Pages

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

स्वधर्मे निधनं श्रेयः - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |


 
अभी हाल ही मे जो १० सैनिक सियाचिन मे शहीद हुये वो सब उस मद्रास रेजीमेंट के थे जिन का आदर्श वाक्य, स्वधर्मे निधनं श्रेयः (कर्तव्य पालन करते हुए मरना गौरव की बात है।) है , ऐसे उन से इस से कम की कोई अपेक्षा की भी नहीं जा सकती। और उन्होने यह साबित किया कि वो सभी के सभी अपने आदर्श वाक्य के एक एक शब्द पर खरे उतरे हैं |

मद्रास रेजीमेंट का युद्ध घोष :-

"वीरा मद्रासी,अडी कोल्लु अडी कोल्लु!!"
(वीर मद्रासी, आघात करो और मारो,आघात करो और मारो!)

पलटन का मान बढ़ा गए यह दसों महावीर।

दिल से सलाम।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सरदार पटेल ने कहा था -

"हर भारतीय को याद रखना चाहिए कि अगर इस देश में उन्हें कुछ अधिकार दिए गए हैं तो बदले मे उनके कुछ कर्तव्य भी है।"

एक तरफ यह जाँबाज सैनिक है जो देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं दूसरी ओर JNU जैसे शिक्षा संस्थानों के तैयार किये गए अधकचरे बुद्धिजीवी छात्र है जो न जाने कैसे और किस आधार पर अफ़जल या बाकी किसी आतंकी को शहीद बता कर उनके हिमायती बन भारत विरोधी नारे लगाते है, इन को कभी शहीद सैनिकों का ख़्याल क्यों नहीं आता !?

कभी कभी लगता है, आस्तीन के सांप पाल रहे हैं हम। छात्र राजनीति के नाम पर यह लोग जो कुछ करते दिख रहे हैं उसका छात्रों से कुछ लेना देना नहीं है ... सरकारी अनुदानों के आधार पर पलने वाले यह लोग केवल मौकापरस्त लोगों की वो जमात है जो जिस थाली मे खाती है उसी मे छेद करती है | खुद को 'बुद्धिजीवी' साबित करने के चक्कर मे यह केवल बड़ी बड़ी बातें करते है ... जमीनी स्तर पर काम करता कोई नहीं दिखता ... अगर केवल विरोध प्रदर्शन और नारों के दम पर समाज मे बदलाव आता होता तो पिछले ७ दशकों मे निरे बदलाव आ चुके होते | छात्रों पर देश का भविष्य निर्भर करता है जब वही छात्र देश तोड़ने और बर्बाद करने की बात करेंगे तो क्या ख़ाक बदलाव आएगा !? बदलाव आते है जमीनी स्तर पर काम कर, देश के कुछ कर गुजरने के जज़्बे से | बहुत अधिक नहीं केवल एक आदर्श नागरिक बनने का प्रयास कीजिये, फर्क दिखने लगेगा |

सादर आपका
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

वो जी उठा, हम बचा नहीं पाए

सियाचीन की बर्फीली वादियों में पूरे 6 दिन तक 35 फीट बर्फ के नीचे दबे रहे हनुमनथप्पा ने मौत को अपने पास तक नहीं आने दिया, लेकिन बाहर निकाले जाने के बाद ये बहादुर इलाज के दौरान जिंदगी की लड़ाई हार गया। हम उसे बचाने में नाकाम रहे। 11 फरवरी 2016 को डाॅक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। कवि हर‍ि ओम पवार ने श्रद्धांजलि स्वरूप जो कविता लिखी है, वह यहॉं प्रस्तुत है -

खो दिए फिर हमने वीर

ई. प्रदीप कुमार साहनी at काव्य संसार
देश की शान के लिए खड़े जो, हर मुश्किल में रहे अड़े जो, मौत से हारे वो आखीर, खो दिए फिर हमने वीर । मातृभूमि की लाज के लिए, लड़ते रहे जो जीवन भर, अमन-चैन के लिए जिये वो, कभी नहीं उन्हे लगा था डर । प्रकृति से हार गए वो, जीवन अपना वार गए वो, चले तोड़ जीवन जंजीर, खो दिए फिर हमने वीर । कभी हैं छल से मारे जाते, कभी अपनो से धोखा खाते, आतंक को धूल सदैव चटाया, कर्तव्य को पर नहीं भुलाते । अश्रुपूरित हर नेत्र है आज, देश की पूरी एक आवाज, श्रद्धा सुमन अर्पित बलबीर, खो दिए फिर हमने वीर । -प्रदीप कुमार साहनी

कैसे करूँ नमन ?

