नमस्कार मित्रो,
आज, 09 फरवरी को देश के प्रमुख एवं सम्मानित समाजसेवी बाबा आम्टे की पुण्यतिथि है.
उनका पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आम्टे था. उन्होंने समाज के परित्यक्त लोगों, कुष्ठ
रोगियों के लिये अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की. इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्य
सामाजिक कार्यों, वन्य जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन के
लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया था. उनका जन्म 26 दिसम्बर 1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में हिंगणघाट गांव में हुआ था. इनके पिता
देवीदास हरबाजी आम्टे शासकीय सेवा में लेखपाल थे. गांव में उनकी जमींदारी होने के
कारण उनका बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता. उनका लालन-पालन किसी राज्य के राजकुमार की
तरह हुआ था. रेशमी कुर्ता, सिर पर ज़री की टोपी तथा पाँव में
शानदार शाही जूतियाँ उनकी वेष-भूषा होती थी जो उनको एक आम बच्चे से अलग करती थी. अपनी
युवावस्था में उनको तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्म देखने का शौक था. अँगरेजी फिल्मों
पर लिखी उनकी समीक्षाएँ इतनी दमदार हुआ करती थीं कि एक बार अमेरिकी अभिनेत्री नोर्मा
शियरर ने भी उन्हें पत्र लिखकर दाद दी थी.
उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय
से क़ानून की पढ़ाई पूरी करके कई दिनों तक वकालत भी की. देश की आजादी की लड़ाई में
वे अमर शहीद राजगुरु के साथी रहे थे. बाद में राजगुरू का साथ छोड़कर गाँधी से मिले
और अहिंसा का रास्ता अपनाया तथा महात्मा गांधी और विनोबा भावे से प्रभावित होकर उन्होंने
सारे भारत का दौरा कर गाँवों मे अभावों में जीने वाले लोगों की असली समस्याओं को समझने
की कोशिश की. कुष्ठ रोग को जानने और समझने में ही उन्होंने अपना पूरा ध्यान लगा दिया.
चंद्रपूर, महाराष्ट्र के पास घने जंगल में उन्होंने अपनी पत्नी
साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों
के साथ आनंदवन की स्थापना की. यही आनंदवन आज बाबा आम्टे और उनके सहयोगियों के
कठिन श्रम से हताश और निराश कुष्ठ रोगियों के लिए आशा, जीवन और
सम्मानजनक जीवन जीने का केंद्र बना हुआ है. जीवनपर्यन्त कुष्ठरोगियों, आदिवासियों और मजदूर-किसानों के साथ काम करते हुए उन्होंने वर्तमान विकास के
जनविरोधी चरित्र को समझा और वैकल्पिक विकास की क्रांतिकारी जमीन तैयार की. आनन्दवन
का महामंत्र श्रम ही है श्रीराम हमारा सर्वत्र गूँजने लगा. 180 हेक्टेयर जमीन पर फैला आनन्दवन
अपनी आवश्यकता की हर वस्तु स्वयं पैदा कर रहा है. बाबा आम्टे ने आनन्दवन के अलावा और
भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है, जहाँ हजारों रोगियों की सेवा
की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है. सन 1985 में बाबा आम्टेने कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो आंदोलन भी चलाया
था. इस आंदोलन को चलाने के पीछे उनका मकसद देश में एकता की भावना को बढ़ावा देना और
पर्यावरण के प्रति लोगों का जागरुक करना था.
बाबा आम्टे को भारत सरकार
ने 1971 में पद्मश्री से तथा 1986 में पद्मभूषण से सम्मानित किया
गया. 8 जून 1991 को बाबा आम्टे ने पद्मभूषण वापस कर दिया. इसके साथ-साथ 2004 में महाराष्ट्र
सरकार के सर्वोच्च सम्मान महाराष्ट्र भूषण सहित कई सम्मानों से सम्मानित
किया गया. 1983 में अमेरिका का डेमियन डट्टन पुरस्कार, जो कुष्ठ रोग के क्षेत्र
में कार्य के लिए दिया जाने वाल सर्वोच्च सम्मान है. एशिया का नोबल पुरस्कार कहे जाने
वाले रेमन मैगसेसे से 1985 में अलंकृत किया गया. मानवाधिकार
के क्षेत्र में दिए गए योगदान के लिए 1988 में संयुक्त राष्ट्र
मानवाधिकार सम्मान दिया गया. 1990 में 8,84,000 अमेरिकी डॉलर का टेम्पलटन पुरस्कार दिया गया. यह धर्म के क्षेत्र का
नोबल पुरस्कार नाम से मशहूर है. इस पुरस्कार में विश्व में सबसे अधिक धन राशि दी जाती
है. पर्यावरण के लिए किए गए योगदान के लिए 1991 में ग्लोबल
500 संयुक्त राष्ट्र सम्मान
से नवाजा गया. 1999 में गाँधी शांति पुरस्कार दिया गया.
94 साल की आयु में उनका निधन चन्द्रपुर जिले के वड़ोरा स्थित अपने निवास में 9 फ़रवरी
2008 को हुआ.
ब्लॉग बुलेटिन परिवार
की तरफ से उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रस्तुत है आज की बुलेटिन.
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श्रद्धांजलि बाबा आम्टे।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंश्रद्धा सुमन
आभार
सादर
नर्मदा आंदोलन के प्रणेता बाबा आमटे के जीवन से जुडी ज्ञानवर्द्धक विस्तृत जानकारी एवं इस चुनिंदा ब्लॉग संकलन में मेरी पोस्ट को भी शामिल करने हेतु आभार सहित...
जवाब देंहटाएंबाबा आम्टे जी को सादर श्रद्धा सुमन!
जवाब देंहटाएंसुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
बाबा आमटे के जीवन से जुडी ज्ञानवर्द्धक विस्तृत जानकारी एवम् मेरी प्रस्तुति को भी सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार।
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