प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
प्रणाम |
चित्र गूगल से साभार |
पिछले कुछ दिनों से माहौल बड़ा संजीदा रहा है ... इस लिए आज थोड़ा माहौल को बदलते हुये एक लतीफ़ा पेश ए खिदमत है |
एक व्यक्ति ने बढ़िया सा कपड़ा खरीदा और सूट सिलवाने के लिेए एक दर्जी के पास गया। दर्जी ने कपड़ा लेकर नापा और कुछ सोचते हुए कहा, "कपड़ा कम है। इसका एक सूट नहीं बन सकता।"
वह दूसरे दर्जी के पास चला गया। उसने नाप लेने के बाद कहा, "आप दस दिन बाद सूट ले जाइए।"
वह निश्चित समय पर दर्जी के पास गया। सूट तैयार था। अभी सिलाई के पैसे दे रहा था कि दुकान में दर्जी का पांच साल का लड़का प्रविष्ट हुआ। उस व्यक्ति ने देखा कि लड़के ने बिल्कुल उसी कपड़े का सूट पहन रखा है। थोड़ी सी बहस के बाद दर्जी ने बात स्वीकार कर लिया।
वह व्यक्ति पहले दर्जी के पास गया और फुंकारते हुए कहा, "तुम तो कहते थे कि कपड़ा कम है, पर तुम्हारे साथ वाले दर्जी ने उसी कपड़े से न केवल मेरा, बल्कि अपने लड़के का भी सूट बना लिया।"
दर्ज़ी ने हैरान होकर पूछा, "ऐसा कैसे हो सकता है?"
आदमी: ऐसा ही हुआ है अगर यकीन नहीं तो साथ चल के देख लो।
दर्जी फिर कुछ सोचते हुए बोला, "अच्छा लड़के की उम्र क्या है?"
आदमी: पाँच वर्ष।
दर्जी: तभी तो।
आदमी: क्या तभी तो?
दर्ज़ी: अरे श्रीमान मेरे लड़के की उम्र 18 वर्ष है तो उसका सूट कैसे बनता?
वह दूसरे दर्जी के पास चला गया। उसने नाप लेने के बाद कहा, "आप दस दिन बाद सूट ले जाइए।"
वह निश्चित समय पर दर्जी के पास गया। सूट तैयार था। अभी सिलाई के पैसे दे रहा था कि दुकान में दर्जी का पांच साल का लड़का प्रविष्ट हुआ। उस व्यक्ति ने देखा कि लड़के ने बिल्कुल उसी कपड़े का सूट पहन रखा है। थोड़ी सी बहस के बाद दर्जी ने बात स्वीकार कर लिया।
वह व्यक्ति पहले दर्जी के पास गया और फुंकारते हुए कहा, "तुम तो कहते थे कि कपड़ा कम है, पर तुम्हारे साथ वाले दर्जी ने उसी कपड़े से न केवल मेरा, बल्कि अपने लड़के का भी सूट बना लिया।"
दर्ज़ी ने हैरान होकर पूछा, "ऐसा कैसे हो सकता है?"
आदमी: ऐसा ही हुआ है अगर यकीन नहीं तो साथ चल के देख लो।
दर्जी फिर कुछ सोचते हुए बोला, "अच्छा लड़के की उम्र क्या है?"
आदमी: पाँच वर्ष।
दर्जी: तभी तो।
आदमी: क्या तभी तो?
दर्ज़ी: अरे श्रीमान मेरे लड़के की उम्र 18 वर्ष है तो उसका सूट कैसे बनता?
सादर आपका
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मैं वही ...अनन्तकाल तक..
... माखन चाहे बदल जाए .... मुख लपटायो वाला भाव नहीं बदल सकता .... मैया मोरी मैं जब कुल्फी खायो लपट झपट निपटायो तोको कबी न खाने देहौं तू भी सदा पिघलायो .... मैया मोरी मैं जब कुल्फी खायो तोरी ममता का कहूँ मैया तू अपनो खानो भुलायो मैया मोरी मैं जब कुल्फी खायो पापा ने जब गप्पू पुकारो फट से वाके देखन लागो अरू पापा भी मुसकायो मैया मोरी मैं जब कुल्फी खायो.....
