सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
ख़्वाजा अहमद अब्बास (अंग्रेज़ी: Khwaja Ahmad Abbas, जन्म: 7 जून 1914 – मृत्यु: 1 जून 1987) प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और उर्दू लेखक थे। वे उन कुछ गिने चुने लेखकों में से एक हैं जिन्होंने मुहब्बत, शांति और मानवता का पैगाम दिया। पत्रकार के रूप में उन्होंने 'अलीगढ़ ओपिनियन' शुरू किया। 'बॉम्बे क्रॉनिकल' में ये लंबे समय तक बतौर संवाददाता और फ़िल्म समीक्षक रहे। इनका स्तंभ 'द लास्ट पेज' सबसे लंबा चलने वाले स्तंभों में गिना जाता है। यह 1941 से 1986 तक चला। अब्बास इप्टा के संस्थापक सदस्य थे।
1945 में ख़्वाजा साहब का एक निर्देशक के रूप में कैरियर शुरु हुआ जब उन्होंने इप्टा (इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन) के लिए 'धरती के लाल' नाम की एक फ़िल्म बनाई। यह 1943 के बंगाल में पड़े अकाल पर आधारित थी। 1951 में, उन्होंने 'नया संसार' नाम की अपनी ख़ुद की कंपनी खोल ली जो 'अनहोनी' (1952) जैसी सामाजिक प्रासंगिकता की फ़िल्मों का निर्माण करने लगी। अब्बास साहब की फ़िल्म 'राही' (1953), मुल्क राज आनंद की एक कहानी पर आधारित थी जिसमें चाय के बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की दुर्दशा को दर्शाया गया था। चेतन आनंद के लिए 'नीचा नगर' (1946) लिखने से पहले, अब्बास साहब वी. शांताराम के लिए 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी' (1946) भी लिख चुके थे। यह फ़िल्म ख़्वाजा साहब की एक कहानी 'एंड वन डिड नॉट कम बैक' पर आधारित थी जिसे उन्होंने, डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस के जीवन पर लिखा था। ख्वाजा अहमद अब्बास जी के बारे में अधिक जानने के लिए चटका लगायें....
(साभार : http://bharatdiscovery.org/india/ख़्वाजा_अहमद_अब्बास)
1945 में ख़्वाजा साहब का एक निर्देशक के रूप में कैरियर शुरु हुआ जब उन्होंने इप्टा (इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन) के लिए 'धरती के लाल' नाम की एक फ़िल्म बनाई। यह 1943 के बंगाल में पड़े अकाल पर आधारित थी। 1951 में, उन्होंने 'नया संसार' नाम की अपनी ख़ुद की कंपनी खोल ली जो 'अनहोनी' (1952) जैसी सामाजिक प्रासंगिकता की फ़िल्मों का निर्माण करने लगी। अब्बास साहब की फ़िल्म 'राही' (1953), मुल्क राज आनंद की एक कहानी पर आधारित थी जिसमें चाय के बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की दुर्दशा को दर्शाया गया था। चेतन आनंद के लिए 'नीचा नगर' (1946) लिखने से पहले, अब्बास साहब वी. शांताराम के लिए 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी' (1946) भी लिख चुके थे। यह फ़िल्म ख़्वाजा साहब की एक कहानी 'एंड वन डिड नॉट कम बैक' पर आधारित थी जिसे उन्होंने, डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस के जीवन पर लिखा था। ख्वाजा अहमद अब्बास जी के बारे में अधिक जानने के लिए चटका लगायें....
(साभार : http://bharatdiscovery.org/india/ख़्वाजा_अहमद_अब्बास)
आज ख्वाजा अहमद अब्बास जी के 103वीं जयंती पर हम सब उनके अतुलनीय कार्यों और योगदान को याद करते हुए उन्हें सादर नमन करते है।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ..... अभिनन्दन।।
नमन ख्वाजा जी को । सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को अपने बुलेटिन में शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपरिश्रम की झलक , आभार
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