ब्लॉग अपनी जगह है
शब्दों से प्यार भी है
पर वक़्त बदला
शब्दों के जंगल कटे
ब्लॉग से लोग फेसबुक तक आये
लिखना था
लेकिन,
हर तरफ ऊँचे ऊँचे घर
छोटी बालकनी
वह भी मुश्किल से
तो आउटडोर से
इनडोर गमले लगने लगे
अर्थात
शब्दों के बोनसाई होने लगे
अमीरी झलकती हुई
देखते देखते
सब कबीर और रहीम हो गए
...
हो गए
पर
असली कबीर के लिए
रहीम के लिए
उनके पन्नों को पलटना होगा,
तभी
जानेंगे
ब्लॉग और फेसबुक का फर्क !
कई लोगों ने लिखना बंद कर दिया
भीड़ में उनकी साँसें घरघराने लगी
उनकी साँसों को समझने के लिए पीछे मुड़कर देखना होगा .... अरुण मिश्रा
शब्दो के पंख............................. ARUN
कहते हैं,
"कभी कभी मन के भावों को शब्दों के पंख देने का प्रयास कर लेता हूँ."
जमाना सचमुच बदल गया !!
मंजिल किधर नहीं खबर बस चलते जा रहे लोग !
परवाह किसे क्या पथ हो बस चलते जा रहे लोग !!
अभिव्यक्ति भी नहीं पीड़ा की अभ्यस्त हो चला जीवन अब
ये लाचारी है या फिर नाकामी बस चलते जा रहे लोग !!
क्या हो गया हवाओं को किसके संकेत से चलती हैं ?
झोकों को हवा का रुख समझे बस चलते जा रहे लोग !!
नज़र लग गयी जमाने को या ज़माना सचमुच बदल गया
या बदले जमाने को पकड़ने को बस चलते जा रहे लोग !!
जमाना बहती गंगा है तुम भी धो लो हाथ
तुम भी चलना सीख ही लो जैसे चलते जा रहे लोग !!
"हर हर बम बम ..."
सर ढको तन ढको
खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे
डस लेगा संसार.
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान को खुला ही रखना
बूढ़ा नाई युवा बैद? मत पास फटकना
सुन लो भाई राम दुहाई खोल के अपने कान
पढ़े लिखों की आज हो गयी अंग्रेजी पहचान
अंग्रेजी अधकचरी ही हो जमकर कर उपयोग
मान बढ़ेगी इज्जत होगी ऐसा समझ के बोल !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान को बंद ही रखियो
घर के अन्दर की बात किसी से कभी न कहियो
नेता देखो - तुरत सलामी देना तू मत भूल
नेता मंत्री भड़क गए तो चुभ जायेगी शूल
सरकारी अफसर से बचना कभी न लेना पंगे
तेरी पानी कीचड होगी उसकी हर हर गंगे !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान तो कान है भाई
बीवी बच्चे बाप सभी मिल करें खिंचाई
निर्धनता का रोग ख्नूब है लटके रहते कंधे
खाज़ कोढ़ में होती जब मंहगाई मारे डंडे !
ज़ेब दिखाता ठेंगा निसिदिन पेट करे फ़रियाद
बीवी देती तानें ऊपर से कर्ज़े की मार !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान को मारो गोली
उघड़े तन को नित टीवी में दिखलाती है गोरी
बेढंगी बेपर्दा करती धन चाहत की भूख
देस के हीरो बने नचनिये ! टीवी भी क्या खूब
इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने क्या नाच दिखाई
भारत माँ निर्वस्त्र हो गयी फिर भी शर्म न आयी !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार
डस लेगा संसार कान को भूल ही जाओ
बस अपनी ही बोलो बोल के छू हो जाओ
राजनीति औ नेता बन गए गाली के पर्याय
फिर भी सौंपे उन्ही के हाथों लिखने अपना अध्याय
सांप को तुमने दूध पिलाया अब हो चला वो मोटा
घेर घेर के मारे देस को भष्टाचार का सोटा !
सर ढको तन ढको खोलो मन के द्वार ......
नेत्र ढकोगे पछताओगे डस लेगा संसार.....
वाह बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
हर हर बम बम पढ़कर मन बम बम हो गया.
जवाब देंहटाएंबहन रश्मि जी
जवाब देंहटाएंआपका यह अनुग्रह जीवनपर्यंत प्रसाद सवरूप रखूँगा .
प्रणाम .
नेत्र ढ़कोगे तो डस लेगा संसार....
जवाब देंहटाएंसत्य !!
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति ./..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...।
जवाब देंहटाएंsundar
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