शहीदों को नमन किया श्रद्धांजलि अर्पित की और हो गया कर्तव्य पूरा ए मेरे देशवासियों किस हाल में है मेरे घर के वासी कभी जाकर पूछना हाल उनका बेटे की आंखों में ठहरे इंतज़ार को एक बार कुरेदना तो सही सावन की बरसात तो ठहर भी जाती है मगर इस बरसात का बाँध कहाँ बाँधोगे कभी बिटिया के सपनो में झांकना तो सही उसके ख्वाबों के बिखरने का दर्द एक बार उठाना तो सही कुचले हुए अरमानों की क्षत-विक्षत लाश के बोझ को कैसे संभालोगे? कभी माँ के आँचल को हिलाना तो सही दर्द के टुकड़ों को न समेट पाओगे पिता के सीने में जलते अरमानो की चिता में तुम भी झुलस जाओगे कभी मेरी बेवा के चेहरे को ताकना तो सही बर्फ से ज़र्द च... more »  

सलिल वर्मा की कवितायें - भाग १

आज सलिल वर्मा जो मेरे सलिल चाचा हैं, उनका जन्मदिन है. उनके जन्मदिन पर इस ब्लॉग पर पेश कर रहा हूँ उनके कुछ नज़म, कुछ कवितायें जो उन्होंने इधर उधर लिख कर रख दी थीं. दो तीन कवितायें उनके ब्लॉग से ली गयी है. *मेरी बहना* कबीर रोए थे चलती चाकी देख खुश हूँ मैं, खुश होता हूँ हमेशा इसलिए नहीं कि चाकी पर गढे जाते हैं अनगिनत शिल्प, इसलिए कि इसमें मुझे अपना परिवार दिखता है एक धुरी उसके गिर्द घूमता सारा कुटुंब और बनते हुए खूबसूरत रिश्ते. बहन है मेरी दो भाइयों से छोटी और दो से बड़ी एक धुरी की तरह बीच में हम सब विस्थापित हो गए बस वो टिकी है वहीं कहीं नहीं जाती, बस इंतज़ार करती है होली में, गर्मी की ... more » 

प्राण साहब की ९६ वीं जयंती

शिवम् मिश्रा at बुरा भला
*प्राण* (जन्म: 12 फरवरी 1920; मृत्यु: 12 जुलाई 2013) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रमुख चरित्र अभिनेता थे जो मुख्यतः अपनी खलनायक की भूमिका के लिये जाने जाते हैं। कई बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार तथा *बंगाली फ़िल्म फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड्स* जीतने वाले इस भारतीय अभिनेता ने हिन्दी सिनेमा में 1940 से 1990 के दशक तक दमदार खलनायक और नायक का अभिनय किया। उन्होंने प्रारम्भ में 1940 से 1947 तक नायक के रूप में फ़िल्मों में अभिनय किया। इसके अलावा खलनायक की भूमिका में अभिनय 1942 से 1991 तक जारी रखा। उन्होंने 1948 से 2007 तक सहायक अभिनेता की तर्ज पर भी काम किया। अपने उर्वर अभिनय काल के दौरा... more » 

कोहरे के पार ...वसंत

Vandana Ramasingh at वाग्वैभव
अलसाई सी कुछ किरणें अंगड़ाई ले रही होंगी या फिर घास पर फैली ओस बादलों से मिलने की होड़ में दम आजमा रहीं होंगी वो तितलियाँ जो धनक पहन कर सोई थीं अपनी जुम्बिश से आसमां में रंग भर रही होंगी आखिर तिलिस्म ही तो है कोहरा अपनी झोली में न जाने क्या कुछ छुपाये होगा  

दर्पण के नियम...

मैं खुद को आवाज़ लगता हूँ हर बार, और मेरी आवाज़ मुझसे ही टकराकर वापस लौट आती है, काश कि आवाज़ आ पाती दर्पण के परावर्तन के नियम के खिलाफ, मेरा दिल इस दर्पण का आपतन बिन्दु है... याद रखना अगर मैं घूमा लूँ अपना दिल किसी थीटा कोण से, मेरी आवाज़ की परावर्तित किरण इकट्ठा कर लेगी दोगुना घूर्णन, ये हर दर्पण का प्रकृतिक गुण है.... मेरा ये दिल दर्पण ही तो है तुम्हारा, है न... 

