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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी .....




मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी   .....
मिट्टी जो हूँ
जन्म लेते कुम्हार भी
गढ़ती हूँ चाक पर खुद को हर बार
तोड़ती हूँ
समेटती हूँ
फिर  ...
ज़िन्दगी की चाक पर घुमाती हूँ


... 

3 टिप्‍पणियां:

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