दिनों राजकपूर बरसात फ़िल्म की तैयारी में जुटे थे। तय वक्त पर शैलेन्द्र राजकपूर से मिलने घर से निकले तो घनघोर बारिश होने लगी। क़दम बढ़ाते और भीगते शैलेन्द्र के होंठों पर ‘बरसात में तुम से मिले हम सनम’ गीत ने अनायास ही जन्म ले लिया। अपने दस गीत सौंपने से पहले शैलेन्द्र ने इस नए गीत को राजकपूर को सुनाया। राजकपूर ने शैलेन्द्र को सीने से लगा लिया। दसों गीतों का पचास हज़ार रुपये पारिश्रमिक उन्होंने शैलेन्द्र को दिया। नया गीत बरसात का टाइटिल गीत बना[2]। गीत चले, फिर क्या था, उसके बाद शैलेन्द्र जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कम लोग ये जानते होंगे कि शैलेंद्र ने राजकपूर अभिनीत 'तीसरी कसम' फ़िल्म का निर्माण किया था। दरअसल, शैलेन्द्र को फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' बहुत पसंद आई। उन्होंने गीतकार के साथ निर्माता बनने की ठानी। राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर 'तीसरी कसम' बना डाली। खुद की सारी दौलत और मित्रों से उधार की भारी रकम फ़िल्म पर झोंक दी। फ़िल्म डूब गई। कर्ज़ से लद गए शैलेन्द्र बीमार हो गए। यह 1966 की बात है। अस्पताल में भरती हुए। तब वे ‘जाने कहां गए वो दिन, कहते थे तेरी याद में, नजरों को हम बिछायेंगे’ गीत की रचना में लगे थे। शैलेन्द्र ने राजकपूर से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की। वे बीमारी में भी आर. के. स्टूडियो की ओर चले। रास्ते में उन्होंने दम तोड़ दिया। यह दिन 14 दिसंबर 1966 का था। मौके की बात है कि इसी दिन राजकपूर का जन्म हुआ था। शैलेन्द्र को नहीं मालूम था कि मौत के बाद उनकी फ़िल्म हिट होगी और उसे पुरस्कार मिलेगा।
14 दिसंबर, 1966 को बीमार शैलेन्द्र राजकपूर से मिलने आर.के. स्टूडियो की ओर जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने दम तोड़ दिया। काल के गाल में एक दिन जाना तो सभी को होता है पर शैलेन्द्र जैसे गीतकार के चले जाने से भारतीय सिनेमा में आया ख़ालीपन कभी भी न भर पायेगा। ये जानते हुये भी कि उनके लिखे इन शब्दों का सच होना असंभव है, चलिये एक बार दुहरा लेते हैं उनके उन असंभव शब्दों को -
“ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना…..”
आज महान गीतकार शैलेन्द्र जी के 94वें जन्मदिवस पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं। सादर।।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
लावारिस देश
स्कूल जाती बच्चियाँ।
नया सवेरा
गलत ईंट
गीत अंतर में छिपा है
राम और रहीम को एक साथ श्रद्धाँजलि देने का इस से अच्छा मौका कब और कहाँ मिल पाता है
स्कूल जाती बच्चियाँ।
नया सवेरा
गलत ईंट
गीत अंतर में छिपा है
राम और रहीम को एक साथ श्रद्धाँजलि देने का इस से अच्छा मौका कब और कहाँ मिल पाता है
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
नमन शैलेंद्र को उनके अदभुद गीतों को याद करते हुऐ। आभार हर्षवर्धन 'उलूक' के सूत्र को बुलेटिन में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंगीतकार शैलेंद्र के जीवन से जुड़ी यादगार दास्तान को पढवाने के लिए आभार, उन्हें शत शत नमन. विविधताओं से भरे पठनीय सूत्रों के मध्य मुझे शामिल करने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंएक महान गीतकार शैलेन्द्र जी के 94वें जन्मदिवस पर शत-शत नमन!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
धन्यवाद ब्लॉगबुलेटिन मेरी ब्लॉगपोस्ट को इस संकलन में शामिल करने के लिए, शैलेन्द्र पर एक अच्छा लेख लिखा है आपने...बहुुुत खूब
जवाब देंहटाएंशैलेन्द्रजी वाली पोस्ट मन भीगो गई।
जवाब देंहटाएंशैलेन्द्र जी के गीत आज भी अच्छे लगते है। अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंविडंबना ही तो है, अपने निर्माता को खा कर फिल्म अमर हो गयी !!
जवाब देंहटाएंशैलेन्द्र जी के गीत मुझे भी पसंद हैं । मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार।
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