नमस्कार मित्रो,
आज की ये बुलेटिन हम
ही लगा रहे हैं, विशुद्ध हम ही. इसमें हमारा कंप्यूटर, हमारा हाथ, उसकी उंगलियाँ,
हमारी वैचारिकी, इंटरनेट, ब्लॉगर, अनेक साथियों की पोस्ट लिंक आदि-आदि वो सहायक
सामग्री है जो इस बुलेटिन को पूरा करने में सहयोगी है. आप सबको लग रहा होगा कि आज
की बुलेटिन कहाँ से आरम्भ हो गई? असल में वर्तमान हालात में महज एक बयान ने कि
मेरे पापा को युद्ध ने मारा है, पाकिस्तान ने नहीं, समूची सोच को दो फिर से भागों
में बाँट दिया है. हालाँकि ऐसा कई बार हुआ है मगर इस बार इसको बहुत बारीकी से
देखने की आवश्यकता है. इस बार इस तरह का बयान किसी राजनेता की तरफ से नहीं आया,
जिन्हें सत्तालोलुप मानकर समूची राजनीति को गंदगी साबित कर दिया जाता है. ऐसा बयान
किसी फ़िल्मी हस्ती की तरफ से नहीं आया, जिन्हें धनलोलुप बताकर समूचे मनोरंजन पर
काला धब्बा लगा दिया जाता है. ऐसा बयान किसी मीडियापर्सन की तरफ से भी नहीं आया,
जिन्हें टीआरपीलोलुप बताते हुए समूची मीडिया को दलाल घोषित किया जा चुका है. इस
बार ऐसा बयान एक शहीद फौजी की बेटी की तरफ से आया. उसके इस बयान के पीछे की
मानसिकता क्या है, ये वो ही बता सकती है किन्तु जिस तरह के कार्यक्रम के आयोजन से
एक विवाद उपजा और फिर उस विवादित कार्यक्रम के पार्श्व से वैचारिक द्वंद्व सामने
आया, मानसिक विकार सामने आया वो चिन्तनीय है.
राष्ट्रवाद और
राष्ट्रद्रोह जैसी अवधारणाओं में बँट चुके समाज में एकदम से सही-गलत की परिभाषाएँ
बदल दी गई हैं. अब किसी आतंकी के पक्ष में खड़ा होना भी इसलिए सही हो जाता है
क्योंकि उसका विरोध दक्षिणपंथी लोग कर रहे हैं. किसी आतंकी के समर्थन में लोगों का
हुजूम इस कारण एकत्र हो जाता है क्योंकि वो एक समुदाय विशेष से सम्बंधित है. किसी
आतंकी के आमंत्रण को लोग इसलिए भी जायज ठहराने लगते हैं क्योंकि वो अपने ही देश
में आज़ादी की माँग करता है. यहाँ देश की बात करने वाले, आतंकियों का विरोध करने
वाले, देश के टुकड़े न होने देने का ऐलान करने वाले महज इसलिए कट्टर कहलाने लगते
हैं क्योंकि वे किसी न किसी रूप में केंद्रनीत भाजपा से सम्बंधित दिखाई देने लगते
हैं. देश के भीतर देश के टुकड़े किये जाने के नारे लगते रहना क्या वास्तविक
अभिव्यक्ति है? देश के भीतर किसी आतंकी के समर्थन में जुलूस निकालना क्या वास्तविक
मानवाधिकार है? दलगत विरोध के नाम पर, व्यक्तिगत विरोध के नाम पर देश का विरोध
करना क्या वास्तविक स्वतंत्रता है? दक्षिणपंथ, वामपंथ के नाम पर खिंची बारीक रेखा
के बीच कब तक देश में आतंकियों को प्रश्रय दिया जाता रहेगा? राष्ट्रवाद और
राष्ट्रद्रोह के नाम पर कब तक सेना को पत्थरों का सामना करना पड़ेगा? अनेकानेक सत्यों
को छिपा कर कब तक देश में झूठ को प्रतिष्ठित किया जाता रहेगा?
