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शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

अंधा घोड़ा और हम - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

शहर के नज़दीक बने एक फार्म हाउस में दो घोड़े रहते थे. दूर से देखने पर वो दोनों बिलकुल एक जैसे दिखते थे ,पर पास जाने पर पता चलता था कि उनमे से एक घोड़ा अँधा है. पर अंधे होने के बावजूद फार्म के मालिक ने उसे वहां से निकाला नहीं था बल्कि उसे और भी अधिक सुरक्षा और आराम के साथ रखा था. अगर कोई थोडा और ध्यान देता तो उसे ये भी पता चलता कि मालिक ने दूसरे घोड़े के गले में एक घंटी बाँध रखी थी, जिसकी आवाज़ सुनकर अँधा घोड़ा उसके पास पहुंच जाता और उसके पीछे-पीछे बाड़े में घूमता. घंटी वाला घोड़ा भी अपने अंधे मित्र की परेशानी समझता, वह बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता और इस बात को सुनिश्चित करता कि कहीं वो रास्ते से भटक ना जाए. वह ये भी सुनिश्चित करता कि उसका मित्र सुरक्षित; वापस अपने स्थान पर पहुच जाए, और उसके बाद ही वो अपनी जगह की ओर बढ़ता.

दोस्तों, बाड़े के मालिक की तरह ही भगवान हमें बस इसलिए नहीं छोड़ देते कि हमारे अन्दर कोई दोष या कमियां हैं. वो हमारा ख्याल रखते हैं और हमें जब भी ज़रुरत होती है तो किसी ना किसी को हमारी मदद के लिए भेज देते हैं. कभी-कभी हम वो अंधे घोड़े होते हैं, जो भगवान द्वारा बांधी गयी घंटी की मदद से अपनी परेशानियों से पार पाते हैं तो कभी हम अपने गले में बंधी घंटी द्वारा दूसरों को रास्ता दिखाने के काम आते हैं!!

सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

9 टिप्‍पणियां:

  1. अंधे घोडे के माध्यम से रोचक तरीके से आधे-अधूरे व्यक्तियों की उपयोगिता सिद्ध करने वाली इस दिलचस्प श्रृंखला में मेरी पोस्ट भी सम्मिलित करने हेतु आभार...

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  2. सुन्दर लिंक्स. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.

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  3. बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

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