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मंगलवार, 16 मई 2017

मेरी रूहानी यात्रा रोहित रूसिया

कुछ इसने 
कुछ उसने 
शब्दों के पुष्ट बीज लगाए थे 
खाद भरपूर 
सिंचाई अच्छी 
फसल का स्वाद अनोखा  ... 

आटे की रोटी के बाद यानि पेट भरने के बाद शब्दों की रोटी मन मस्तिष्क को बहुत कुछ देती है, क्यूँ बंजर हुआ जाता है मन मस्तिष्क ?
बीज अब भी हैं 
फसल आज भी लहलहा रही है 
चलो न आँखों से काटते हैं  ... 


रोहित रुसिया ने केन्द्रीय विद्यालय में अध्ययन के दौरान अपने चित्रकला शिक्षक श्री आसिफ के सान्निध्य में कुछ बारीकियाँ सीखीं, जिन्हें अपने परिश्रम और अभ्यास से विकसित कर एक स्वतंत्र शैली का निर्माण किया। लोक रंग में बसी उनकी रेखाएँ मन की संवेदना को बारीकियों से रचती है और उनके रंग संवादों को गहराई से व्यक्त करते हैं। यही कारण है कि उनके कविता पोस्टर इतने सजीव एवं आकर्षक होते हैं।

उनके कविता पोस्टरों की अबतक दुबई ( यु ऐ.ई ) ,मॉरिशस ,लखनऊ , भोपाल, छिंदवाड़ा के साथ साथ देश के अन्य स्थानों पर प्रदर्शनियाँ आयोजित की जा चुकी हैं। चित्रकला के अतिरिक्त लेखन,फोटोग्राफी और संगीत में भी रुचि। अब तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता, गीत-गजल और रेखाचित्रों के प्रकाशन के अतिरिक्त आकाशवाणी से कविताओं का नियमित प्रसारण भी हो चुका है।

अपने चित्रों के साथ रोहित रूसिया ने भावनाओं को एक नया आयाम दिया है, ब्लॉग उनका   

शब्द रंग - blogger

शब्दों के कई यायावर के संग




2 टिप्‍पणियां:

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