प्रयोग और प्रेक्षण
हे मानवश्रेष्ठों, यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञान के द्वंद्वात्मक सिद्धांत के अंतर्गत वैज्ञानिक संज्ञान के रूपों सिद्धांत और प्राक्कल्पना पर चर्चा की थी, इस बार वैज्ञानिक संज्ञान के अन्य रूपों प्रयोग और प्रेक्षण की महत्ता को समझने की कोशिश करेंगे । यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है। ------------------------------ वैज्ञानिक संज्ञान के रूप प्रयोग और प्रेक्षण ( experiment and observation ) जब एक खगोलव... more »
दुआओं की रात - मीना कुमारी नाज़
आज मीना कुमारी के जन्म दिवस के अवसर पर पेश है उनकी यह *आज़ाद नज्म * *दुआओं की रात* दुआओं की यह रात आज की रात 'बहुत रातो के बाद आई है' ऐसी सफ़ेदपोश रात ऐसी सियाह बख्त रात कही-कही मिलती है किसी-किसी सजीले दिल के नसीब में होती है यह मौत की रात यह पैदाइश की रात - *मीना कुमारी नाज़* *मायने* सफेदपोश रात=उजले परिधान की रात, सियाह बख्त रात = दुर्भाग्य की रात *Roman* *Duaon ki Raat* Duaao ki yah raat aaj ki raat 'bahut raato ke baa aai hai' aisi safedposh raat aisi siyah bakht raat kahi-kahi milti hai kisi-kisi sajile din ke naseeb me hoti hai yah mout ki raat yah paidaish ki raat - *Meena Kuma... more »
माँ शहीद की रोती है
जिस देश में शहीदों का कद्र नहीं हो उस देश का भविष्य सुरक्षित नहीं रहता। अभी हाल ही में पंजाब में आतंकवादी घटना हुई जिसमे वहाँ एक एस पी बलजीत सिंह शहीद हो गए। जिस दिन याक़ूब मेनन को फांसी दी गयी उसी दिन पाकिस्तान बोर्डर पर एक भारतीय सैनिक को टार्गेट कर के शहीद कर दिया गया । एक आतंकवादी , सैकड़ों मासूमों , बेगुनाहों के हत्यारे को जब फांसी दी गयी तो उसके पूर्व एवं पश्चात उसकी जितनी चर्चा इस देश के बुद्धिजीवियों एवं मीडिया ने की उसका एक प्रतिशत भी इस देश के लिए शहीद होने वाले उपरोक्त बहादुरों के बारे में नहीं किया... क्या इस देश का मीडिया एवं बुद्धिजीवि वर्ग भी यही सोचता है कि सिपाही ... more »
अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद
‘अष्टावक्र गीता’ अद्वैत वेदान्त का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसमें राजा जनक के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का ऋषि अष्टावक्र के द्वारा समाधान किया गया है. ज्ञान कैसे प्राप्त होता है? मुक्ति कैसे प्राप्त होती है? वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है? ये प्रश्न ज्ञान पिपासुओं को सदैव उद्वेलित करते रहे हैं और इन्हीं प्रश्नों का उत्तर ऋषि अष्टावक्र ने संवाद के माध्यम से अष्टावक्र गीता में दिया है. ऋषि अष्टावक्र का शरीर आठ जगहों से टेड़ा था इसलिए उन्हें अष्टावक्र कहा जाता था. अध्यात्मिक ग्रंथों में अष्टावक्र गीता का एक महत्वपूर्ण स्थान है. अष्टावक्र गीता का बोधगम्य हिंदी में भाव-पद्यानुवाद करन... more »बड़े लोग - संजय भास्कर :)
( चित्र - गूगल से साभार ) आधी रात को अचानक किसी के चीखने की आवाज़ से चौंक कर सीधे छत पर भागा देखा सामने वाले घर में कुछ चोर घुस गये थे वो चोरी के इरादे में थे हथियार बंद लोग जिसे देख मैं भी डर गया एक बार चिल्लाने से पर कुछ देर चुप रहने के बाद मैं जोर से चिल्लाया पर कोई असर न हुआ मेरे चिल्लाने का बड़ी बिल्डिंग के लोगो पर .....क्योंकि सो जाते है घोड़े बेचकर अक्सर बड़ी बिल्डिंग के बड़े लोग ......!! ( C ) संजय भास्कर
ब्लौगिंग के सात साल और 'पाल ले इक रोग नादाँ'...
