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शुक्रवार, 9 जून 2017

मेरी रूहानी यात्रा और नीरज गोस्वामी



सच कहूँ तो कुछ ब्लॉग्स पर मुझे भी गए एक ज़माना सा गुज़रा 
पर सच यह भी है कभी उनका पता नहीं भूली 

नीरज गोस्वामी जी मेरे ब्लॉग लेखन के शुरूआती दौर के सहयात्री हैं, जिनको मैंने खूब पढ़ा, आज उसी पते पर हूँ, आइये मेरे साथ आप सब भी एक बार मिलिए :)


अपने ब्लॉग पर तब इन्होंने लिखा था,
"अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए."


भलाई किये जा इबादत समझ कर


सितम जब ज़माने ने जी भर के ढाये
भरी सांस गहरी बहुत खिलखिलाये

कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये

न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

खिली चाँदनी या बरसती घटा में
तुझे सोच कर ये बदन थरथराये

बनेगा सफल देश का वो ही नेता
सुनें गालियाँ पर सदा मुसकुराये

बहाने बहाने बहाने बहाने
न आना था फिर भी हजारों बनाये

गया साल 'नीरज' तो था हादसों का
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये



आप भी तो अब पुराने हो गये



दूर होंठों से तराने हो गये 
हम भी आखिर को सयाने हो गये 

यूं ही रस्ते में नज़र उनसे मिली 
और हम यूं ही दिवाने हो गये 

दिल हमारा हो गया उनका पता 
हम भले ही बेठिकाने हो गये 

खा गई हमको भी दीमक उम्र की 
आप भी तो अब पुराने हो गये 

फिर से भड़की आग मज़हब की कहीं 
फिर हवाले आशियाने हो गये 

खिलखिला के हंस पड़े वो बेसबब 
बेसबब मौसम सुहाने हो गये 

आइये मिलकर चरागां फिर करें 
आंधियां गुजरे, ज़माने हो गये 

लौटकर वो आ गये हैं शहर में 
आशिकों के दिन सुहाने हो गये 

देखकर "नीरज" को वो मुस्का दिये 
बात इतनी थी, फसाने हो गये

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुन्दर। आभार परिचय कराने के लिये। कैसे छूट गया ये ब्लॉग पता नहीं?

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  2. रश्मि जी उस सुनहरे दौर की याद ताजा करने का शुक्रिया, उस दौर में बने रिश्ते अब तक कायम हैं! मेरी ग़ज़लें यहां देख गदगद हूं! आपका आभारी हूं!
    स्नेह बनाये रखें
    नीरज

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  3. मेरी रूहानी यात्रा में नीरज गोस्वामी जी की रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद !

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