आश्चर्य होता है
जबकि दलगत, व्यक्तिगत विरोध के नाम पर देश के विकास के लिए बनाई गई नीतियों तक का
विरोध किया जाने लगता है. राष्ट्रहित में उठाये गए कदमों का विरोध महज इसलिए किया
जाने लगता है क्योंकि उन क़दमों को लागू करने वाली सरकार को तथाकथित रूप से साम्प्रदायिक
बताया जाता रहा है. कुछ ऐसा ही उस समय हुआ जबकि केंद्र सरकार द्वारा भ्रष्टाचार,
कालाधन, जाली मुद्रा आदि की रोकथाम के लिए नोटबंदी जैसा कदम उठाया. तब भी अनेकानेक
लोगों के साथ-साथ देश के विख्यात अर्थशास्त्री ने इस कदम से जीडीपी के नकारात्मक
रूप से प्रभावित होने की बात की थी. इधर अब जबकि जीडीपी से सम्बंधित आँकड़े सामने
आये हैं तो नोटबंदी के समय की सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हुई हैं. जीडीपी अपने
स्तर को बनाये रखने में कामयाब रही. स्पष्ट समझ आ रहा है कि नोटबंदी के समय सिर्फ
विरोध करने के लिए ही विकासदर कम रहने, जीडीपी गिरने, अर्थव्यवस्था को नुकसान होने
जैसी आशंकाएँ व्यक्त की गई थीं.
बहरहाल, देश सदियों
से अपने स्वरूप में हम सबके बीच है. हजारों-हजार साल तक इसे तोड़ने की कोशिश देश के
भीतर से, देश के बाहर से होती रही मगर ऐसी ताकतें ही मिट गईं, देश सलामत रहा. विगत
कुछ वर्षों से ऐसी ताकतें जो आस्तीन का साँप बनकर, दीमक बनकर छिपी हुई थीं, वे
विरोध की राजनीति के चलते सामने आ चुकी हैं. उनकी पहचान साबित हो चुकी है.
राष्ट्रवाद, राष्ट्रद्रोह के मुद्दे से इतर सहजता से दिखाई दे रहा है कि कौन सेना
के साथ है, कौन आतंकियों के साथ है. कौन देश की आज़ादी का समर्थन कर रहा है और कौन
देश के टुकड़े किये जाने की माँग कर रहा है. ये समय ऐसे लोगों को पहचान कर अपना कदम
उठाये जाने का है न कि अनर्गल विवादों का हिस्सा बनकर अपनी ऊर्जा को नष्ट करने का.
आशा है कि जागरूक कहलाने का दम भरने वाले नागरिक ऐसा कदम उठाएंगे और देशहित में
सहयोगी बनेंगे. समझना होगा कि झूठ को कितनी बार भी दोहराया जाये वो सच नहीं हो
जाता.
इसी आशा और विश्वास
के साथ कि देश सदा विकास करेगा, देश की आज़ादी हमेशा अक्षुण्य रहेगी, आज की बुलेटिन
आपके सामने प्रस्तुत है.
++++++++++
बहुत चिन्तनीय है। कहाँ से शुरु करें देश से घर की तरफ या घर से देश की ओर? विचारणीय बुलेटिन ।
जवाब देंहटाएंविचारणीय बुलेटिन . .
जवाब देंहटाएंदेश आज वहीं है, जहाँ गुलामी के पूर्व था
जवाब देंहटाएंदुखद है, मंशा भयानक है
राजा साहब
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
चिन्तनीय व सटीक आलेख
आज की परिस्थिति को देखते हुए
कुछ भी कहना.. एक नई कहानी को जन्म देता है
सोचती हूँ... राजतत्र के बारे में
क्या वह सही था..
सादर
कुछ लोगों की कुत्सित स्वार्थपूर्ति हमेशा ही चिंता का विषय बना रहता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी विचारशील बुलेटिन प्रस्तुति
hardik dhnyavad bahut sundar charcha hamen shamil karne hetu abhar
जवाब देंहटाएंbehtareen lekh ke sath badiya links ...abhar shamil karne ke liye ..
जवाब देंहटाएंमुझे आपकी वेबसाइट पर लिखा आर्टिकल बहुत पसंद आया इसी तरह से जानकारी share करते रहियेगा|
जवाब देंहटाएंRead
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