...टाइम फ़्लाइज़ ! पहली पहली बार किसने कहा होगा ये जुमला ? महज दो शब्दों में सृष्टि का सबसे बड़ा सच समेत कर रख दिया है कमबख़्त ने ! तो वक़्त की इसी उड़ान के साथ ब्लौगिंग के सात साल हो गए हैं | फेसबुक के आधिपत्य के बाद से निश्चित रूप से ब्लौगिंग की अठखेलियों पर थोड़ा अंकुश लगा है, लेकिन ब्लौगिंग हम में से कितनों का ही पहला इश्क़ है और रहेगा | लिखते-पढ़ते इन सात सालों में हम भी ख़ुद को लेखकनुमा वस्तु मनवाने के लिए एक किताब प्रकाशित करवा लिए हैं ....हमारी ग़ज़लों का पहला संकलन | 'पाल ले इक रोग नादाँ...' की इस सातवीं वर्षगाँठ पर थोड़ा सकुचाते हुये अपने ब्लौग पर हम इस 'पाल ले इक रोग नादाँ' के मूर्त... more »
निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊँगा : कुमार गंधर्व और विदुषी वसुन्धरा कोमकली
पिछले बुधवार शास्त्रीय संगीत के विख्यात गायक स्वर्गीय कुमार गंधर्व की पत्नी और जानी मानी गायिका वसुन्धरा कोमकली का देहांत हो गया। संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत वसुन्धरा जी को अक्सर आम संगीतप्रेमी कुमार गंधर्व के साथ गाए उनके निर्गुण भजनों के लिए याद करते हैं। पर इससे पहले मैं आपको वो भजन सुनाऊँ,कुछ बातें शास्त्रीय संगीत की इस अमर जोड़ी के बारे में। वसुन्धरा जी मात्र बारह साल की थीं (अगर ये विषय आपकी पसंद का है तो पूरा लेख पढ़ने के लिए आप लेख के शीर्षक की लिंक पर क्लिक कर पूरा लेख पढ़ सकते हैं। लेख आपको कैसा लगा इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया आप जवाबी ई मेल या वेब साइट पर जाकर दे सक... more »
गुरु पूर्णिमा पर प्रणाम गुरुओं को भी घंटालों को भी
*कहाँ हो गुरु दिखाई नहीं देते हो आजकल कहाँ रहते हो क्या करते हो कुछ पता ही नहीं चल पाता है बस दिखता है सामने से कुछ होता हुआ जब तब तुम्हारे और तुम्हारे गुरुभक्त चेलों के आस पास होने का अहसास बहुत ही जल्दी और बहुत आसानी से हो जाता है एक जमाना था गुरु जब तुम्हारे लगाये हुऐ पेड़ सामने से लगे नजर आते थे फल नहीं होते थे कहीं फूल भी नहीं तुम किसी को दिखाते थे कहीं दूर बहुत दूर क्षितिज में निकलते हुऐ सूरज का आभास उसके बिना निकले हुऐ ही हो जाता था आज पता नहीं समय तेज चल रहा है या तुम्हारा शिष्य ही कुछ धीमा हो गया है दिन... more »"लोकमान्य" की ९५ वीं पुण्यतिथि
*बाल गंगाधर तिलक* (जन्म: २३ जुलाई १८५६ - मृत्यु:१ अगस्त १९२०)*बाल गंगाधर तिलक* (जन्म: २३ जुलाई १८५६ - मृत्यु:१ अगस्त १९२०) हिन्दुस्तान के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की माँग उठायी। इनका यह कथन कि *"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा"* बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से *"लोकमान्य"* (पूरे संसार में सम्मानित) कहा जाता था। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। *प्रारम्भिक जीवन* तिलक का जन्म २३ जुलाई १८५६ को ब्रिटिश भारत में... more
मृत्युदण्ड के औचित्य पर एक अनावश्यक चर्चा
वे नहीं चाहते कि किसी जघन्य अपराधी को मृत्युदण्ड दिया जाय । उनका तर्क है कि जीवन अनमोल है जो ईश्वर की देन है, हम जीवन उत्पन्न नहीं कर सकते तो हमें किसी का जीवन लेने का अधिकार क्यों होना चाहिये ? ऐसा तर्क देने वालों में उन लोगों की संख्या अधिक है जो मांसाहारी हैं और जीवहत्या के समर्थक हैं । समाज को अधोगामी होने से बचाने के लिये शासन के माध्यम से अंकुश की आवश्यकता दुर्बलचरित्र वाले मनुष्य के लिये एक अनिवार्य व्यवस्था है । न्याय व्यवस्था इसी समाज व्यवस्था का भाग है जिसके लिये न्यायाधीश अधिकृत किया जाता है कि वह न्याय की परिधि में अपने सम्पूर्ण विवेक का उपयोग करते हुये समाजव्यवस्था क... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
वाह शिवम जी आज बहुत मनोयोग से सजा धजा के सुंदर चुटकुले में बाँध के मनमोहक बुलेटिन पेश किया है आभार है 'उलूक' का उसका कुछ खटर पटर 'गुरु पूर्णिमा पर प्रणाम गुरुओं को भी घंटालों को भी' भी पेश किया है ।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक बुलेटिन..मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो कहानी बहुत अच्छी लगी .... जिस प्रकार से शानदार शुरुआत की है उसी से ज्ञात होता है कि कितने परिश्रम एवं मनोयोग से आज के बुलेटिन को आपने संवारा है .... हार्दिक आभार " माँ शहीद की रोती है" को शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंबढ़िया चुटकुला और जानदार बुलेटिन - शुक्रिया भाई - जय हो
जवाब देंहटाएंइस समय के दुकानदार कैसे होते है यह इस चुटकुले से ज्ञात होता है ।
जवाब देंहटाएंजखीरा की रचना शामिल करने हेतु धन्यवाद ।
आप सब का बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आभार...!!
जवाब देंहटाएंमायरा को आप सबका प्यार मिला .... ये उसका सौभाग्य है ...
जवाब देंहटाएंउसे अन्य सभी का भी प्यार मिले इसलिए उसके ब्लॉग को यहाँ जगह देने के लिए धन्यवाद