प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
चित्र गूगल से साभार |
एक तानाशाहा के देश में एक पादरी, वकील और इंजीनियर को विद्रोह के कारण मौत की सजा मिली। जब सजा देने का वक़्त आया तो अपराधियों को आखिरी ख्वाहिश की प्रथा बताई तो उन्हें गर्दन ऊपर और नीचे रखने के विकल्प मिले।
पादरी ने ऊपर देखना स्वीकारा ताकि भगवान को देख सके और जैसे ही बटन दबाया गया तो आरी, गर्दन से सिर्फ दो इंच ऊपर रुक गई। अधिकारियों ने इसे ईश्वर की मर्जी समझ के उसे छोड़ दिया।
वकील ने भी ऊपर देखा और जब आरी रुकी तो वह बोला कानूनन एक व्यक्ति को दो बार सजा नहीं दी जा सकती और वह भी छूट गया।
इंजीनियर ने भी ऊपर ही देखने का फैंसला किया। जब बटन दबाया जा रहा था तो वो चिल्लाया, "एक मिनट रुको, अगर आप उस हरे और लाल तार को आपस में बदल देंगे तो काम हो जायेगा।"
बस काम तमाम हो गया।
सादर आपका
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
एक कविता -थर्राती स्वप्निल संध्याएँ
मिसेज़ फनीबोन्स
खेल मौत का मौत से पहले रुकता नहीं है
वो कमरा याद आता है... - जावेद अख्तर
रांची में थी मीना कुमारी की जमीन, अब दूसरे लोग काबिज
डाइवर की डायरी से....
आज़ादी बचाने को आज ही जागना होगा
तुम चाहकर भी वो सब वापस नहीं ले सकते...
आस्था का विसर्जन
ये छतरी है मेरे दुलार की .....
वाक्यांश - बिरादरी
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
वाह बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों से सजी बुलेटिन !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
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