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रविवार, 27 नवंबर 2016

2016 अवलोकन माह नए वर्ष के स्वागत में - 13




एक मरहम कहूँ 
या एक आग 
ओस सी नज़्म 
या बेचैनी का उठता धुआँ  ... गौतम राजरिशी जिनको पढ़नेवाले कई पाठक थे, मैं भी एक पाठक की हैसियत से पहुँची थी इस ब्लॉग पर, लेकिन आक्रोश की चिंगारियों में थी दबी रुलाई  ... और कर्तव्य, 
और उबरने के लिए शायरी !!!
सुनकर अजीब लगा होगा, तो देखिये ये कुछ लिंक्स, फिर बढ़ेंगे 2016 के पायदान पर  ... 


हँसना एक चाह है, 
सच पूछो तो दम बहुत घुटता है !!!  ... 
सच के सहनशील शरीर पर 
कूदता है झूठ 
वो सोचते हैं हम समझते नहीं 
लेकिन हम उनकी हर नब्ज़ पहचानते हैं  ... 

2016 की श्रेष्ठ रचना मेरी नज़र से -



शब्दों की बेमानियाँ...बेईमानियाँ भी | लफ़्फ़ाजियाँ...जुमलेबाजियाँ...और इन सबके बीच बैठा निरीह सा सच | तुम्हारा भी...मेरा भी | 

तुम्हारे झूठ पर सच का लबादा
तुम्हारे मौन में भी शोर की सरगोशियाँ
तुम्हारे ढोंग पर मासूमियत की
न जाने कितनी परतें हैं चढी

मुलम्मा लेपने की हो
अगर प्रतियोगिता कोई
यक़ीनन ही विजय तुमको मिलेगी
विजेता तुम ही होगे

किसी के झूठ कह देने से होता हो 
अगर सच में कोई सच झूठ
तो लो फिर मैं भी कहता हूँ
कि तुम झूठे हो, झूठे तुम

तुम्हारा शोर झूठा है
तुम्हारा मौन झूठा है
तुम्हारे शब्द भी झूठे
तुम्हारी लेखनी में झूठ की स्याही भरी है बस

तुम्हें बस वो ही दिखता है
जो लिक्खे को तुम्हारे बेचता है
तुम्हारे सच को सुविधा की 
अजब आदत लगी है

यक़ीं मानो नहीं होता
समूचा झूठ बस इक झूठ भर
मगर फिर सोचता हूँ
कि ऐसा कह के भी हासिल
भला क्या
कि आख़िर झूठ भी तो एक कविता है 

7 टिप्‍पणियां:

  1. सच भी है कविता झूठ भी है कविता
    सच क्या है झूठ को है सब कुछ पता ।

    बहुत सुन्दर कविता । सुन्दर बुलेटिन ।

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  2. बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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