Pages

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

चलिए देखा, पढ़ा जाए बुलेटिन



भागती हुई नानी
भागती हुई दादी
इन सबके बीच माँ
...
ज़िन्दगी का यह पृष्ठ भी क्या खूब है :)

और इस भागती नानी/दादी के पीछे शिवम भाई, "दीदी, बुलेटिन देख लीजिये" ... अच्छा, बहुत अच्छा लगता है इस हक़ और विश्वास के आगे :)
चलिए देखा, पढ़ा जाए बुलेटिन


प्रतिभा की दुनिया ...: भीतर बाहर की यात्राओं के सुर ...



बरसात के बाद धरती
------------------------
संभावनाओं से भरी है
बरसात के बाद की धरती
कितने सारे सुख रेंगते हुए भर रहे हैं रंग
इनमें वे रंग भी होंगे जो धुल गए बरसात में
वे सुख भी इनमें ही होगे जो बह गए आंख से- पिछली रात--।
इन सबके नाम नहीं जानता मैं
ना रंगों के- ना सुखों के
मुझे नहीं पता इनका घर कहां है और
इनको भी तो नहीं पता कुछ मेरे बारे में
जरा सा मिलूं तो टूटे अपरिचय---।
अब भी अनाड़ी और शरारती बच्‍चे की बनाई
आड़ी तिरछी धारियां पानी को साथ लेकर चल रही हैं
आंगन में
भले ही मैं इन धारियों की भाषा नहीं जानता
पर इतना जानता हूं कि मेरे ना समझने से
खत्‍म नहीं हो जाती कोई भाषा---।
भाषा हमेशा सुनी और पढ़ी नहीं जाती
छूकर कहा उस छोटे पौधे ने
यह स्‍पर्श याद रखना-- हरे रहना सदा
उसकी दुनिया में मेरा सुख हरा ही हो सकता था
उसने मुझे सुख की दुआ दी---।
हरियाये मन से झुककर उठाई जरा सी मिट्टी
छूकर कहा धरती से मेरे हाथों की गरमाहट और
हथेलियों के बीच पाली नमी सहेज लेना
बचा लेना इस क्षण को धाराधर बरसात में भी
धरती चुप रहकर देती है सहमति---।
हर सहमति एक संभावना है
संभावनाओं से भरी धरती की भाषा
झुककर छूने से समझ आाती है--।
( संभावनाओं में ि‍फसलन बहुत है, जरा संभल के मेरे आत्‍मीय---)

ईमेल एसएमएस की दुनिया में
डाकिये ने पकड़ाया लिफाफा
22 रुपए के स्टेम्प से सुसज्जित
भेजा गया था रजिस्टर्ड पोस्ट
पते के जगह, जैसे ही दिखी
वही पुरानी घिसी पिटी लिखावट
जग गए, एक दम से एहसास
सामने आ गए, सहेजे हुए दृश्य
वो झगड़ा, बकबक, मारपीट
सब साथ ही दिखा,
प्यार के छौंक से सना वो
मनभावन, अलबेला चेहरा
उसकी वो छोटी सी चोटी,
उसमे लगा काला क्लिप जो होती थी,
मेरे हाथों कभी
एक दम से आ गया सामने
उसकी फ्रॉक, उसका सैंडल
ढाई सौ ग्राम पाउडर से पूता चेहरा
खूबसूरत दिखने की ललक
एक सुरीली पंक्ति भी कानों में गूंजी
“भैया! खूबसूरत हूँ न मैं??”
हाँ! समझ गया था,
लिफाफा में था
मेरे नकचढ़ी बहना का भेजा हुआ
रेशमी धागे का बंधन
था साथ में, रोली व चन्दन
थी चिट्ठी.....
था जिसमे निवेदन
“भैया! भाभी से ही बँधवा लेना !
मिठाई भी मँगवा लेना !!”
हाँ! ये भी पता चल चुका था
आने वाला है रक्षा बंधन
आखिर भाई-बहन का प्यारा रिश्ता
दिख रहा था लिफाफे में ......
सिमटा हुआ...........!!!

3 टिप्‍पणियां:

  1. माँ कितने ही रूपों में हमारे सामने होती हैं कभी दादी कभी नानी ...
    बहुत सुन्दर नपी-तुली सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. कौन कब कब आयेगा देने एक टिप्पणी कहाँ देगा क्यों देगा किसलिये देगा बहुत बडा प्रश्न है इस ब्लाग की दुनिया में अब प्रश्न उठा है तो कहना तो पड़ेगा ही ।
    सुंदर बुलेटिन ।

    जवाब देंहटाएं

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!