नमस्कार मित्रो,
आज, 5 जनवरी 2017 को देश सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद
सिंह जी का 350वीं जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में मना रहा
है. निर्भीक, साहसी गुणों से संपन्न श्री गुरु गोबिंद सिंहजी
का जन्म संवत् 1723 विक्रम की पौष सुदी सप्तमी अर्थात 22 दिसम्बर सन् 1666 को हुआ
था. उनके पिता नौवें सिख गुरु गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी थी. उस समय देश में औरंगजेब
के अत्याचार चरम पर थे. हिन्दुओं पर जजिया कर लगाने के साथ ही उनको शस्त्र धारण करने
पर भी प्रतिबन्ध लगाया गया. उनको जबरन इस्लाम ग्रहण करवाया जाता था. ऐसे में एक
दिन बालक गोबिंद ने सहज एवं साहसी भाव से इस्लाम धर्म स्वीकार न करने की बात अपने
पिता से कही. बालक के इन वचनों को सुनकर गुरु तेगबहादुर का हृदय गदगद हो गया. उन्होंने
औरंगजेब तक इस्लाम ग्रहण न करने का सन्देश भिजवाया.
सन 1675 को कश्मीरी पंडितों
की फरियाद सुनकर गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक में बलिदान दिया. उस समय
गुरु गोबिंद सिंह की आयु मात्र नौ वर्ष थी. अपने पिता के बलिदान के पश्चात् गुरु गोबिंद
सिंह जी 11 नवंबर 1675 को दसवें गुरु के रूप में गद्दी पर विराजमान हुए. उन्होंने गुरु
पद को अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से गौरवान्वित किया. जनता में डर और गिरता मनोबल देखकर
उन्होंने एक ऐसे पंथ का सृजन करने का संकल्प लिया जो समूचे विश्व में विलक्षण हो. जिसके
शिष्य संसार के हजारों-लाखों लोगों में भी पहली नजर में ही पहचाने जा सकें. वे केवल
बाहर से अलग न दिखें बल्कि आंतरिक रूप में भी ऊँचे और सच्चे विचारों वाले हों. इसी
संकल्प के साथ उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा
पंथ का निर्माण किया. उन्होंने खालसा पंथ के लिए क शब्द के महत्व को
समझाते हुए सिख धर्म के लिए पाँच केश, कड़ा,
कंघा, कच्छा और कटार
निर्धारित किये. ये शौर्य, शुचिता तथा अन्याय के विरुद्ध संघर्ष
के संकल्प के प्रतीक माने गए. गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर सिंह
उपनाम लगाने की परम्परा शुरु की. इसके साथ ही वाहे गुरुजी का खालसा,
वाहे गुरुजी की फतेह नारा भी लगाया था.
यह नारा आज सिख धर्म का प्रसिद्ध नारा है. गुरु गोबिंद सिंहजी एक साहसी योद्धा के साथ-साथ
एक अच्छे कवि भी थे. इन्होंने बेअंत वाणी के नाम से एक काव्य ग्रंथ की
रचना की.
उनको ब्लॉग बुलेटिन
परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रस्तुत है आज की बुलेटिन.
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सवा लाख पर एक चढाऊँ... पटना के पावन इतिहास का एक यह अध्याय भी है, पटना साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्मस्थान! आज ३३५० वें प्रकाश पर्व पर बहुत बहुत बधाइयाँ!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं३५० वें प्रकाश पर्व की सभी को बधाई और शुभकामनाएं । सुन्दर बुलेटिन ले कर आये हैंं राजा साहब आज ।
जवाब देंहटाएं३५० वें प्रकाश पर्व की सभी को बधाई और शुभकामनाएं..आभर स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बुलेटिन.३५० वें प्रकाश पर्व की सभी को बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमुझे भी इस बुलेटिन का हिस्सा बनाने के लिए आभार.
प्रकाश पर्व की सभी को बधाईयां व शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंहँसते-ङँसते को भी इस विशेष बुलेटिन में शामिल करने हेतु आभार...
प्रकाश पर्व पर अच्छी सामयिक लेखन-सह-बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंप्रकाश पर्व की लख लख बधाइयाँ h
प्रकाश पर्व की शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग शामिल करने के लिए धन्यवाद ।
प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं....
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