सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' |
अयोध्यासिंह उपाध्याय का जन्म ज़िला आजमगढ़ के निज़ामाबाद नामक स्थान में सन् 1865 ई. में हुआ था। हरिऔध के पिता का नाम भोलासिंह और माता का नाम रुक्मणि देवी था। अस्वस्थता के कारण हरिऔध जी का विद्यालय में पठन-पाठन न हो सका अतः इन्होंने घर पर ही उर्दू, संस्कृत, फ़ारसी, बांग्ला एवं अंग्रेज़ी का अध्ययन किया। 1883 में ये निज़ामाबाद के मिडिल स्कूल के हेडमास्टर हो गए। 1890 में क़ानूनगो की परीक्षा पास करने के बाद आप क़ानून गो बन गए। सन् 1923 में पद से अवकाश लेने पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने।
खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्यकार हरिऔध जी का सृजनकाल हिन्दी के तीन युगों में विस्तृत है-
- भारतेन्दु युग
- द्विवेदी युग
- छायावादी युग
इसीलिये हिन्दी कविता के विकास में 'हरिऔध' जी की भूमिका नींव के पत्थर के समान है। उन्होंने संस्कृत छंदों का हिन्दी में सफल प्रयोग किया है। 'प्रियप्रवास' की रचना संस्कृत वर्णवृत्त में करके जहाँ 'हरिऔध' जी ने खड़ी बोली को पहला महाकाव्य दिया, वहीं आम हिन्दुस्तानी बोलचाल में 'चोखे चौपदे', तथा 'चुभते चौपदे' रचकर उर्दू जुबान की मुहावरेदारी की शक्ति भी रेखांकित की। अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'जी का पूरा जीवन-परिचय यहाँ पढ़े ...
आज खड़ी बोली के महान साहित्यकार अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔंध' जी की 69वीं पुण्यतिथि पर हिन्दी चिट्ठाकार जगत और हमारी पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें शत शत नमन करती है सादर ...
अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर..........
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर … अभिनन्दन।।
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' को नमन करते हुए बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आपका आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर बुलेटिन । आभार 'उलूक' के जमूरे को स्थान देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुक बढ़िया बुलेटिन । मेरी रचना को स्थान देने का आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुक बढ़िया बुलेटिन । मेरी रचना को स्थान देने का आभार ।
जवाब देंहटाएंशानदार बुलेटीन |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंअयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी को सादर नमन|
जवाब देंहटाएंमूर्धन्य सजितयकर श्री अयोध्यासिंहजी उपाध्याय 'हरिऔध' के बारे में जानकारी के लिए धन्यवाद।
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