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सोमवार, 22 अगस्त 2016

दिखावे से छवि नहीं बनती


प्रेम करते हुए 
न राधा को सोचो, न मीरा को 
न पारो को 
... न कृष्ण को, 
न देवदास को 
किसी के जैसा होने का कोई अर्थ नहीं !
प्रेम है 
तो तुम्हारा 'अपना' होना ही महत्वपूर्ण है 

यदि तुम्हें पढ़ना नहीं आता 
तो ज़रूरी नहीं 
कि तुम मन्त्रों का उच्चारण करो 
तुम्हारे भीतर आस्था है 
तो 108 बार माला जपने की भी ज़रूरत नहीं 
क्षमता से अधिक कुछ भी करना 
ना ही सही पूजा है 
न सुकून  
तुम्हारी अपनी शान्ति महत्वपूर्ण है !

याद रखो,
दिखावे से छवि नहीं बनती 
बल्कि सबकुछ तितर बितर हो जाता है 

4 टिप्‍पणियां:

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