प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
वो एक्सप्रेस ट्रेन करीब करीब खाली ही थी। वकील साहब जिस ऐसी 3 कोच में बैठे थे उसमें भी बहुत कम यात्री थे और उनके वाले पोर्शन में उनके अलावा दूसरा कोई पैसेंजर नहीं था।
तभी एक महिला कोच में उनके वाले पोर्शन में आई और वकील साहब से बोली, "मिस्टर, तुम्हारे पास जो भी मालपानी रुपया, पैसा, सोना, घड़ी, मोबाइल है सब मुझे सौंप दो नहीं तो मैं चिल्लाऊँगी कि, तुमने मेरे साथ छेड़ छाड़ की है।"
वकील साहब ने शांति से अपने ब्रीफकेस से एक कागज निकाला और उस पर लिखा, "मैं मूक बधिर हूँ, ना बोल सकता हूँ और ना ही सुन सकता हूँ। तुम्हें जो कुछ कहना है, इस कागज पर लिख दो।"
महिला ने जो भी कहा था वो उसी कागज पर लिख कर दे दिया।
वकील साहब ने उस कागज को मोड़कर हिफाजत से अपनी जेब में रखा और बोले, "हाँ, अब चिल्लाओ कि, मैंने तुम्हारे साथ छेड़ छाड़ की है। अब मेरे पास तुम्हारा लिखित बयान है।"
यह सुनते ही महिला वहाँ से यूँ भागी जैसे उसने भूत देख लिया हो।
सादर आपका
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बाघा बार्डर से जालियांवाला बाग तक....
" शून्य के भीतर शून्य ........."
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
वाह! वकील साहब.
जवाब देंहटाएंवकील वो कील है जो गड़ गई तो गड़ गई। वकील लोग नाराज ना होवें कहावत कही है वैसे वकील और पुलिस मित्र होना भी गर्व का विषय होता है :) सुंदर वकील बुलेटिन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संयोजन
जवाब देंहटाएंइसी को तो वकील का दिमाग कहते है। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइसी को तो वकील का दिमाग कहते है। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंWaah..bahut badhiya kiya wakil sahab ne.
जवाब देंहटाएंMeri rachna shamil karne ke liye aabhar.
वकील साहब ने बहुत अच्छी शिक्षा दी ।बहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने का तहेदिल से शुक्रिया ।
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने का तहेदिल से शुक्रिया ।
हटाएंवकील साहब ने बहुत अच्छी शिक्षा दी ।बहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंशिवम् भाई आपका ब्लॉग पोस्ट्स की चर्चा करने का अंदाज़ ही निराला है, अच्छे लिंक्स ढूंढ कर लाएं हैं!
जवाब देंहटाएंवकील साहब तो खैर वकील ठहरे पर ऐसी कौनसी ट्रेन थी जिसमें डिब्बा इतना खाली था? सूत्रों पर जाते हैं अब।
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
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