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रविवार, 11 अक्टूबर 2015

बाप बड़ा न भैया, सब से बड़ा रुपैया - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक कंजूस आदमी जब मरने लगा तो उसने अपने तीनों बेटों को बुलाया और बोला, "मैंने हमेशा लोगों को यह कहते सुना है कि मरने के बाद आदमी के साथ कुछ भी नहीं जाता। लेकिन मैं इस धारणा को गलत साबित कर दूंगा। मेरे पास कुल तीस लाख रुपये हैं। मैं तुम तीनों को एक-एक लिफाफा दूंगा जिनमें से हरेक में दस लाख रुपये होंगे। मैं चाहता हूं कि मुझे दफनाते समय तुम लोग ये रुपये मेरी कब्र में डाल दो।"

जब वह आदमी मर गया तो वादे के मुताबिक तीनों बेटों ने उसकी कब्र में अपने अपने लिफाफे डाल दिए।

घर लौटते समय बड़ा बेटा गमगीन स्वर में बोला, "भाई, मुझे बड़ी आत्मग्लानि हो रही है। मुझे बैंक का कर्ज लौटाना था इसलिए मैंने लिफाफे से 2 लाख निकाल लिए थे।"

मंझला बेटा भी आंखों में आंसू भरकर बोला, "मैंने भी नया घर खरीदा है। उसके लिए कुछ पैसों की जरूरत थी सो मैंने लिफाफे में से 4 लाख निकाल लिए थे।"

उन दोनों की बातें सुनकर छोटा बेटा तैश में आकर बोला, "शर्म आनी चाहिए! आप लोग पिताजी की अंतिम इच्छा का भी पालन नहीं कर सके। मैंने तो एक पैसे की भी बेईमानी नहीं की। पूरे दस लाख का चेक लिफाफे में डालकर आया हूं।"

सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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रौशनी और अंधेरा

देवेन्द्र पाण्डेय at बेचैन आत्मा 
रौशनी है लोहे के घर में अँधेरा है खेतों में, गाँवों में जब कोई छोटा स्टेशन करीब आता है खेतों की पगडंडियों में दिखने लगते हैं टार्च माटी के घरों में ढिबरी पक्के मकानों में शेफल और... मुझे स्टेशन का नाम पढ़ते देख अँधेरे में डूबा स्टेशन खिलखिला कर हंसने लगता है। .............................................. 

अपनी रुस्वाई.......

lori ali at आवारगी 
अपनी रुस्वाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ एक ज़रा शेर कहूँ , और मैं क्या क्या देखूँ नींद आ जाये तो क्या महफिलें बरपा देखूँ आँख खुल जाए तो तन्हाई का सहारा देखूँ शाम भी हो गयी धुंधला गयी आँखें मेरी भूलने वाले, कब तक मैँ तेरा रास्ता देखूँ सब ज़िदें उसकी मैं पूरी करूँ, हर बात सुनूँ एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूं मुझ पे छा जाये वो बरसात की खुशबू की तरह अंग अंग अपना उसी रुत में मेहकता देखूं तू मेरी तरह यक्ताँ है मगर मेरे हबीब ! जी में आता है कोई और भी तुझसा देखूं मैंने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार ख्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ तू मेरा कुछ भी नहीं लगता मगर ऐ जाने ह... more » 

"कर्कशा महिलाएं "

बचपन में खेलते थे कई खेल घंटो तक दिनों तक समझ और परिणाम रहित । एक खेल था बोलने का और चुप कर जाने का - "गाय ,गाय का बछड़ा ,गाय गुड ....के समय होठों को भींच देते थे और भींच देते थे वह वाक्य जो प्राय: रह जाता था अधूरा "गाय गुड खाती हैं। सही समय पर होंठ भींचने वाला जीत जाता था और दूसरे की हार जाती थी जीभ और दब जाते थे शब्द जो रह जाते थे जेहन में और फिर दिन भर मन ही मन वही पुनरावृत्ति करने का जी चाहता ," गाय गुड ...गाय गुड... हा ,जी ही तो चाहता था उसका क्योंकि दबाई गई थी उसकी भावनाए और होंठ तब तब जब जब हिलते । पर क्या फर्क पड़ता हैं किसी को 13 की कच्ची उम्र में ब्याह दी और 15 बरस की माँ... more » 

गोरक्षा – एक कठिन समस्या

sadhana vaid at Sudhinama 
गोरक्षा भारत में सदियों से एक संवेदनशील विषय रहा है ! देश के अलग-अलग राज्यों में इस मसले पर विभिन्न क़ानून हैं ! गाय, बैल व भैंस को अलग-अलग श्रेणियों में रखा गया है ! इनके सन्दर्भ में कहाँ क्या क़ानून हैं ज़रा प्रान्तों के अनुसार इसकी जानकारी भी लेते चलें ! जम्मू काश्मीर – गाय, बैल व भैंस तीनो के वध पर प्रतिबन्ध है हिमांचल प्रदेश – तीनों पर प्रतिबन्ध पंजाब – तीनों पर प्रतिबन्ध हरियाणा – तीनों पर प्रतिबन्ध राजस्थान – तीनों पर प्रतिबन्ध उत्तर प्रदेश – सिर्फ गाय पर प्रतिबन्ध बिहार – सिर्फ गाय पर प्रतिबन्ध झारखंड – सिर्फ गाय पर प्रतिबन्ध उत्तराखंड – तीनों पर प्रतिबन्ध गुजरात – सिर्... more » 

मामूल मिजाजी .......

