नमस्कार
दोस्तो,
भारतीय
स्वाधीनता संग्राम के नायकों में यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का नाम श्रद्धा-आदर
से लिया जाता है. उनका जन्म 22 फ़रवरी 1885 को चटगांव, जो अब बांग्लादेश का हिस्सा
है, में हुआ था. उनके पिता जात्रमोहन सेनगुप्त बंगाल विधान परिषद के सदस्य थे. बंगाल
में शिक्षा पूरी करने के बाद सन 1904 में यतीन्द्र मोहन इंग्लैंड गए. सन 1909 में बैरिस्टर
बनकर वापस लौटने पर उन्होंने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत और रिपन लॉ कॉलेज में
अध्यापक के रूप में कार्य करना आरम्भ किया. उन्होंने नेल्ली ग्रे नामक अंग्रेज़
लड़की से विवाह किया जो बाद में स्वाधीनता आन्दोलन में उनके साथ सक्रिय रहीं. वकालत
और अध्यापन छोड़कर वे स्वाधीनता आन्दोलन में उतर आये. उन्हें बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस
कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया. उन्होंने असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन में
सक्रिय भूमिका निभाई. स्वराज पार्टी बनने पर उनो बंगाल विधान परिषद का सदस्य चुना
गया. सन 1925 में उन्होंने कोलकाता के मेयर का पद सम्भाला. अपने कार्यों की
लोकप्रियता के चलते वे पांच बार कोलकाता के मेयर चुने गए.
स्वाधीनता
आन्दोलन में उनकी सक्रियता के चलते अंग्रेजी शासन ने उन्हें अनेक बार जेल भेजा. कई
अवसरों पर उनकी पत्नी नेल्ली सेनगुप्त भी जेल गईं. सन 1921 में सिलहट में चाय बाग़ानों
के मज़दूरों के शोषण के विरुद्ध हड़ताल करने पर उन्हें जेल भेजा गया. सन 1928 के कोलकाता
अधिवेशन में उनको बर्मा को भारत से अलग करने के सरकारी प्रस्ताव के विरोध में भाषण
देने पर गिरफ़्तार किया गया. 1930 में कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष चुने जाने पर
सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया. उनके साथ उनकी पत्नी नेली सेनगुप्त को भी गिरफ़्तार
किया गया. सन 1932 में उनको फिर बन्दी बना लिया गया. सन 1933 में कोलकाता अधिवेशन के
समय अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें मार्ग में ही गिरफ़्तार कर कोलकाता जाने से रोक दिया.
ऐसी विषम स्थिति में उनकी पत्नी नेल्ली सेनगुप्त ने अधिवेशन की अध्यक्षता की. अभी वे
अपने भाषण के कुछ शब्द ही बोल पाई थीं कि उन्हें भी गिरफ़्तार कर लिया गया.
अस्वस्थ
अवस्था में ही जेल में बन्द रहने के कारण 48 वर्ष की अल्पायु में 22 जुलाई 1933 को
रांची में यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का निधन जेल में ही हो गया. वे जीवनभर राष्ट्रीय
स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते रहने के कारण वे आज भी सबके मन-मष्तिष्क में देशप्रिय
उपनाम से बसे हुए. भारत सरकार द्वारा सन 1985 में यतीन्द्र
मोहन सेनगुप्त और उनकी पत्नी नेल्ली सेनगुप्त के सम्मान में संयुक्त रूप से एक डाक
टिकट जारी किया.
ब्लॉग
बुलेटिन परिवार की तरफ से यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त को विनम्र श्रद्धांजलि सहित आज
की बुलेटिन प्रस्तुत है.
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यतींद्र जी को विनम्र श्रद्धांजलि। सुन्दर बुलेटिन्।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंयतीन्द्र मोहन सेनगुप्त को विनम्र श्रद्धांजलि!!
कांवड़ यात्रा 2017 शामिल करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयतीन्द्र मोहन सेनगुप्त जी को मेरा भी नमन। इस सुंदर संकलन के लिए राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी, आपको बधाई।
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