Pages

रविवार, 22 नवंबर 2015

.......... बड़ा दम है इस जीने में …





घर तेरा हो 
या मेरा 
छूट जाना है एक दिन 
हम गुम हो जायेंगे 
या तुम 
गुम हो ही जाना है !
पहले जो गुम हुए 
तो लगा -
यह क्या माज़रा है 
फिर एक यम की कहानी सुनी 
जाना -
स्वर्ग,नरक जाना होता है 
फिर जीते जी देखा स्वर्ग-नरक 
बदलते शहर 
बदलते किराये के घर 
पडोसी के अन्यमनस्क रूप 
नज़र भी नहीं मुड़ी 
किसी किस्म के रिश्ते की आवश्यकता नहीं 
हम भी हो गए अन्यमनस्क 
चुप कमरा 
चुप दीवारें 
ऐसा भला घर होता है !!!
कुछ नहीं जाना है साथ 
तेरा महल तेरा नहीं रहेगा 
मेरा छोटा सा 
सिमटा सिमटा घर मेरा नहीं रहेगा 
फिर काहे की 
कैसी अन्यमनस्कता ?
जीने की कोशिश करो 
 .......... बड़ा दम है इस जीने में  … 



5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    अच्छा लगा ये सांध्य दैनिक
    और आपकी रचना भी पसंद आई
    एक सही सच की दास्तां
    ...
    घर तेरा हो
    या मेरा
    छूट जाना है एक दिन
    हम गुम हो जायेंगे
    या तुम
    गुम हो ही जाना है !
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर लिंकों से सजी बुलेटिन |

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया नपी-तुली बुलेटिन प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!