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गुरुवार, 1 सितंबर 2016

हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
आज सुप्रसिद्ध गज़लकार दुष्यंत कुमार का जन्मदिन है. उनका जन्म बिजनौर के ग्राम राजपुर नवादा में 1 सितम्बर 1933 को हुआ था. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे. दुष्यंत का पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था. प्रारम्भ में दुष्यंत कुमार परदेशी के नाम से लेखन करते थे. इन्होंने एक कंठ विषपायी, सूर्य का स्वागत, आवाज़ों के घेरे, जलते हुए वन का बसंत, छोटे-छोटे सवाल सृजन किया. साये में धूप उनका प्रसिद्द ग़ज़ल-संग्रह है. जिस समय दुष्यंत कुमार साहित्य की दुनिया में आये उस समय ताज भोपाली, क़ैफ़ भोपाली, अज्ञेय, गजानन माधव मुक्तिबोध, नागार्जुन तथा धूमिल जैसे ख्यातिलब्ध लोग जमे हुए थे. दुष्यंत कुमार ने अपनी प्रतिभा से ग़ज़ल को उर्दू की क्लिष्टता से बाहर निकाल हिन्दी की सहजता के साथ स्थापित किया. उन्होंने सिर्फ़ 42 वर्ष के जीवन में अपार ख्याति अर्जित की. उनका देहांत 30 दिसम्बर 1975 को हुआ.


 समकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यंत कुमार को मिली वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है. वे एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं. उनका स्वर सड़क से संसद तक गूँजता है. इस कवि ने कविता, गीत, ग़ज़ल, काव्य, नाटक, कथा आदि सभी विधाओं में लेखन किया लेकिन गज़लों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया.

उनके जन्मदिवस पर उनकी एक ग़ज़ल के साथ ब्लॉग बुलेटिन परिवार की तरफ से श्रद्धा सुमन अर्पित हैं... 

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।


आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।



मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

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10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । दो बुलेटिन के बीच कम से कम 24 घंटे का अन्तर रहे तो अच्छा है । सुझाव देने की आदत जाती नहीं है :) वैसे पढ़ने वालों को कोई फर्क पड़ता नहीं है वो ढूँढ लेते हैं सामग्री ।

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  2. जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में, हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं ।
    अब तड़पती-सी गजल कोई सुनाए, हमसफर ऊँघे हुए हैं, अनमने हैं ।
    .....................
    हम इतिहास नहीं रच पाये इस पीडा में दहते हैं
    अब जो धारायें पकडेंगे इसी मुहाने आएँगे।
    और
    सुप्रसिद्ध गज़लकार दुष्यंत कुमार जी के जन्मदिवस पर हार्दिक श्रद्धा सुमन!
    सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

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  3. एक कालजयी कवि के जन्मदिन पर उन्हें याद करना ब्लॉग बुलेटिन का सराहनीय कदम है. दुष्यंत कुमार जी की गज़लें आज भी युवा समाज का प्रतिनिधित्वा करती हैं. उनकी एक रचना यहाँ साझा की जानी चाहिए थी!!

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  4. आभार सुशील जी,
    आप नियमित रूप से बुलेटिन पर आकर अपने सुझाव, विचार देते हैं. स्वागत है आपका.
    आपका सुझाव एकदम उचित है कि कम से कम चौबीस घंटे अवश्य हों पर कई बार नेट के चक्कर में जल्दी हो जाती है, जैसे कि आज हमारे द्वारा ही.
    फिर भी प्रयास किया जायेगा कि आगे से समय की नियमितता रहे.
    आभार

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  5. आभार चला बिहारी.... जी,
    आपके सुझाव को अमल में लाया गया. आप सभी के सुझावों, विचारों से ही बुलेटिन पुष्पित, पल्लवित होगी.
    सादर

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  6. "ट्रेनिंग" को शामिल करने के लिए धन्यवाद

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  7. दुष्यंत ! आज तुम्हारी ज़रुरत तो पहले से भी ज़्यादा है. 'अब नया दुष्यंत, अपने बीच, हमको चाहिए.'

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  8. कविता रावत जी! सोए हुओं को जगाने के लिए झुनझुना बजाने की जगह धमाका कीजिए और भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त को याद कर लीजिए.

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