दिल्ली आए हुए एक महीना से बेसी हो गया है. अऊर
महानगर के जिन्नगी जइसा हम भी जुट गए हैं, चाहे कहीए जुत गए हैं. नया जगह भी नहीं
है, नया ऑफिस भी नहीं है, नया काम भी नहीं है... लेकिन जब एतना साल बीत जाता है, त
अपना घरवो अनजान बुझाता है. काहे कि सुबह का भुलायल अदमी को साँझ तक लौट आने का
छूट है. हम त चार साल बाद लौटे थे अऊर ई ऑफिस में सात साल बाद. बहुत बदलाव आ गया
था. बाकी नहीं बदला था त ऊ रास्ता, जहाँ चारों तरफ हरियाली है, मोर अऊर कोयल का
आवाज़ सुनाई देता है, साफ़ सुथरा रोड अऊर खूब सुन्दर बाताबरन.
ऑफिस से निकलकर मेट्रो इस्टेसन तक जाना बहुत सीतल
अनुभव होता है. बाकी मेट्रो में पहुँच जाने के बाद बुझाता है कि परधान मंत्री जी
का स्वच्छता अभियान एकदम्मे फेल है. एतना गन्दगी कि केतना बार त आँख मूँद लेने का
मन करता है. इंसान सुतुरमुर्ग हो गया है अऊर महानगर का इंसान त... आप समझिए सकते
हैं. इस्टेसन पर, प्लेटफारम पर, गाड़ी के अंदर... माने कुल मिलाकर स्वच्छता अभियान
भी सुसाइड कर ले.
ओफ्फोह... सॉरी... सॉरी!! एगो बात त भुलाइये गए
बताना. ई गन्दगी माने चिप्स का खाली पैकेट, गुटखा का पुडिया, कोल्ड-ड्रिंक का खाली
डिब्बा, लेमनचूस अऊर चौकलेट का छिलका, सिंघाड़ा (समोसा) का ठोंगा, पानी का बोतल
नहीं. ऊ सब पर कंट्रोल है तनी-मनी, लेकिन अदमी पर कोनो कंट्रोल नहीं, खासकर नया
जुग का लड़का-लड़की. मॉडर्न होने के नाम पर आपस में बात करते हुए एतना गंदा भासा का
परयोग करना कि घर जाकर कान गंगाजल से धोना पड़े. अऊर बेवहार एतना खराब कि सरम को भी सरम आ जाए. अब जो देखने
को मिलता है उसको गन्दगी के कैटेगरी में रखें कि अश्लीलता के...
बिचार करना होगा. जइसे न्यूड अऊर नेकेड में अंतर होता है, ओइसहीं आधुनिकता अऊर
अश्लीलता के बीच भी होता होगा. सायद हमको नहीं बुझाएगा, काहे कि अब त हमरे लिये
बरिस्ठ नागरिक वाला सीट भी छोडकर उठ जाता है लोग-बाग.
मगर ऊ का कहते हैं कि गन्दगी देखने वाला के आँख
में होता है (कहावत त सुंदरता के लिये है) त हम काहे अपना आँख गंदा करें. ई सब गन्दगी
हमरे आँख से परे का चीज है, एही से नहीं देखाई देता है.
अब ओही रोज हम कोई काम से तीस हजारी गए थे. लौटते
समय कश्मीरी गेट से राजीव चौक आना था. एगो लड़की हमरे साथ-साथ एस्केलेटर पर चल रही
थी. कुछ देर बाद लापता. जब हम मेट्रो में दाखिल हुए तब ओही बचिया फिर से हमरे बगल
में आकर खड़ी हो गयी. एकदम उसका कद, नाक नक्सा अऊर बोली हमरी झूमा जइसा था. जैसहीं
मेट्रो चलने लगा, ऊ तुरत अपना मोबाइल निकाली अऊर फोन पर चालू हो गयी. मगर जब कान
में आवाज गया त सुने कि ऊ बोली, “भैया! हुडा सिटी सेण्टर पर उतरना है न? उसके बाद
रिक्शा ले लूँगी!” मन में तनी इत्मिनान हुआ कि ओही सब फालतू बात नहीं सुनाई देगा. बाद
में जो बात सुनाई दिया उसमें पहिला बाक्य एही था कि भैया आप मुझसे कुछ सवाल पूछिए
ना? पता नहीं वो लोग क्या पूछेंगे.
फिर बातचीत में ब्लड प्रेशर, हेमोग्लोबिन, प्लैटेलेट्स,
ब्लड शुगर के बारे में बहुत सा बात फोन पर हुआ. हमरा दिमाग पजल का टुकड़ा जोडने में
लगा हुआ था. लडकी कोनो पैरा- मेडिकल सर्विस के लिये इंटरभ्यू देने जा रही थी. बीच
में सैलरी के बारे में भी कुछ पूछी, लेकिन उधर का जवाब हमको सुनाई नहीं दिया. हमको
भी लगा कि हमरी बेटी एतना बड़ा हो गयी है.
खैर, हमरा इस्टेसन त जल्दिये आने वाला था. उतरने
के पहले हम ऊ लड़की के माथा पर हाथ रखे त ऊ चौंक कर हमरे तरफ देखी. उसके आँख में
सवाल था अऊर हमरे आँख में चमक. हम बोले, “ऑल द वेरी बेस्ट!”
उसके आँख का का सवाल चमक में बदल गया अऊर चेहरा
का तनाव कान से लेकर कान तक के मुस्कराहट में गायब हो गया.
“थैंक्स, अंकल!”
अऊर तब तक हमरे पीछे का भीड़ हमको धकियाकर
प्लेटफारम पर पटक दिया.
