या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
कालरात्रि माता के विषय में कहा जाता है कि यह दुष्टों के बाल पकड़कर खड्ग से उसका सिर काट देती हैं। रक्तबीज से युद्घ करते समय मां काली ने भी इसी प्रकार से रक्तबीज का वध किया था। मां काली के युद्घ करने का यह तरीका दर्शाता है कि काली और कालरात्रि एक ही हैं। कालरात्रि माता भगवान विष्णु की योगनिद्रा भी कही जाती है।
जीवों में मोह माया का कारण भी मां कालरात्रि देवी हैं। दुर्गासप्तशती के प्रथम चरित्र में बताया गया है कि भगवान विष्णु जब सो रहे थे तब उनके कान के मैल से दो भयंकर असुर मधु और कैटभ उत्पन्न हुए। ये दोनों असुर ब्रह्मा जी को मारना चाहते थे। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की योगनिद्रा की आराधना की।
ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की योगनिद्रा को कालरात्रि, मोहरात्रि के रूप में ध्यान किया। ब्रह्मा जी की वंदना से देवी कालरात्रि ने भगवान विष्णु को निद्रा से जगाया। भगवान विष्णु ने मधु-कैटभ का वध करके ब्रह्मा जी की रक्षा की।
ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की योगनिद्रा को कालरात्रि, मोहरात्रि के रूप में ध्यान किया। ब्रह्मा जी की वंदना से देवी कालरात्रि ने भगवान विष्णु को निद्रा से जगाया। भगवान विष्णु ने मधु-कैटभ का वध करके ब्रह्मा जी की रक्षा की।
धूप चन्दन
नव रूप में दुर्गा
पूजा वन्दन
नव रूप में दुर्गा
पूजा वन्दन
मुक्ति के ख़्याल ने कितनों को भरमाया
पलायन मार्ग ने कितनों को भटकाया
पलायन मार्ग ने कितनों को भटकाया
वैराग्य भाव ही क्या बुद्ध होने का सरमाया
जहाँ कृत्य हो शुभ
तो ज़ोर कर्म होने में है
जहाँ कर्ता है बुद्ध
तो ज़ोर होने पर है
तो ज़ोर कर्म होने में है
जहाँ कर्ता है बुद्ध
तो ज़ोर होने पर है
होने और करने के विकल्प में ही छुपा है वो राज
कृत्य तो जमीनी "मैं" के विपरीत भी हो सकता है
पर
बुद्ध होने के कृत्य भीतरी समरसता से रंगे होते है
पर
बुद्ध होने के कृत्य भीतरी समरसता से रंगे होते है
उतारो जीवन में आनन्द
कृत्य की तरह नहीं, अस्तित्व की तरह
यही क्षण बस परम क्षण हो जाए
ये धरा इसी क्षण से स्वर्ग हो जाए
कृत्य की तरह नहीं, अस्तित्व की तरह
यही क्षण बस परम क्षण हो जाए
ये धरा इसी क्षण से स्वर्ग हो जाए
जाग भैरवी
आज अंतकर्ण में
आज अंतकर्ण में
मंत्रों के साथ साथ संगत करता "मैं"
अंतिम स्वाह पर स्वयं को ही समिधा बना डालूँ
अंतिम स्वाह पर स्वयं को ही समिधा बना डालूँ
दुख द्वंद्व है
आनंद निर्द्वन्द है
आनंद निर्द्वन्द है
माँ का आगमन
सिद्धार्थ के अंतर्द्वन्द से मुक्ति ही तो है
सिद्धार्थ के अंतर्द्वन्द से मुक्ति ही तो है
करूणामयी मात छोड़ो नही हाथ
रहे तू सदा साथ इस जागरण में.....
रहे तू सदा साथ इस जागरण में.....
Amrita Tanmay: तू मधुपान कर माँ !
नवरात्र पर विशेष – गुडिया , माटी और देवी सच का हौसला
मन अर्पण
नव रूपा के आगे
हर्षित शंख
नव रूपा के आगे
हर्षित शंख
सुन्दर नवरात्रि बुलेटिन ।
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