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सोमवार, 18 अप्रैल 2016

चटगांव विद्रोह की ८६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज १८ अप्रैल है ... आज से ठीक ८६ साल पहले ... आज़ादी के दीवानों ने अमर क्रांतिकारी सूर्य सेन 'मास्टर दा' के कुशल नेतृत्व मे क्रांति की ज्वाला को प्रज्वलित किया था जिस इतिहास मे आज "चंटगाव विद्रोह" के नाम से जाना जाता है | 

चटगांव विद्रोह

इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना और चटगाँव शाखा के अध्यक्ष चुने जाने के बाद मास्टर दा अर्थात सूर्यसेन ने काउंसिल की बैठक की जो कि लगभग पाँच घंटे तक चली तथा उसमे निम्नलिखित कार्यक्रम बना-
  • अचानक शस्त्रागार पर अधिकार करना।
  • हथियारों से लैस होना।
  • रेल्वे की संपर्क व्यवस्था को नष्ट करना।
  • अभ्यांतरित टेलीफोन बंद करना।
  • टेलीग्राफ के तार काटना।
  • बंदूकों की दूकान पर कब्जा।
  • यूरोपियनों की सामूहिक हत्या करना।
  • अस्थायी क्रांतिकारी सरकार की स्थापना करना।
  • इसके बाद शहर पर कब्जा कर वहीं से लड़ाई के मोर्चे बनाना तथा मौत को गले लगाना।
मास्टर दा ने संघर्ष के लिए १८ अप्रैल १९३० के दिन को निश्चित किया। आयरलैंड की आज़ादी की लड़ाई के इतिहास में ईस्टर विद्रोह का दिन भी था- १८ अप्रैल, शुक्रवार- गुडफ्राइडे। रात के आठ बजे। शुक्रवार। १८ अप्रैल १९३०। चटगाँव के सीने पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध सशस्त्र युवा-क्रांति की आग लहक उठी।
 
चटगाँव क्रांति में मास्टर दा का नेतृत्व अपरिहार्य था। मास्टर दा के क्रांतिकारी चरित्र वैशिष्ट्य के अनुसार उन्होंने जवान क्रांतिकारियों को प्रभावित करने के लिए झूठ का आश्रय न लेकर साफ़ तौर पर बताया था कि वे एक पिस्तौल भी उन्हें नहीं दे पाएँगे और उन्होंने एक भी स्वदेशी डकैती नहीं की थी। आडंबरहीन और निर्भीक नेतृत्व के प्रतीक थे मास्टर दा। क्रांति की ज्वाला के चलते हुकूमत के नुमाइंदे भाग गए और चटगांव में कुछ दिन के लिए अंग्रेजी शासन का अंत हो गया।


अभी हाल के ही सालों मे चटगांव विद्रोह और मास्टर दा को केन्द्रित कर 2 फिल्में भी आई है - "खेलें हम जी जान से" और  "चटगांव"| मेरा आप से अनुरोध है अगर आप ने यह फिल्में नहीं देखी है तो एक बार जरूर देखें और जाने क्रांति के उस गौरवमय इतिहास और उस के नायकों के बारे मे जिन के बारे मे अब शायद कहीं नहीं पढ़ाया जाता !

चटगाँव विद्रोह का प्रभाव
इस घटना ने आग में घी का काम किया और बंगाल से बाहर देश के अन्य हिस्सों में भी स्वतंत्रता संग्राम उग्र हो उठा। इस घटना का असर कई महीनों तक रहा। पंजाब में हरिकिशन ने वहां के गवर्नर की हत्या की कोशिश की। दिसंबर १९३० में विनय बोस, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता ने कलकत्ता की राइटर्स बिल्डिंग में प्रवेश किया और स्वाधीनता सेनानियों पर जुल्म ढ़हाने वाले पुलिस अधीक्षक को मौत के घाट उतार दिया।
 
आईआरए की इस जंग में दो लड़कियों प्रीतिलता वाडेदार और कल्पना दत्त ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सत्ता डगमगाते देख अंग्रेज बर्बरता पर उतर आए। महिलाओं और बच्चों तक को नहीं बख्शा गया। आईआरए के अधिकतर योद्धा गिरफ्तार कर लिए गए और तारकेश्वर दत्तीदार को फांसी पर लटका दिया गया।
 
अंग्रेजों से घिरने पर प्रीतिलता ने जहर खाकर मातृभमि के लिए जान दे दी, जबकि कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सूर्यसेन को फरवरी १९३३ में गिरफ्तार कर लिया गया और १२ जनवरी १९३४ को अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी।
 
ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से चटगांव विद्रोह की ८६ वीं वर्षगांठ पर उन सभी अमर क्रांतिकारियों को हमारा शत शत नमन !
 
इंकलाब ज़िंदाबाद !!!
सादर आपका
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चौखंडी स्तूप

देवेन्द्र पाण्डेय at चित्रों का आनंद 

पूर्ण विराम .....

निवेदिता श्रीवास्तव at झरोख़ा 

तर्पण

सुमनिका at अनूप सेठी 

जूते का उछलना और चूकना

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर at  रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
 
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 रामचंद्र पाण्डुरग राव यवलकर (तात्या टोपे) १८१८ – १८ अप्रैल १८५९
आज ही भारत माता के सच्चे सपूत, भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महानायक, अमर शहीद रामचंद्र पाण्डुरग राव यवलकर (तात्या टोपे) का १५७ वां महाबलिदान दिवस भी है !!
 
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अब आज्ञा दीजिये ... 
 
जय हिन्द !!!  

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर विषय के साथ सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति ।

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  2. सुंदर सूत्रों से सजा बुलेटिन। मेरी रचना को स्थान देने का आभार।

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  3. चटगाँव फिल्म देखी है, हमारे कितने ही क्रांन्तिकारी अनुल्लेखित रह जाते हैं। सूर्य सेन तथा उनके साथियों को शत शत नमन।

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