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गुरुवार, 5 नवंबर 2015

लाशों के ढ़ेर पर पड़ा लहुलुहान... - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार मित्रो,
नित नए सजाये जाते विवादों के बीच लिखने-कहने से मन लगातार उचटता जा रहा है.... सो अपनी एक कविता के साथ आज की बुलेटिन...
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सालों पहले देखा
सपना एक
भारत महान का।
आलम था बस
इन्सानियत, मानवता का,
सपने के बाहर
मंजर कुछ अलग था,
बिखरा पड़ा था...
टूटा पड़ा था...
सपना...
भारत महान का।
चल रही थी आँधी एक
आतंक भरी,
हर नदी दिखती थी
खून से भीगी-भरी,
न था पीने को पानी
हर तरफ था बस
खून ही खून।
लाशों के ढ़ेर पर
पड़ा लहुलुहान...
कब सँभलेगा
मेरा भारत महान!
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शेष अगली बुलेटिन के साथ, अगले हफ्ते..... नमस्कार!! 

11 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ प्रस्तुत करती कविता ... आभार राजा साहब |

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  2. नौटंकियाँ बंद हो जायें सब सुधर जायेगा
    जोकर सोने चले जायें सब सुधर जायेगा ।

    सुंदर बुलेटिन ।

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  3. लेख को स्थान देने के लिए आभार ,अन्य पोस्ट्स पढने का अवसर मिला विचारपूर्ण पोस्ट्स

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  4. लेख को शामिल करने के लिए कुमारेन्द्र जी और ब्लॉग एडमिन का ह्रदय से आभार

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  5. aapka hardik dhnyavad, sapne ko yahan sthan mila. sundar links badhai

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति!
    आभार!

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  7. बदलते वातावरण में तो लिखना और आवश्यक है.

    जवाब देंहटाएं

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