समय के नदी में का पता किधर से कउन सा बूँद
भिगाकर चला जाता है. हमरा त एही जोगदान रहा परधान मंत्री जी के स्वच्छता अभियान
में. अऊर अपना एगो हाल में लिखा हुआ नज्म याद आ गया
वक्त से टूटा
कोई लावारिस सा लम्हा
डर के मारे
सड़क किनारे सुबक रहा था
उसकी उंगली थामी
प्यार से चूमा उसको
जब वो प्यार से पलट के
मेरे गले लग गया
मैंने समझा मेरी नज़्म मुकम्मल हो गयी
और सूना सा दिन
कोई गुलज़ार कर गया!!
जिन्नगी जीने का सबसे
मजेदार फंडा एही है कि एगो बड़ा सा खुसी का इंतज़ार करने से अच्छा, छोटा-छोटा खुसी
को जिया जाए. अब अगर एही छोटा-छोटा ब्लॉग-बुलेटिन हमलोज एन्जॉय नहीं करते, त आज
कइसे ई १४००वाँ ब्लॉग बुलेटिन आपके सामने होता!कोई लावारिस सा लम्हा
डर के मारे
सड़क किनारे सुबक रहा था
उसकी उंगली थामी
प्यार से चूमा उसको
जब वो प्यार से पलट के
मेरे गले लग गया
मैंने समझा मेरी नज़्म मुकम्मल हो गयी
और सूना सा दिन
कोई गुलज़ार कर गया!!
- सलिल वर्मा
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लुका छुपी
मुस्कान लीले नाग
पहलगाम - प्रकृति का अनुपम उपहार
आइ स्पाई -
ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ
पुष्कर (Pushkar) चित्रों में
शुतुरमुर्ग और शुतुरमुर्ग
ये अंतिम सांस ....
भारत के विख्यात उद्योगपति जेआरडी टाटा की ११२ वीं जयंती
लोहे का घर -17
बेतरतीब मैं
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हमेशा की तरह दिल को छूने वाली पोस्ट।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह दिल को छूने वाली पोस्ट।
जवाब देंहटाएंBahut sunder.हमेशा की तरह !
जवाब देंहटाएंयात्रानामा शामिल करने के लिए बहुत आभार
जवाब देंहटाएं"बडका खुसी का एंतजार करने से अच्छा छोटा छोटा खुसी को जिया जाय" - सही पकडे हैं ।
जवाब देंहटाएंठेड अंदाज में बहुत सुन्दर १४००वीं ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन हमेशा की तरह। आभार।
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन हमेशा की तरह। आभार।
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट यहाँ चस्पा करने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंई तो बहुते बढ़िया किये कि भुलान-छुटान बलगवा पे चल आये. ऊ का है कि अब सुबह का भूला का तनी एक्सटेंसन हो गया है...तो लौटने का टैम अपने फेसेलटी से फिक्स कर सकते हैं...तो हम बोले हैं आल द फस्ट
जवाब देंहटाएंचुनी हुई रचनाएं अच्छी हैं पर आपकी बात एक पूरी और रोचक ब्लाग पोस्ट है .
जवाब देंहटाएंखूब अच्छी पोस्ट। बहुत दिल से लिखी गयी...👍
जवाब देंहटाएंसुच्छता अभियान की जय हो।
जवाब देंहटाएंसुच्छता अभियान की जय हो।
जवाब देंहटाएंआपकी यही अदा तो जानलेवा है!....फोन पर 'गुरुदेव, पहचानो' बोल कर एक दिन आपने हमें भी बस मार ही दिया था!
जवाब देंहटाएंअंत तक आते आते आँखें नम हो गई...किसी दुःख से नहीं, बल्कि खुशी से...|
जवाब देंहटाएंऔर क्या लिखे हम...बस शब्द कम पड़ते हैं कभी कभी बहुत कुछ कहने के लिए...| उस अनजान...झूमा-सी लडकी के लिए मेरी ओर से भी...आल द बेस्ट...
आभार, आप सबों का... जब लौटने की सोचता हूँ परिस्थितियाँ पीछे धकेल देती हैं!
जवाब देंहटाएंअब हम आप को असक्रिय नहीं रहने देने वाले ... हर इतवार को आप की बुलेटिन का इंतज़ार करेंगे |
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और सभी पाठकों को १४०० वीं पोस्ट की इस कामयाबी पर ढेरों मुबारकबाद और शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंसलिल दादा और पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से सभी पाठकों का हार्दिक धन्यवाद ... आप के स्नेह को अपना आधार बना हम चलते चलते आज इस मुकाम पर पहुंचे है और ऐसे ही आगे बढ़ते रहने की अभिलाषा रखते है |
ऐसे ही अपना स्नेह बनाए रखें ... सादर |
स्पर्शी
जवाब देंहटाएंआप यूं ही लिखते रहें
जवाब देंहटाएंनेट उप्लब्ध नहीं होने से समय पर शामिल नहीं हो पाया । बहुत बहुत बधाइयाँ 1400 वें अंक के लिये । चलता रहे कारवाँ इसी तरह और जुड़ती रहें टिप्पणिंंया इसलिये कि टिप्पणी जरूरी है और आज लगता है बरसात हो रही है । आभार भी है 'उलूक' का सूत्र 'शुतुर्मुर्ग और शुतुरमुर्ग' को शामिल किया । कष्ट भी है कि केवल चित्र देख कर बिना पढ़े लोग किस तरह गलत व्याख्या कर ले जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंBest digital marketing for event management company - https://infotalks.in/digital-marketing-strategies-for-event-management-company/
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