यारों के यार और दिलदारों के दिलदार- निदा फाजली!

vibha rani at chhammakchhallo kahis
मुंबई साहित्य की दुनिया में निदा फाजली एक फाहे की तरह थे। सभी के लिए उनके दरवाजे खुले रहते। मेरी उनसे पहचान अपने ऑफिस में कवि सम्मेलन करवाने के सिलसिले में हुई। जैसा कि आम तौर पर होता है, हिन्दी अधिकारी महज एक हिन्दी अधिकारी मान लिया जाता है, मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। तब जनसत्ता और उसका साहित्यिक परिशिष्ट “सबरंग” छपता था। जनसत्ता में लेख और सबरंग में कहानियाँ आती रहती। उन दिनों राहुल देव जनसत्ता के और धीरेन्द्र अस्थाना सबरंग के फीचर संपादक थे। नवभारत टाइम्स में भी लेख आ जाते थे। निदा साब इतना ज़्यादा पढ़ते और याद रखते थे कि मैं हमेशा हैरत में पड़ जाती थी कि इन्हें इतना सब पढ़ने के बाद... more » 

नमन माँ शारदे

sadhana vaid at Sudhinama
ऐ हंसवाहिनी माँ शारदे दे दो ज्ञान ! सद्मति और संस्कार से अभिसिंचित करो हमारे मन प्राण ! गूँजे दिग्दिगंत में चहुँ ओर तुम्हारा यश गान ! शरण में आये माँ उर में धर तेरा ही ध्यान ! तू ही मान हमारा माँ तू ही अभिमान ! हर लो तम और जला दो ज्ञान की ज्योति अविराम ! दूर कर दो माँ जन जन का अज्ञान ! चरणों में शीश नवाऊँ मैं स्वीकार करो माँ मेरा प्रणाम ! साधना वैद  

निदा फ़ाज़ली उर्दू शायरी का आफ़ताब

*उनकी पूर्ण जीवनी यहाँ पढ़ सकते है Click here* निदा फ़ाज़ली शायरी को जानने वालो के लिए ये कोई नया नाम नहीं है और यह नाम उर्दू शायरी में एक अलग मुकाम रखता है । आप वो शायर है जो फ़ारसी उर्दू जो की उर्दू शायरी में बरसो से चली आ रही थी उसे न चुनकर उसे एक सरल और समझने लायक शब्दों में ढालकर ग़ज़ल, नज्म और दोहे कहते थे । आपका जन्म 12 अक्टुम्बर 1938 को ग्वालियर में हुआ और आपकी मृत्यु मुंबई में दिल का दौरा आने से 8 फरवरी 2016 72 वर्ष की उम्र में हुई। जी हां यह वही दिन है जिस दिन जगजीत सिंह जी का जन्म दिवस है । एक बार जब वे पाकिस्तान मुशायरे में शामिल होने गए तब उनके कहे एक शेर पर वहा कट्टरपंथियों... more » 

दिलरुबा बर्फी

*सामग्री -* एक गिलास सूखा दूध का पॉउडर दो सौ ग्राम बिना नमक का मक्खन एक डिब्बा कन्डेन्स्ड मिल्क (400gm) एक बड़ा चम्मच स्ट्रोवेरी या रसवरी जैम (बिना बीज का ) एक छोटा चम्मच गुलाब जल या गुलाब एस्सेंस एक चुटकी लाल, गुलाबी या नारंगी खाने वाला रंग (अपनी पसंद अनुसार) सजाने के लिए कुछ गुलाब की पत्तियां और छिले, बादाम के फ्लेक्स एक छोटा हार्ट शेप का कुकी कटर *विधि * दूध पाउडर, मक्खन और कन्डेन्स्ड मिल्क को एक माइक्रोवेव प्रूफ बाउल में डालें और हाई पावर पर माइक्रोवेव में तीन मिनट के लिए रख दें अब इसे निकालें, ठीक से चलायें और इसमें जैम, गुलाब जल /एस्सेंस डालें और फिर से २ मिनट के लिए माइक्रोव... more »
 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द। 
 
जय हिन्द की सेना।

8 टिप्‍पणियां:

  1. शहीदों को शत शत नमन.
    आप सरकार विरोधी हो सकते हैं, किसी विचारधारा के विरोधी हो सकते हैं. परन्तु जिस देश के नागरिक हैं उसकी बर्बादी चाहने वाले कैसे हो सकते हैं ? हमारी शिक्षा व्यवस्था में भारी कमी है.
    बढ़िया बुलेटिन.

    जवाब देंहटाएं
  2. सलिल जी को जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनाएं ।
    सियाचिन के शहीदों को नमन ।

    जवाब देंहटाएं
  3. शहीद को नमन । हम अपने घरो में शहीदों की वजह से ही आराम से बेठे है ।
    हमारी पोस्ट शामिल करने हेतु धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  4. अपने भारत के रणबांकुरे अनमोल शूरवीरों को इस तरह खोकर हम सचमुच कितने निर्धन होते जा रहे हैं इसका आकलन करना नितांत असंभव है ! इन वीर बहादुर शहीदों को शत-शत नमन ! आज के बुलेटिन में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार शिवम जी !

    जवाब देंहटाएं
  5. सियाचिन के शहीदों को समर्पित बुलेटिन बहुत खाश है आज ।
    दसों वीरों को शत शत नमन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढिया प्रस्तुति! शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!