Amrita Tanmay at Amrita Tanmay 
अजनबी बवंडरों का कोई डर अब न मुझको घेरता है इस फौलादी पीठ पर मानो हर हमला हौले से हाथ फेरता है जो चलूँ तो यूँ लगता है कि जन्नत भी क़दमों के नीचे है उस आसमान की क्या औकात ? वो तो अदब से मेरे पीछे है इसकदर मेरे चलने में ही कसम से ये कायनात थरथराती है निखालिस ख़्वाब या हकीकत में मुझसे इलाहीयात भी शर्माती है जबान की ज्यादती नहीं ये , असल में जवानी है , जनून है, जंग परस्ती है मेरी मौज के मदहोश मैखाने में मामूल मिजाजी की मटरगश्ती है हाँ! खुद का तख़्त जीता है मैंने और बुलंदियों पर मैं ठाठ से बैठी हूँ मैं खुर्राट हूँ , मैं सम्राट हूँ सोच , सिकंदर से भी ऐंठी हूँ . इलाहीयात --- ईश्वरीय बातें मामूल... more » 

यादों के ताज महल ..!!!

मैं , तुम यानि की हम , ये जो पल जी रहे है आज में , बैठकर सोचते है की ये वक्त क्यों ऐसा है ??? सब कुछ ठीक कब होगा ??? पर ये वक्त की राह जाती है अक्सर यादों के शहर में , वहाँ बीच शहर के मोहल्ला है , उस गली में ये यादें जाकर अक्सर बस जाती है , गुजरता हर लम्हा वक्त के लिबास में वहीँ जाता है पर कमाल की बात है ये कि वहाँ पर जगह की कोई कमी नहीं हुई , बस हमारे दिल की तरह … !!! वो आने वाला वक्त कभी आज में तब्दील होगा तब जाकर टटोलेंगे हम , ये मक़ाम जहाँ उस गली में यादों का बसेरा है … तब ये सोचेंगे ये वक्त कितना अच्छा था !!! काश ये लौटकर दोबारा आये आज में !!!! बस ये यादों के ताज महल हमारे साथ बने थ... more » 

सोचा कैसे ....

udaya veer singh at उन्नयन (UNNAYANA) 
सोचा कैसे - सियासत में ही लाएँगे युवराज को सीमा का प्रहरी, सोचा कैसे ? सिर बोझ बहुत है टोपी का अपने ढोयेँ व्यथा देश की ,सोचा कैसे ? शिक्षण प्रशिक्षण राजनीति का देंगे संस्कृति संस्कारों का, सोचा कैसे ? उदय वीर सिंह का बेटा शहीदी पाये मरे हमारा बेटा ! सोचा कैसे ? सम्मेलन दंगा हप्ता वसूली कायम हैं , खेतों मेँ हल चलाये सोचा कैसे ? धूप नैवेद्य दीपों से देवी की पूजा बेटी कोख में आए ! सोचा कैसे ? वोट, मंचों की भाषा हिन्दी है घर में भी बोलेंगे,सोचा कैसे ? नारों में ही आदर्श अच्छे लगते हैं जीवन में भी लाएँगे,सोचा कैसे ? ड्राईंगरूम सजे कैलेंडर किंगफिशर के भगत बोस आजाद, सोचा कैसे ? उदय वीर सिंह 

चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों....

स्वप्न मञ्जूषा at काव्य मंजूषा 
आज तो बस मज़ा ही आ गया ये गीत सुन कर, आपलोग भी सुनिए ना.… जाने क्यों सुन कर दिल बड़ा हल्का-फुल्का लग रहा है..... more » 

एक्सीडेंट हो गया ……!!!

मोनिका गुप्ता 55 वर्षीय जुल्फी मियां घबराए हुए, चाय की दुकान की ओर चले आ रहे थे. चेहरा सुर्ख लाल,हाथ-पांव कांपते हुए मेरे पूछने पर कि चच्चा जान, क्या हुआ उन्होंने बताया कि मियां, आज तो पूछो ही मत ... एक्सीडेंट हो गया... !!! यार-दोस्त उनकी हालत देखकर घबरा गए । छोटू को चाय आर्डर किया और उन्हें कुर्सी पर बैठाकर खैर-खबर जाननी चाही कि आखिर हुआ कैसे कि इतने में सतीश बोल पड़ा, यार सड़क पर इतने गड्डें हैं, कोर्इ हाल है क्या, वहीं उलझ गए होंगे और एक्सीडेंट हो गया होना है और नही तो क्या !!! मनप्रीत ने अपनी राय रखी, ओये! तेनू की पता …. ऐ लोकल बसैं होन्दी हैं ना उसदे ऊपर लटक-लटक के जान्दें ने ... more » 

संवाद

प्रवीण पाण्डेय at न दैन्यं न पलायनम्
पूछती थी प्रश्न यदि, उत्तर नहीं मैं दे सका तो, भूलती थी प्रश्न दुष्कर, नयी बातें बोलती थी । किन्तु अब तुम पूछती हो प्रश्न जो उत्तर रहित हैं, शान्त हूँ मैं और तुमको उत्तरों की है प्रतीक्षा । राह जिसमें चल रहा मैं, नहीं दर्शन दे सकेगी, तुम्हे पर राहें अनेकों, आत्म के आलोक से रत । किन्तु हृद के स्वार्थ से उपजी हुयी एक प्रार्थना है, नहीं उत्तर दे सकूँ पर, पूछती तुम प्रश्न रहना । कृपा करना, प्रेम का संवाद न अवसान पाये, रहे उत्तर की प्रतीक्षा, जीवनी यदि बीत जाये ।

कार्टून:- गाय तो अब बच के रहेगी.

 
 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

5 टिप्‍पणियां:

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